क्या जैव विविधता राजनीति विज्ञान की शिक्षक बन सकती है? (In Hindi)

By युवान एविसonOct. 23, 2023in Environment and Ecology

(Kya Jaiv Vividhta Rajniti Vigyan Ki Shikshak Ban Sakti Hai?) 

एक खोज – स्थानीय जैव विविधता में स्थापित शिक्षा कैसे मनुष्यों के बीच समानता, विविधता और समावेशिता के मूल्यों को गहरा कर सकती है

विकल्प संगम के लिए लिखा गया विशेष लेख (Specially written for Vikalp Sangam)

मूल तरीक़े से अंग्रेज़ी में युवान एविस द्वारा लिखा गया 
प्रतिका गुप्ता द्वारा अंग्रेज़ी से अनुवाद  

तितलियाँ देखते हुए – पिचनुर गाव  \ पिक्चर क्रेडिट – आश्वथी अशोकन

एक काले सिर वाला ओरियोल बैंगन के खेत के बीचों-बीच लगे एक पपीते के पेड़ पर मँडरा रहा था, उस पर लगे एक अधपके पपीते को कुतर रहा था और शाख पर बैठे हुए अपने चूज़ों को खिला रहा था। थोड़ी देर बाद वयस्क पक्षी उड़कर पास के एक आँवले के पेड़ पर चला गया और कनखियों से चूज़ों को देखता रहा, ऐसे जैसे यह देख रहा हो कि क्या वे खुद से भोजन कुतरना शुरू करेंगे।

अक्टूबर, 2022 के अंत में, पल्लुयिर ट्रस्ट से हम चार प्रकृति शिक्षक स्थानीय बच्चों के साथ गतिविधियां करने के लिए पूरे दो दिन कोयंबतूर, तमिलनाडु के पिचनूर गांव में थे। पहले दिन हम पक्षी देखने गए (जहाँ हमने काले सिर वाले ओरियोल का व्यवहार बारीकी से देखा था), नेचर जर्नलिंग की और दोपहर में कुछ खेल खेले। लगभग 50 बच्चे आए थे – कुछ बच्चे पिचनूर और आस-पास के गाँवों से थे और कुछ गाँव से थोड़ा बाहर बसी एक आदिवासी बस्ती से थे। तथ्य यह है कि जातिगत विभाजन इस क्षेत्र में, यहां तक कि बच्चों में भी, गहराई तक व्याप्त है जो एक बाहरी व्यक्ति के होने के बावजूद भी मुझे थोड़ा समझ आ गया था। लेकिन यह खुलकर सामने तब आया जब बच्चे दोपहर का खाना खाने के लिए अलग-अलग बैठे। और तब, जब मैंने उन्हें छोटे समूह बनाकर उनमें बैठाने की कोशिश की तो कुछ बच्चे न तो जगह से हिले, न ही समूह में आए। फिर समूह बनाने का काम मैंने शिक्षक पर छोड़ दिया।

अगले दिन का आधा दिन बच्चों की प्रिय फरमाइश तितलियों के लिए था। सुबह हम गाँव के बाहरी तरफ लम्बी सैर पर निकल गए थे, हाथ में फील्ड गाइड और अवलोकन तालिका (टेबल) लेकर तितलियां ढूंढ रहे थे। हमने कॉमन बैंडेड पीकॉक  (Common Banded Peacock) तितलियों (तमिल में, मयिल अज़ागी) को गीली लाल मिट्टी के ढेर पर मिट्टी से पोषण चूसते (मड-पड़लिंग करते) हुए देखा। एक बड़े पंखों वाली सहयाद्री तितली (सदर्न बर्डविंग, पोन्नाज़ागी) नारियल के बागीचों के ऊपर गश्त कर रही थी और जब भी वह सर के ऊपर से गुज़रती थी तो बहुत उत्साह भर देती थी और शोर मच उठता था। बगीचों और खाली पड़ी ज़मीन के बीच की सड़क के किनारे बहुत सारी चार छल्लों वाली (फोर-रिंग, नंगु वलैयान) तितलियाँ थीं और ये ज़मीन के करीब, खासकर किनारों पर उगी घास पर, पंख हौले-हौले फड़फड़ा रही थीं। हमने अकाव (आक, कैलोट्रोपिस) और नीबू के पेड़ पर क्रमशः प्लेन टाइगर (वेंधया वरियाँ) और लाइम तितली (एलुमिचाई अज़ागी) का पूरा जीवन चक्र भी देखा। अंत में हम अपनी खोजों, अवलोकनों और सवालों को साझा करने, और एक-दूसरे को सुनने के लिए कुमिट्टीपति नदी के किनारे बैठे। कुछ बच्चों ने 25 से अधिक प्रजातियाँ देखी/पहचानी थीं। उस दिन बाद में, उनकी एक अध्यापिका संध्या ने हमारे साथ भावविभोर हो यह अनुभव साझा किया कि जाने कैसे गतिविधि के दौरान बच्चों ने धीरे-धीरे एक-दूसरे से बात करना शुरू कर दिया था, और बीच गतिविधि तक वे एक-दूसरे से खुलकर बात कर रहे थे, एक-दूसरे को खोजने, पहचानने और निरीक्षण करने में मदद कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यहाँ की सामाजिक-राजनीतिक स्थिति के चलते कक्षा में ऐसा माहौल बनाने के लिए रोज़ाना वे संघर्ष करती हैं।

चेन्नई लौटने के बाद मुझे इस घटना ने कई दिनों तक सोच में डुबोए रखा। तितलियों, पक्षियों या पेड़ों को निहारने की प्रकृति में ऐसा क्या था जो, सिर्फ चंद घंटों के लिए ही सही, यह गहराई से पैठे सामाजिक भेद को मिटा पाया था? क्या बात सिर्फ इतनी थी कि एकसाथ तितली को देखते समय जाति अप्रासंगिक थी? या अधिक महत्वपूर्ण रूप से, क्या ध्यान देने, कुछ जानने और सवाल उठाने के लिए हमें सामाजिक संरचना को छोड़ना होगा? यदि नहीं तो क्या उन संरचनाओं को भी अवलोकन में लाना होगा, और मानवीय रूप से समान स्तर पर होना होगा? बारीक अवलोकन करने और दूसरे प्राणियों से जुड़ने से सम्बंधित कुछ या कई बातें हमें इंसानों से भी जोड़ सकती हैं।


एक महीने बाद, मैं अबेकस मोंटेसरी स्कूल के शिक्षकों के सामने स्कूली शिक्षा के मुख्य घटक के रूप में जलवायु साक्षरता को एकीकृत करने के संभावित तरीके प्रस्तुत कर रहा था। समापन चर्चा के दौरान मेरी सहयोगी कावेरी, जो मानविकी और राजनीति विज्ञान की शिक्षिका हैं, ने एक बहुत ही दिलचस्प बात कही। उन्होंने बताया कि उन्होंने देखा है कि उनके नौवीं कक्षा के बच्चे, जो प्राथमिक कक्षा से ही ‘कृषि, पर्यावरण और समाज कार्यक्रम’ (जिसे मैंने शिक्षकों के साथ मिलकर डिज़ाइन किया था) में शामिल रहे थे, वे अन्य कक्षाओं के बच्चों की तुलना में कहीं अधिक राजनीतिक, सक्रिय चर्चाकर्ता और स्वयं से सोचने वाले बन गए थे। किसी तरह उनमें इससे बदलाव आया था – पिछले तीन वर्षों के दौरान अनुभव की गई प्रकृति-आधारित शिक्षण पद्धति से, जिसमें अधिकांश मॉड्यूल चेन्नई में जैव-विविधता के देखने पर थे – बच्चे जीवन के अन्य क्षेत्रों को भी देखने लगे थे। उन्होंने (कावेरी ने) भी स्वतंत्र रूप से यह कहा कि “प्रकृति के बारीक अवलोकन के कौशल का अभ्यास करने में ऐसा कुछ है” जो समाज और इतिहास से बच्चों को जोड़ता है और इन पर चिंतन करवाता है। बाद में दिसंबर में, बैंगलुरू में दूसरे ग्रीन लिटरेचर फेस्टिवल के मंच पर मैंने भारत के प्रतिष्ठित पर्यावरण इतिहासकारों में से एक प्रोफेसर महेश रंगराजन को यह कहते हुए सुना – अन्य जीवों को उनकी विविधता और विभिन्न पारिस्थितिकी में एक साथ रहते देखना ‘मनुष्य को सभी तरह की भिन्नता या पराएपन के प्रति संवेदनशील बनाता है’।

वे क्या तरीके हैं जिनमें जैव-विविधता एक राजनीति विज्ञान शिक्षक है? लोग अन्य प्रजातियों से अनेक परिवर्तनकारी राजनीतिक विचार (आइडिया) ले रहे हैं। एलेक्सिस पॉलीन गम्स को व्हेल, डॉल्फ़िन और सील से प्रतिरोध और पूंजीवाद को मिटाने के तरीकों की गहन सीख मिली – अपनी बेहद शानदार किताब ‘अनड्राउण्ड (Undrowned)’ में वह अश्वेत नारीवादी समुद्री स्तनधारियों से सबक लेती हैं। ज्यां पॉल गैगनन ने अपने तीन भागों में लिखे निबंध में गैर-मनुष्यी लोकतंत्र पर प्रकाश डाला है, और ‘अंतरप्रजाति-चिंतन (interspecies-thinking)’ का उपयोग कर मधुमक्खियों, बोनोबोस, दीमकों और सूक्ष्मजीवों से कार्यकारी लोकतांत्रिक सबक लिए हैं जो मानव समाज पर लागू हो सकते हैं, साथ ही साथ इस बारे में प्रेरक विचार रखे हैं कि एक बहु-प्रजाति (बहुरंगी) लोकतंत्र कैसा हो सकता है। ‘इवोल्युशन्स रेनबो (Evolution’s Rainbow)’ पुस्तक में जोअन रफगार्डन हमें बताती हैं कि कैसे कीटों से लेकर मछलियों तक के अन्य जीव हमें विविधतापूर्ण समाज, खासकर लैंगिक विविधतापूर्ण समाज में रहना सिखा सकते हैं। प्रकृति अत्यंत क्वीर है (queer – यह नर-मादा या स्त्री-पुरुष के खानों में नहीं बँटी है, यह विविधरंगी, विविध स्वभावी है)। खालिस बाइनरी (पूर्णत: नर या मादा में सिमटी) प्रकृति मिलना मुश्किल है।

लेकिन एक अधिक सरल स्तर पर, बच्चे में प्रकृति का नियमित अवलोकन करने से कैसे और किस तरह की सूक्ष्म राजनीतिक समझ बनेगी?

अनुभव और शोध समीक्षा से मुझे समझ आया कि प्रकृति के बाकी हिस्सों के साथ सीधा जुड़ाव सबसे सरल और रचनात्मक राजनीतिक मूल्य ‘विविधता’ के लिए एक व्यापक अनुभव प्रदान करने में सक्षम है। बच्चे देखते हैं और परोक्ष रूप से सीख जाते हैं कि अत्यंत गैर-बाइनरी बहु-प्रजाति (बहु-जीवी) दुनिया में कभी भी केवल एक स्वर, एक कथा, एक कहानी नहीं होती है। शिक्षक को किसी को भी यह सत्य बताने या सिखाने की ज़रूरत नहीं पड़ती है। ‘भिन्नता फिर भी सह-अस्तित्वता’ वह लेंस है जिसके ज़रिए यह बात हमें समझ आने लगती है। अन्य प्राणी हमसे अवचेतन रूप से बात करते हैं। वे हमें स्पष्ट रूप से बताते हैं – धर्मशास्त्री कैथरीन केलर के शब्दों में – कि “भिन्नता एक तरह से सम्बन्ध है; हमारा अस्तित्व सिर्फ हमारी इस भिन्नता के हिसाब से है”। जैव-विविधता का अवलोकन हमें उपभोक्ता/प्राप्तकर्ता की उस सोच से बाहर से निकाल सकता है जिसमें पूंजीवादी संस्कृति ने अधिकांश मनुष्यों को जकड़ रखा है। (प्रकृति के) प्रत्यक्ष अवलोकन – जो अपने आप में राजनीतिक प्रतिधारा (मौजूदा मान्यताओं, प्रथाओं का विरोध करने वाले) है – हमें गहन अर्थों और उद्देश्यों के सक्रिय खोजकर्ता बनाते हैं। तेवा के वरिष्ठ शिक्षक ग्रेगरी कैइती अपनी पुस्तक ‘लुक टू दी माउंटेन (Look to the Mountain)’ में लिखते हैं, ”यह अवलोकन करना कि प्राकृतिक दुनिया में चीज़ें कैसे होती हैं, यह (मूल निवासी) स्थानीय संस्कृतियों की कुछ सबसे प्राचीन और आध्यात्मिक शिक्षाओं का आधार है। प्रकृति प्रथम शिक्षक और प्रक्रिया की मॉडल है। ‘प्रकृति’ को निहारने का तरीका सीखने से हमारी अन्य चीज़ों को समझने की क्षमता बढ़ती है।

जब मैंने अपनी टीम के साथियों और साहसी युवा प्रकृति शिक्षक निकिता और शार्लट के साथ इस बारे में चर्चा की तो उन्होंने बताया कि कैसे उन्होंने और उनके दोस्तों ने सहजता से सड़कों के किनारे, झाड़ियों में, घास आदि पर यह दैनिक अवलोकन की आदत विकसित कर ली थी, खासकर ‘वह देखने की जो आसानी से नहीं दिखता’। उनका मानना था कि यह विवेचनात्मक सोच की शुरुआत थी, जो उनके जीवन के अन्य क्षेत्रों और लोगों के साथ बातचीत में भी झलकने लगी थी। अदृश्य या अदृश्य किए गए (हाशिएकृत) को खोजने का सतत प्रयास। पॉन्डीचेरी के मेरे एक मित्र और साथी प्रकृति-शिक्षक सुरेंद्र बूबालन ने समता का एक और पहलू साझा किया जो उन्हें तब प्रकट्य हुआ जब वे अपने प्राथमिक कक्षा के बच्चों को पक्षी अवलोकन के लिए ले गए थे। अब वे बच्चों को पढ़ाकू या अल्प-पढ़ाकू, मेधावी या बुद्धु की नज़र से नहीं देखते – जैसा देखने के लिए कभी-कभी पारंपरिक या बद्ध कक्षा उन्हें मजबूर करती है।

एक प्रकृति शिक्षक के रूप में व्यक्ति जिन राजनीतिक-शैक्षिक प्रक्रियाओं को अपनाता है वह भी पारंपरिक कक्षा निर्देशों से काफी भिन्न होती हैं – जहां सारा ध्यान और सत्ता एक व्यक्ति के हाथ में होती है – जिसे मैंने ‘नियंत्रण का शिक्षाशास्त्र’ कहना शुरू कर दिया है। किसी दलदली भूमि या पार्क में यदि कोई मेंढक या बगुला कुछ और देखने/सिखने की तरफ ले जाता है, और (बच्चे या) सीखने वाले का रुझान मेरे तय प्लान की बजाय उस कुछ और सीखने/देखने की तरफ होता है तो मैं हमेशा इसके लिए जगह बनाना सीख रहा हूँ, इस तथ्य से अवगत रहते हुए कि उस परिवेश में मैं हमेशा एक शिक्षक भी हूँ और बाकि सभी की तरह शिक्षार्थी भी हूँ – प्रकृति सीधे शिक्षक बने । जब सीखना वास्तविक दुनिया से है तो शिक्षक के पास अपना नियंत्रण छोड़ने और एक ‘सहकारी शिक्षाशास्त्र’ विकसित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता है – जिसमें सत्ता, ज्ञान और फोकस बहुत खूबसूरती से, कभी-कभी बराबरी से, विविध-लोगों, बहु-जीवों (बहु-प्रजाति) में वितरित होता है। ये बहु-जीवी मूल्य कई आदिवासी समुदायों, जैसे इदु मिश्मी, संथाल, जेनु कुरुबा और कट्टुनायकन, में पहले से ही मौजूद हैं और प्रचलित हैं।

चेन्नई के तट के किनारे नीले बटन \ पिक्चर क्रेडिट – युवान एविस 

पल्लुयिर ट्रस्ट और पुडियाडोर संगठन के सहयोग से हम एक यूथ क्लाइमेट इंटर्नशिप चलाते हैं जो बदलती जलवायु के चलते असुरक्षित तीन क्षेत्रों – उरुर-ओल्कोट कुप्पम, रामापुरम, और कक्कण कॉलोनी – में चलने वाला एक कार्यक्रम है। (तमिल में पल्लुयिर का अर्थ है जैव विविधता/बहुप्रजाति/सभी तरह का जीवन, और पुडियाडोर एक संगठन है जो शिक्षा के माध्यम से समूचे चेन्नई में हाशिएकृत समुदायों को सशक्त बनाने के लिए काम करता है)। इस कार्यक्रम के ज़रिए हम चेन्नई की पारिस्थितिकी और सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को गहराई से देखने और समझने के लिए 10 क्षेत्रीय दौरे करते हैं। इसमें हम कानून और इसके समर्थन की चीज़ें सीखते हैं, हम अपने आस-पास रहने वाली अन्य प्रजातियों और आवासों का अध्ययन करते हैं, और युवा अपने इलाके के लोगों को अवलोकन, सैर और गतिविधियों में शामिल करते हैं। इस दिसंबर के रविवार की ठंडी सुबह को उरुर कुप्पम में हमने ‘प्रश्न करने’ पर आधे दिन बात की। सुबह हमने ‘जिज्ञासा मानचित्र’ बनाया, जो जानने और जिज्ञासा की हमारी मांसपेशियों को सक्रिय रूप से मजबूत करने का एक अभ्यास है। सप्ताह भर से सिक्के जितने बड़े जेलीफ़िश जैसे जीव ब्लू बटन जो समुद्र की सतह पर तैरते रहते हैं, शहर के समुद्रतट के किनारे लग रहे थे – अमूमन यह घटना साल में दो या तीन बार होती है, कभी-कभी तेज़ ज़मीनी हवाओं या भूकंपीय घटनाओं की वज़ह से, और कभी कुछ अस्पष्ट कारणों से। हमने हालिया ब्लू बटन किनारे लगने के कारणों पर विचार किया, फिर इसके बारे में प्रश्न पूछे – जिसमें कब, क्यों, क्या, कैसे, कौन, और इन शब्दों के दायरे से परे कुछ प्रश्न किए। हमने यह सुनिश्चित किया कि हम उन सवालों से परे सवाल पूछेगें जिनके बारे में दिमाग आसानी से सोच सकता है और जिन्हें सोचने में दिमाग को थोड़ी मेहनत करनी पड़े, सचेतन रूप से हमारे उत्सुक होने या जानने की क्षमता को चुनौती दे रहे थे। फिर हम अपना-अपना जिज्ञासा मानचित्र बनाने के लिए समुद्र तट की ओर गए। सर्दियों का सूरज क्षितिज से थोड़ा ऊपर चढ़ चुका था और धूप गुनगुनी लग रही थी । कुछ मछुआरी-नावें सुबह-सुबह केकड़ा-जाल डालकर वापस आ रही थीं। एक समुद्री कछुआ ऑलिव रिडले मृत अवस्था में बहकर किनारे पर आ गया था, संभवतः किसी जाला फेंकने वाले जहाज़ के ट्रॉलर की टक्कर से उसके खोल के नीचे दाहिनी ओर चोट लगी थी। हम सोलह लोगों में से प्रत्येक ने तट पर एक प्राणी या दृश्य को चुना और उससे जुड़ी अपनी जिज्ञासा व्यक्त की। उन्हें उकेरा और रंगा, फिर सवालों का एक नक्शा बनाया, सचेतन रूप से हमारी जिज्ञासा को कम्फर्ट ज़ोन बाहर निकाल दिया। सजीले (डेकोरेटर) कृमि, छोटे-पतले-लंबे शंख, कौवे, सीपियाँ, भूतिया केकड़े (Ghost crabs), गूज़ बार्नेकल, सैंड स्टार फिश और एक समुद्री कछुए ने हमें अपने आश्चर्य करने, सवाल पूछने का अभ्यास करने में मदद की। “समुद्र के अंदर बार्नेकल सीपियाँ कैसे बनती हैं?” “कैसे कोई सीपी अपने खोल को अंदर से नरम और बाहर से सख्त बना देती है?” “कछुआ पानी के अंदर कितनी दूर तक देख सकता है?”, ” छोटे-पतले-लंबे शंख को पेंच जैसा आकार कैसे मिलता है?”, “इन खाली खोलों के अंदर के प्राणियों का क्या हुआ?”, “क्या कछुए सपने देख सकते हैं?”। रोज़ाना के जीवन में जानना, सवाल करना एक परिवर्तनकारी राजनीतिक कार्य है। वे पृथ्वी पर पूंजीवादी अस्तित्व की संरचनात्मक असमानताओं और पैटर्न को कायम रखने वाली सदियों पुरानी, अक्सर कालविरुद्ध, सामाजिक संरचनाओं और मिथकों को बदलने में मदद करते हैं। जिज्ञासा राजनीतिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक सतत पुनर्कल्पना को जीवित रखेगी – जो शायद एक सक्षम प्रजाति की पहचान है।

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