अच्छी सेहत के लिए साइकिल जरूरी (In Hindi)

By बाबा मायारामonMay. 16, 2024in Health and Hygiene

(Acchi Sehat Ke Liye Cycle Jaruri)

हाइन दिनों गांवों से लेकर शहरों तक मोटरसाइकिल का तेजी से चलन बढ़ रहा है

साइकिल एक बहु उपयोगी वाहन है। इसकी उपयोगिता कई रचनात्मक कामों में भी सामने आती रही है। हमारे गांव के पास एक स्वयंसेवी संस्था थी, यह 80 के दशक की बात है। इस संस्था की एक गतिविधि सचल पुस्तकालय (मोबाइल लाइब्रेरी) हुआ करती थी। संस्था के कार्यकर्ता साइकिल से गांवों में जाते थे, और लोगों को पढ़ने के लिए किताबें देते थे। इन किताबों में अच्छा साहित्य होता था। दूरदराज के गांवों में किताबें उपलब्ध कराने की यह अनूठी पहल थी।

हाइन दिनों गांवों से लेकर शहरों तक मोटरसाइकिल का तेजी से चलन बढ़ रहा है। लेकिन फिर भी साइकिलों का अपना विशेष स्थान है, बल्कि अब इसे आत्मनिर्भरता के साथ अच्छी सेहत के लिए जरूरी माने जाने लगा है। वैश्विक महामारी के बाद से मैंने भी साइकिल चलाना शुरू किया है, जिससे न केवल मुझे स्वस्थ रहने में मदद मिली है, बल्कि प्रकृति और परिवेश से जुड़ने का मौका भी मिला है। जनसाधारण लोगों से मिलने और बात करने का अवसर मिला है। 

मध्यप्रदेश के सतपुड़ा पहाड़ की तलहटी में स्थित कस्बे में मेरा निवास है। मैं रोज सुबह साइकिल की सैर करता हूं। कस्बे से पांच किलोमीटर दूर एक पहाड़ी नदी तक जाता हूं और वहां से लौटकर आता हूं। इस पहाड़ी नदी का नाम मछवासा है। पहले यह नदी बारहमासी हुआ करती थी, पूरे साल भर बहती थी, अब बरसाती हो गई है। लेकिन बारिश के दिनों में इस नदी का सौंदर्य देखते ही बनता है। विशेषकर, कस्बे के ऊपर के गांवों में इसे देखना मनमोहक होता है। चारों तरफ हरियाली, कल-कल बहती नदी, घास की सरसराहट और हवा की खुशबू होती है। एक ओर चिड़ियों का गीत सुनाई देता है, दूसरी ओर पेड़ों की चमकीली पत्तियां, कीट-पतंगों की भिनभिनाहट और पानी की झिलमिलाहट खींचती है। बारिश से धुली साफ-सुथरी सड़क, पेड़ों से लटकते पक्षियों के घोंसले, आकाश में बादलों के सफेद गोले और मोतियों सी ओंस की बूंदें लुभाती हैं, तो खेतों में घूमते सियार, रास्ता भटके हिरण, खेतों में दाना चुगते मोर, बंदरों की उछल-कूद और लोमड़ियां दौड़ते दिख जाती हैं। 

जो जंगल गर्मी में उदास और बेजान से दिखते हैं, वे बारिश के आते ही हरे-भरे और सजीव हो उठते हैं। मौसम में नई बहार आ जाती है। हाल ही में बेमौसम बारिश में भी कुछ ऐसा ही नजारा था। हालांकि बेमौसम बारिश के नुकसान भी हैं। इसके अलावा, खेतों में काम करते किसान, सब्जी वाले, दूध वाले, बकरी चराने वाले, चरवाहे, स्कूली बच्चे, नर्मदा की परकम्मा (परिक्रमा) पर निकले श्रद्धालुओं से साक्षात्कार होता रहता है। नर्मदा नदी पवित्र मानी जाती है, इसकी लोग पैदल परकम्मा करते हैं। नर्मदा इस इलाके के उत्तर से गुजरती है। जबकि दक्षिण में सतपुड़ा की पहाड़ियां हैं।

बहुत लम्बा अरसा नहीं हुआ, जब साइकिल प्रतिष्ठित व्यक्तियों की पहचान हुआ करती थी। हालांकि उस समय साइकिलें कम होती थीं और दुकानों से किराये से मिलती थीं। पर साइकिलों का बोलबाला था। उनका सफर सपना होता था। लेकिन दो दशक पहले से साइकिलों के चलन में बड़ी कमी आई है और मोटर कार, मोटरसाइकिल. स्कूटर व अन्य वाहनों की बाढ़ आ गई है। साइकिल पीछे हो गई हैं और कारें आगे हो गई हैं। यह एक तरह से वैश्वीकरण का नतीजा भी है।

साइकिल से मोटरसाइकिल या कारों की ओर रूझान बढ़ना अचानक व स्वाभाविक नहीं है बल्कि इसके पीछे सरकारी नीतियां भी हैं। वेतनमानों में वृद्धि है। नई-नई चिकनी चौड़ी सड़कों व राजमार्गों, फ्लाईओवरों का बनना है। इसका एक नतीजा यह हुआ है कि सड़क दुर्घटनाएं बढ़ी हैं।

कोविड-19 के बाद से साइकिलों के प्रति लोगों का रूझान फिर से बढ़ा है। अच्छी सेहत व फिटनेस के प्रति सजगता आई है। इसके बाद से लोगों ने सुबह-शाम घूमना, साइकिल से सैर करना और प्रकृति के साथ समय गुजारना शुरू किया है। साइकिल मरम्मत करने वाले कहते हैं कि पहले की अपेक्षा अब साइकिलों की मांग बढ़ गई है। महामारी के दौरान जब तालाबंदी हुई थी, तब शहरों से पैदल चलकर या साइकिल यात्रा करके लोग उनके घरों तक पहुंचे थे। सड़कों पर पैदल यात्रियों व साइकिल सवारों का तांता लग गया था। इससे साइकिल जैसे वाहनों का महत्व और स्पष्ट रूप से समझ आया है।

साइकिल एक बहु उपयोगी वाहन है। इसकी उपयोगिता कई रचनात्मक कामों में भी सामने आती रही है। हमारे गांव के पास एक स्वयंसेवी संस्था थी, यह 80 के दशक की बात है। इस संस्था की एक गतिविधि सचल पुस्तकालय (मोबाइल लाइब्रेरी) हुआ करती थी। संस्था के कार्यकर्ता साइकिल से गांवों में जाते थे, और लोगों को पढ़ने के लिए किताबें देते थे। इन किताबों में अच्छा साहित्य होता था। दूरदराज के गांवों में किताबें उपलब्ध कराने की यह अनूठी पहल थी।

इसी तरह, संस्था की एक और गतिविधि थी, गांवों में दवाई सुविधा का संचालन करना। हर सप्ताह गांव में एक दिन संस्था की डॉक्टर आती थीं और लोगों की छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज करती थीं। वह महिला डॉक्टर साइकिल से आना-जाना करती थीं, जो उन दिनों कौतूहल का विषय हुआ करता था। डाकिया तो साइकिल से डाक लाता ही था। शहर से स्कूल शिक्षक भी साइकिल से आते थे।

इसी प्रकार, देश में साक्षरता अभियान में भी साइकिलों का प्रयोग किया गया। महिलाओं को सशक्त और आत्मनिर्भर बनाने में भी इसने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनकी स्वतंत्रता की तो साइकिल प्रतीक है। जो महिलाएं आमतौर से घर से नहीं निकल पाती थीं, साइकिल ने उनकी दुनिया को बड़ा बनाया। कई महिलाएं साइकिलों से शहर में काम करने करने जाती हैं, दफ्तर जाती हैं। स्कूली लड़कियों के लिए तो कई प्रदेश सरकारों ने योजनाएं शुरू की हैं।

औद्योगिक शहरों में मजदूरों के लिए साइकिल की सवारी आम बात थी। सुबह-शाम मजदूरों की साइकिलें सड़कों पर दौड़ती थीं। एक अलग ही नज़ारा हुआ करता था। मध्यप्रदेश के इंदौर,जबलपुर और छत्तीसगढ़ के भिलाई के आसपास ऐसे दृश्य आम थे। साइकिल ही ऐसे शहरों की पहचान हुआ करती थी।

आजादी के शुरूआती दशक में भारतीय सिनेमाओं में भी साइकिल दिखती थीं। कई गानों में साइकिल के दृश्य होते थे। गांव, पेड़, खेत-खलिहान, पशु-पक्षी सब दिखते थे। लेकिन अब कम दिखाई देते हैं। शहरों व छोटे कस्बों के सिनेमाघरों में भी बड़ी संख्या में दर्शकों की भीड़ उमड़ती थी, जिनमें से अधिकांश साइकिल सवार होते थे। दूरदराज़ के गांवों से लोग लम्बी यात्राएं करते थे। साइकिल, एक सुलभ व सस्ता वाहन था, और आज भी है।

पर्यावरण और जन स्वास्थ्य की दृष्टि से देखें तो साइकिलें बेहतर वाहन हैं। पर्यावरण की मित्र हैं। यह हाथ-पैर की ताकत से चलती हैं। इसे चलाने के लिए किसी प्रकार के ईंधन की जरूरत नहीं है। इससे किसी भी तरह का प्रदूषण नहीं होता है। प्रकृति को इससे कोई खतरा नहीं है। जबकि मोटर-कारों का जलवायु परिवर्तन में बड़ा योगदान है। तेल के दाम बढ़ते जा रहे हैं और तेल के भंडार खत्म होने की कगार पर हैं। अगर हम साइकिलों का उपयोग करें तो हमें मोटरवाहनों में प्रयोग होने वाला पेट्रोल व डीजल को आयात नहीं करना पड़ेगा या कम से कम करना पड़ेगा।

अच्छी सेहत के लिए साइकिल चलाना जरूरी है। साइकिल चलाने वालों को अलग से शारीरिक कसरत की जरूरत नहीं होती, क्योंकि इससे मांसपेशियों की अच्छी कसरत हो जाती है। मोटरसाइकिल की अपेक्षा साइकिल काफी हल्की होती हैं, इसे बच्चे से लेकर बुजुर्ग भी चला सकते हैं। सड़क हादसों का जोखिम भी नहीं रहता। अगर साइकिल से गिर भी जाएं तो ज्यादा चोट नहीं आती। इसके रखरखाव व मरम्मत में भी ज्यादा पैसे खर्च नहीं होते। साइकिल के लिए पार्किंग की समस्या नहीं है। न तो खड़ी करने के लिए और न ही सड़क पर चलाने के लिए इसे ज्यादा जगह चाहिए। इसे घर में रखा जा सकता है। जबकि कारों के लिए सड़क पर, पार्किंग में सभी के लिए जगह चाहिए,जो एक बड़ी समस्या है।

साइकिल से सड़क जाम होने की समस्या नहीं है। इसे संकरे रास्तों व गलियों में चलाया जा सकता है। अगर इसके लिए अलग से लेन हो तो, न तो यह दूसरे वाहनों की गति में रूकावट होगी और न ही साइकिल चलाने वालों को असुविधा का सामना करना पड़ेगा। साइकिल उनके लिए भी अच्छी है, जो भीड़ से बचना चाहते हैं। इससे बेरोजगारी को कम करने में मदद मिलती है। साइकिल निर्माण, मरम्मत और खरीद-बिक्री के धंधे में सैकड़ों लोगों को रोजगार मिलता है। साइकिल मरम्मत की दुकान बहुत ही सस्ते में शुरू की जा सकती है, ज्यादा पूंजी की जरूरत नहीं होती।

सड़कों पर वाहनों का बोझ बढ़ता जा रहा है। सड़क जाम, दुर्घटनाएं, प्रदूषण की खबरें आती रहती हैं। साइकिल के चलन इन सभी में कमी आ सकती है। छोटे व कस्बों में इन्हें बढ़ावा दिया जा सकता है। साइकिल गरीबों की ही नहीं, सबकी पसंद बनती जा रही है। 3 जून को विश्व साइकिल दिवस भी मनाया जाने लगा है। इसलिए हमें भी साइकिलों को बढ़ावा देना चाहिए। साइकिल का प्रचार करना चाहिए। सड़कों पर पैदल व साइकिलों के लिए अलग से लेन बनाने की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। 

कुल मिलाकर, हमें सादगीपूर्ण और पर्यावरण के अनुकूल और टिकाऊ जीवनशैली की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। इस दृष्टि से साइकिल एक आदर्श वाहन है, विशेषकर, कम दूरी के लिए, इसे बढ़ावा देना चाहिए। यह एक स्वस्थ और स्वच्छ समाज का वाहन है। लेकिन क्या हम प्रदूषणमुक्त शहर बनाने और अच्छी सेहत के लिए इसे अपनाएंगे?

27 अप्रैल, 2024 को देशबन्धु द्वारा पहली बार प्रकाशित.

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