सूखे का मुकाबला कैसे कर रहे हैं आदिवासी? (In Hindi)

By बाबा मायारामonNov. 16, 2023in Environment and Ecology

विकल्प संगम के लिए लिखा गया विशेष लेख (Specially written for Vikalp Sangam)

(Sukhe Ka Mukaabla Kaise Kar Rahe Hain Adivasi?)

फोटो क्रेडिट: राजेन्द्र गढ़वाल

आदिवासियों ने श्रमदान से तालाब बनाकर मिट्टी-पानी का संरक्षण किया और हरियाली बढ़ाई

मध्यप्रदेश में बैतूल जिले के एक गांव में जल संरक्षण और फलदार पेड़ों के लगाने से नई उम्मीद दिख रही है और छोटे किसानों के चेहरे पर भी मुस्कुराहट नजर आ रही है। यहां श्रमदान से तालाब बनाने का काम हुआ है। अब इन तालाबों में वर्षा का अधिक जल एकत्र होने लगा है। पानी वर्ष भर जमा रहने लगा है। इससे धरती में पानी रिचार्ज हुआ, और कुओं का जल-स्तर ऊपर आया है। मनुष्यों के साथ पशु-पक्षियों को भी पानी मिलने लगा है। 

इस पहल की शुरूआत श्रमिक आदिवासी संगठन और समाजवादी जनपरिषद ने मिलकर की है। यह संगठन पिछले डेढ़ दशक से प्रतिवर्ष हरियाली महोत्सव कार्यक्रम चला रहा है, जिसके तहत् गांव-गांव में हरियाली यात्रा निकाली जाती है। इस दौरान संगठन ने 50 हजार से अधिक पेड़ लगाए गए हैं। अब इसी से प्रेरणा लेकर घोड़ाडोंगरी विकासखंड के मरकाढाना (माडूखेड़ा) के लोगों ने तालाबों का निर्माण किया है जिससे जल-संरक्षण का काम स्थायी रूप से हो सके।

माडूखेड़ा (मरकाढाना) में ग्रामीण

सतपुड़ा अंचल का यह पूरा इलाका पहाड़ी और असिंचित है। यहां के बाशिन्दे गोंड और कोरकू आदिवासी हैं। यह क्षेत्र लगातार सूखा प्रभावित रहता है। यहीं से पानी बहकर तवा बांध में इकट्ठा होता है और सैकड़ों एकड़ खेतों की सिंचाई होती है। लेकिन यहां के खेत, निवासी व मवेशी प्यासे रह जाते हैं। बारिश यहां अच्छी होती है, लेकिन सारा पानी बह जाता है। पहाड़ी इलाका होने से जहां भूगर्भ के जल को निकालना टेढ़ा काम है, वहीं छोटे-छोटे संग्रह लायक तालाबों की जगहें मिल सकती हैं, जिनसे सिंचाई हो सकती है।

इस साल भी हरियाली यात्रा का आयोजन एक माह तक चला। जिसके तहत् बैतूल में 20 जुलाई, चूना हजूरी में 29 जुलाई, बीजादेही में 5 अगस्त और शाहपुर में 8 अगस्त को रैली हुई इस अवसर पर अंग्रेजों के समय वर्ष 1930 में हुए जंगल सत्याग्रह को याद किया गया। इन सभी जगहों पर साप्ताहिक हाट लगते हैं, जिसमें बड़ी संख्या में आदिवासी एकत्र होते हैं। इस कार्यक्रम में आदिवासी फलदार पौधे लेकर आए थे और उन्होंने गांव के आसपास, खेतों व जंगल को हरा-भरा करने का संकल्प लिया था। 

श्रमिक आदिवासी संगठन के राजेन्द्र गढ़वाल ने बताया कि फलदार पेड़ों के साथ आदिवासी देसी सब्जियों की खेती भी कर रहे हैं। जिससे कोविड-19 की महामारी के दौरान इससे काफी मदद मिली थी। उन्होंने खुद भी सब्जियां खाईं थीं और अतिरिक्त होने पर बेचकर आमदनी हासिल की थी। यह पूरा अभियान बैतूल,हरदा, खंडवा जिले में चल रहा है, अब इसमें जल संरक्षण का काम भी जुड़ गया है। इसे पानी रोको अभियान का नाम दिया गया है।

पेड़ों के साथ हरियाली रैली

वे आगे बताते हैं कि पहले यहां जंगल हरा-भरा हुआ करता था। कई कारणों से अब जंगल उजड़ गया है। यहां के लोग कई पीढ़ियों से जंगल में रहते आए हैं। आदिवासी स्वभाव से प्रकृति प्रेमी होता है। जंगल ही उनका मायका और जंगल ही ससुराल है। पहले सारा जंगल आम, आंवला, महुआ, जामुन, बील और हर्रा अन्य फलदार व छायादार पेड़ों से भरा था,उससे भरपूर फल खाने को मिलते थे। लेकिन अब जंगलों में इसकी कमी हो रही है। इसलिए हमने फिर इसमें हरियाली लाने का संकल्प लिया है, जिससे फल खाने को मिलेंगे,इन्हें बेचकर आमदनी बढ़ेगी और भूख भी मिटेगी।

वे आगे बताते हैं कि बैतूल जिले के इस गांव मरकाढाना में पानी की बहुत समस्या थी। इसलिए लोगों ने श्रमदान कर एक छोटे डेम बनाने की सोच बनाई और फिर कुछ ही दिनों में इसे पूरा कर लिया। गांव के लोग पहले से ही संगठन से जुड़े थे, इसलिए उनमें सामूहिक एकता थी और इसके बाद उन्होंने गांव के आसपास 8 तालाब बना लिए हैं जिससे पानी की समस्या हल हो गई है। 

गांव के सुमरलाल सेलूकर, सुभन और भंगूलाल ने बताया कि सबसे पहले हमने गांव में बैठक की। आसपास घूमकर देखा कि कहां पर बारिश का पानी कहां एकत्र होता है, और कहां तालाब बनाना ठीक रहेगा, इसके बाद काम शुरू किया। इसमें गांव के बुजुर्ग जानकार लोगों की मदद ली। गांव के लोग सुबह-सुबह श्रमदान करते थे जिसमें महिलाएं और बच्चे भी शामिल होते थे। बहुत उत्साह का माहौल हुआ करता था।

वे आगे बतलाते हैं कि सुबह लोग कुदाल फावड़ा लेकर आते थे। 20-25 महिला-पुरूषों की टोली को एक तालाब बनाने में 3-4 महीने लग जाते थे। अब छोटे-बड़े 8 तालाब बना लिए हैं। पशु-पक्षी पानी पीते हैं। हम सब्जी बाड़ी करते हैं और फसलों की सिंचाई भी कर लेते हैं। अब धान, ज्वार, मक्का, तुअर की खेती भी होती है। धान में तालाब से ही पानी देते हैं।

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Yudhvir Singh Chaudhary November 16, 2023 at 4:07 pm

Good Hindi short sentences make for easy reading.