विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख (SPECIALLY WRITTEN FOR VIKALP SANGAM)
(Mahilaon ki Mehnat Rang Laayee)
दक्षिणी नागालैंड का एक छोटा गांव है चिजामी। यह गांव वैसे तो आम गांवों की तरह है लेकिन यहां होने वाले सामाजिक-आर्थिक बदलावों ने इसे खास बना दिया है। महिला अधिकारों से लेकर टिकाऊ खेती और परंपारिक आजीविका के कामों ने इसे एक आदर्श गांव बना दिया है। बुनाई-सिलाई जैसी पारंपरिक हस्तकला को पुनर्जीवित किया है। इसकी पहल खुद महिलाओं की, जिनकी मेहनत अब रंग लाने लगी है।
फेक जिले में है चिजामी। यहां 600 घर हैं और आबादी 3000 के आसपास है। यह पहाड़ और जंगल के बीच स्थित है। चिजामी, नागालैंड की राजधानी कोहिमा से 88 किलोमीटर दूर है। इसके पूर्व में कुंवारी नदी और पश्चिम में तुफाले नदी है। यहां अधिकांश लोग चाखेसांग जनजाति के हैं।
यह पूरी पहल नार्थ ईस्ट नेटवर्क ( एनईएन) ने की है। यह महिला अधिकारों पर काम करने वाली संस्था है। महिला स्वास्थ्य, पर्यावरण, प्राकृतिक संसाधनों का प्रबंधन और पर्यावरण शिक्षा पर काम करती है। एनईएन ने स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर जैव विविधता संरक्षण, टिकाऊ खेती और खाद्य संप्रभुता पर भी काम किया है।
यह संस्था 1995 से कार्यरत है। तीन राज्यों- असम, मेघालय और नागालैंड में काम करती है। इसकी संस्थापक सदस्य मोनिशा बहल हैं। मोनिशा ने स्थानीय शिक्षिका सेनो के साथ मिलकर इस इलाके में काम शुरू किया था। संस्था ने महिलाओं के सशक्तीकरण के लिए काम किए हैं, जिनमें से एक है चिजामी की पारंपरिक बुनाई। चिजामी में एनईएन का मुख्य कार्यालय है और बुनाई-सिलाई प्रशिक्षण केन्द्र भी है।
एनईएन सेंटर में चिजामी बुनाई का प्रशिक्षण
यह इलाका पहाड़ी है। यहां झूम खेती होती है। लेकिन खेती के काम के बाद भी काफी खाली समय होता है, उसमें महिलाएं घरों में बुनाई का काम करती थीं। आम तौर पर अप्रैल से अक्टूबर तक महिलाओं का काम खेती-किसानी में होता है। और इसके बाद वे नवंबर से मार्च तक बुनाई का काम करती हैं।
यहां विशेष नागा हथकरघे पर जिसे अंग्रेजी में लोइन लूम कहते हैं, पर बुनाई की जाती है। पारंपारिक पोशाकों की बुनाई पहले भी होती थी लेकिन वह परिवार और त्यौहारों की जरूरत के लिए महिलाएं करती थीं। एनईएन की पहल के बाद अब यहां के उत्पाद सबके लिए उपलब्ध हैं। पारंपरिक परिधानों से लेकर अब घर की सजावट के लिए फैशनपरस्त सामान और पोशाक सामग्री के कई उत्पाद बनाती हैं।
वर्ष 2008 में 7 महिलाओं के साथ शुरू हुई इस यात्रा में आज 600 महिलाएं जुड़ चुकी हैं। फेंक जिले के करीब 14 गांवों में इसका नेटवर्क है। यहां के विशेष हथकरघे से बने उत्पादों को बढ़ावा दिया गया है। जिसमें परंपरागत नागा शाल और मेखला प्रमुख हैं। इसके अलावा, बेल्ट, झोला, मफलर, बटुआ, टेबल रनर,शाल, कुशन कवर आदि शामिल हैं। इनमें ये सभी उत्पाद कई तरह की डिजाइन में उपलब्ध हैं।
इन उत्पादों को प्रदर्शनियों में, मेलों में और एनईएन के चिजामी, कोहिमा और गुवाहाटी कार्यालयों से खरीदा जा सकता है। इसके साथ ही मुंबई, दिल्ली, गोवा और गुवाहाटी की चुनिंदा दुकानों में भी उपलब्ध हैं।
बुनाई घरों में होती है और उत्पाद बनाकर एनईएन केन्द्र में देते हैं। इन केन्द्रों में उत्पादों की गुणवत्ता की जांच कर निर्धारित राशि का भुगतान किया जाता है।
चिजामी गांव की खरोलो यू कहती हैं कि वे इस काम से 10 साल से जुड़ी हैं और यह कई तरह से मददगार है। उनकी बेटी की पढ़ाई में मदद मिली। उनका कई कार्यक्रमों से आत्मविश्वास बढ़ा। आगे वे कहती हैं कि शुरूआत में इस काम को परिवार में पसंद नहीं किया जाता था, लेकिन जब इससे आय बढ़ने लगी तो इसे मान्यता मिलने लगी।
इस कार्यक्रम से जुड़ी अपेले ने बताया कि हमने पुराने परंपरागत घर की बुनाई को पुनर्जीवित किया। इसके लिए मुंबई और दिल्ली से विशेषज्ञों व डिजाइनरों की मदद ली गई। और कई तरह के उत्पाद विकसित किए। और लाल, काले और सफेद के अलावा दूसरे रंग भी आजमाए हैं।
घरों में बुनाई की तैयारी
हथकरघे पर काम
कुल मिलाकर, इस पूरे काम से कुछ बातें कही जा सकती हैं। चिजामी की बुनाई का यह काम टिकाऊ आजीविका है, विशेषकर उन महिलाओं के लिए जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं। इससे नागालैंड की पारंपरिक हस्तकला का संरक्षण हुआ है। नागाओं के विशेष हथकरघे से बने उत्पादों को देश-दुनिया के बाजारों में पहुंचाया गया है।
इसका एक उद्देश्य नई पीढ़ी को परंपरागत हस्तकला का कौशल हस्तांतरित करना है। नई युवा पीढ़ी को इस हुनर को सिखाना है, उन्हें प्रशिक्षित करना है। चिजामी के बुनाई सिलाई केन्द्र में आसपास के गांवों व कस्बों की युवतियां प्रशिक्षण लेती हैं। महिलाएं आत्मनिर्भर हुई हैं जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है। बच्चों की शिक्षा बेहतर हुई है। उनमें नेतृत्व क्षमता का विकास हुआ है। युवाओं की बेरोजगारी कम हुई है। यह चिजामी का माडल सराहनीय होने के साथ साथ अनुकरणीय भी है। बच्चों के स्कूली पाठ्यक्रम में भी इसे शामिल किया जा सकता है।
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