मरुभूमि में पानी की रिश्तेदारी (In Hindi)

By बाबा मायारामonDec. 11, 2022in Environment and Ecology

विकल्प संगम के लिए लिखा गया विशेष लेख (Specially written for Vikalp Sangam)

(Marubhoomi Mein Paani Ki Rishtedaari)

सभी फोटो: दिलीप बीदावत 

शाम का समय है। तालाब के पनघट पर पनिहारिनों की भीड़ लगी है। वे घड़े लेकर पानी भरने आ-जा रही हैं। पानी को कपड़े से छानकर भर रही हैं। आपस में बतिया रही हैं, सुख-दुख बांट रही हैं। यह कोई गुजरे जमाने की बात नहीं है, बल्कि पनघट पर यह रोज़ की बात है। पश्चिमी राजस्थान के नागौर जिले के रोल गांव में यह दृश्य आम है। ऐसा नजारा सुबह-शाम देखा जा सकता है। यह तालाब बरसों से पीने के पानी का स्रोत बना हुआ है। इसकी साफ-सफाई से लेकर प्रबंधन तक के कामों की जिम्मेदारी गांव के लोगों की है।

रोल तालाब में पानी भरती महिलाएं

अरावली पर्वतमाला के पश्चिम में है नागौर जिला। इस जिले का छोटा सा गांव है रोल। इस गांव का तालाब बहुत पुराना है। ऐसा कहा जाता कि यह तालाब किसी बंजारे ने बनवाया था। यह बंजारे सैकड़ों पशु लेकर चलते थे। जगह-जगह उनका पड़ाव होता था, जहां वे ठहरते थे। अगर ऐसी जगह पानी के लिए तालाब नहीं होते तो वे तालाब बनवाते थे।

गांववालों के अनुसार, बहुत पुरानी बात है, यहां भी पशुओं को लेकर बंजारों ने डेरा डाला था। लेकिन पीने का पानी नहीं था। वे यहां रहनेवाले एक पीर के पास पहुंचे। पीर ने कांसे का एक कटोरा दिया, जिससे बंजारे ने मिट्टी खोदी तो पानी निकल आया। इस तरह बंजारों ने तालाब खुदवाया, जो आज भी लबालब भरा रहता है। बारह महीनों इसका पानी नहीं सूखता है। इस तालाब का नाम कांसोलाब पड़ा, क्योंकि कांसे के कटोरे से खोदने पर पानी निकला था। राजस्थान व देश के कई हिस्सों में भी ऐसे बंजारों और चरवाहों के द्वारा खुदवाए गए तालाब बड़ी संख्या में मिल जाएंगे।

मरुभूमि का यह इलाका सबसे कम बारिशवाले इलाकों में एक है। लेकिन यहां पानी का संकट इतना बड़ा नहीं है। यहां के लोगों ने कम बारिश में भी उसकी बूंदों को सहेजकर जीवन चलाना सीखा है, जो उनकी परंपराओं में दिखता है। इसलिए पानी पर लोकगीत भी हैं और पानी सहेजने के कई पारंपरिक ढांचे भी हैं। यह सब लोगों ने अपने श्रम, कौशल, अनुभव से न केवल बनाए हैं बल्कि बरसों से संभाले और एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाएं हैं। 

यह पूरी पट्टी खारेपानी की है। भूजल खारा होने के कारण पानी बहुत गहराई में मिलता है, जिसे निकालना काफी महंगा होता है। बारिश बहुत ही कम होती है। लेकिन इसके बावजूद गांव-समाज व स्थानीय समुदायों ने बारिश की बूंद बूंद को सहेजा है। पानी के स्रोत जैसे नाड़ी, ताल-तलाई, बंध-बंधा, तालाब, झील, खडीन इत्यादि को बचाकर रखा है।   

इस वर्ष जुलाई महीने मे मैंने पश्चिमी राजस्थान के तीन जिलों का दौरा किया, जिनमें बाड़मेर, नागौर व जोधपुर शामिल हैं। इन जिलों के कई गांवों में जाकर बरसों पुराने तालाब देखें। इन तालाबों में सौ साल से लेकर हजार साल पुराने तालाब भी थे। इन तालाबों की सार-संभाल, रखरखाव, प्रबंधन गांव के लोग करते हैं। लेकिन इस काम को गति तब मिली, जब इस क्षेत्र में कार्यरत उन्नति,विकास शिक्षण संगठन, जोधपुर व उरमूल खेजड़ी संस्थान, झाड़ेली (नागौर) ने इसमें मदद की। संस्था ने जल प्रबंधन के काम को व्यवस्थित करने के लिए जल सहेली का गठन किया है। चूंकि पानी के साथ महिलाओं को रिश्ता अपनापन का होता है, इसलिए तालाबों के प्रबंधन व रखरखाव की पहल में महिलाओं को जोड़ा है। जल सहेली की सदस्य पंचायत के साथ मिलकर तालाब प्रबंधन में मदद कर रही हैं।

जैसलमेर में सामुदायिक बैठक

उन्नति संस्था के दिलीप बीदावत ने बतलाया कि हमने वर्ष 2019 से वर्ष 2022 तक की समयावधि में मरुस्थल के 6 जिलों के 350 गांवों में शामलात शोधयात्रा की, जिसमें जलस्रोतों की प्रबंधन व्यवस्था को समझने का प्रयास किया। यात्रा में अलग-अलग क्षेत्रों के 30 ऐसे तालाबों की पहचान की गई, जिनकी प्रबंधन व्यवस्था काफी मजबूत थी। इन 30 तालाबों के दस्तावेजीकरण का कार्य उन्नति व डेजर्ट रिसोर्स सेंटर, बीकानेर द्वारा किया गया। इनमें से 5 उत्कृष्ट प्रबंधन व्यवस्था वाले तालाबों सहित कुल 16 तालाबों को वाटर लीडर्स सम्मेलन, जोधपुर (25-26 नवंबर) में सम्मानित किया गया।

वे आगे बतलाते हैं कि किसी भी तालाब का आंकलन करने के लिए उसका भराव, पाल, अगोर और पानी का न्यायपूर्ण वितरण देखा जा सकता है। और जिसका समुदाय रखरखाव व प्रबंधन अच्छा करेगा, वही तालाब बेहतर कहलाएगा। इसमें महिलाओं को जोड़ने की संस्था पहल कर रही है, इसलिए हमने गांव-गांव में जल सहेलियों का गठन किया है, जिसके माध्यम से तालाब के प्रबंधन व रखरखाव में महिलाओं की भूमिका हो। इन सबके मद्देनजर ही बेहतर तालाबों का चयन किया गया। इससे तालाब की पानीदार परंपरा को कायम रखने की प्रेरणा मिलेगी।

रोल का तालाब

रोल गांव के लोगों ने बुद्धि व कौशल से बारिश के पानी का संग्रहण व तालाब का अच्छा प्रबंधन किया है। इसके लिए नियम-कायदे बनाए गए हैं। गांव के मांगीलाल बताते हैं कि इस तालाब का नाम कांसोलाब तालाब है। इसका पानी स्वास्थ्य के लिए बेहतर है। इस तालाब का जैसा ख्याल पूर्वजों ने रखा है, उसी तरह गांव के लोग भी इसकी हिफाजत करते हैं। गांव-समाज मिलकर सार-संभाल करता है। इस तालाब का तीन पीढी से पानी खत्म नहीं हुआ है। गांव में जो भी रिश्ते नए बनते हैं, वह सब पानी की वजह से होते हैं। जिन गांवों में पानी नहीं है, उन गांवों में रिश्ते व शादी-विवाह करने से लोग बचते हैं, पर इस गांव में ऐसी नौबत अब तक नहीं आई। लोगों ने बताया कि तालाब के कारण उनके लड़कों के रिश्ते आसानी से हो जाते हैं। वे कहते हैं कि बेटी देनी है तो रोल में दो, वहां उसे मीठा पानी मिलेगा।

मांगीलाल बताते हैं कि तालाब का आगौर क्षेत्र 500 बीघा है। इसकी गहराई 24 फुट है, 20 बीघा भराव क्षेत्र है। आगौर क्षेत्र अब तक अतिक्रमण मुक्त है, यदि कोई अतिक्रमण का प्रयास करता है तो गांव के मुखिया उसे रोकते हैं। इस तालाब का सीमा ज्ञान नहीं है, पर यह राजस्व में रिकार्ड दर्ज है। पंचायत की तरफ से कुछ स्थानों पर तारबंदी की गई है, खाई खोदी गई है और पाल बनाई गई है, जिससे अतिक्रमण रोका जा सके। इन व्यवस्थाओं में सुधार का मुख्य कारण है कि आसपास में पानी का संकट दिनोंदिन बढ़ रहा है। यहां से 15-20 गांव पानी ले जाते हैं। 15 साल पहले एक बार माटी निकालना तय किया गया था तो पानी निकालकर माटी निकाली थी। ट्रेक्टर ट्राली से माटी निकाली गई थी, जिसे लोगों ने खेतों में डाला था। तालाब की मिट्टी काफी उपजाऊ मानी जाती है।

इस तालाब के पास हनुमान जी, महादेव जी, मूराशहीद बाबा का मंदिर, पीर पहाड़ी है। गांव में जब मेला लगता है तब दरगाह कमेटी की तरफ से 20-30 आदमी रखते हैं जो तालाब की व्यवस्था में भागीदार होते हैं। मेला तालाब के पास नहीं लगने देते। पहले तालाब के किनारे मेला लगता था, अब दूर लगता है जिससे तालाब में किसी प्रकार की गंदगी न हो।

आमीसुद्दीन ने बतलाया कि तालाब के प्रति गांव की आस्था है। यदि कोई हमारे गांव के बाहर रहता है, उनकी धारणा है कि अगर वे यहां आकर इस तालाब का पानी पी लें तो बीमारी दूर हो जाएगी। तालाब का पानी मीठा है, बिलकुल शरबत की तरह। पत्रकार श्रवण मेघवाल ने बतलाया कि इस तालाब में सालभर पानी रहता है, क्योंकि इसके पैंदे में लाल मिट्टी है, जो सीमेंट की तरह पानी को रोककर रखती है। पहले तालाब गहरीकरण का काम हुआ था। तालाब की स्वच्छता व सौंदर्यीकरण के लिए पंचायत में प्रस्ताव पारित हुआ था, नियम-कायदे बने थे। इन पर सख्ती से अमल किया जाता है।

मांगीलाल ने नियम कायदों के बारे में बताया कि पशु अंदर जाना, नहाना, पैर धोना, झूठे बर्तन धोना आदि मना है। तालाब क्षेत्र में शौच जाना मना है। शादी-विवाह इत्यादि में पहले लोगों को सूचित किया जाता है कि वे तालाब के आसपास गंदगी न करें। पहले किसी की मृत्यु हो जाती थी तो तालाब में स्नान करते थे लेकिन अब केवल हाथ धोकर चले जाते हैं। इसके साथ ही, हर अमावस्या पर सफाई होती हैं। इसी प्रकार, मनरेगा (MNREGA) के तहत् माह में एक बार आगौर की साफ-सफाई करवाते हैं। तालाब का पानी टैंकरों से ले जाना मना है। केवल घड़े या छोटी टंकी से ले जा सकते हैं। तालाब प्रबंधन के लिए एक व्यक्ति निगरानी रखते हैं। तालाब को लेकर जरूरत के हिसाब से बैठकें होती हैं।

सरपंच प्रतिनिधि सहीराम ने बताया कि पिछले साल अंगौर क्षेत्र में 500 पेड़ लगाए हैं, इस बार भी लगाए जा रहे हैं। इस पूरी पहल से स्कूली बच्चों व युवाओं को भी जोड़ा जा रहा है। स्कूली बच्चों के साथ तालाब के बारे में चर्चा होती है, वे भी जानते हैं।

सांगरानाडी में सामुदायिक बैठक

इसी प्रकार मैंने कई और गांव के तालाब देखें। नागौर जिले के मुन्दियाड़, चावली, गुगरियाली, रामसर, झुंझाला और नराधणा गांव तालाब की शानदार पानीदार परंपराएं हैं। इसके अलावा, बाड़मेर जिले के सिंणधरी, बिलासर, सिरलाई गांव के तालाब भी देखे। डंडाली गांव में सिरलाई नाडी के अतिरिक्त समुदाय व ग्राम पंचायत ने 32 तालाबों, नाडियों को उपयोगी बनाया है और उनकी प्रबंधन व्यवस्था की है। बाड़मेर जिले के पाटोदी प्रखंड के इकडाणी, चिलानाडी, भंवरला नाडा दुर्गापुरा भी देखे। इकडाणी तालाब की मजबूत प्रबंधन व्यवस्था समुदाय करता है।

रामसर का तालाब

नागौर जिले का एक और छोटा गांव है रामसर। यहां के तालाब की सार-संभाल का जिम्मा युवाओं ने ले लिया है। वे न केवल इस तालाब की देखरेख कर रहे हैं बल्कि उसके आसपास पौधारोपण की मुहिम चला रहे हैं। इस मुहिम का फौरी असर यह हुआ है कि तालाब तो स्वच्छ व साफ है ही,पक्षी भी बहुत हैं। इस क्षेत्र के युवाओं में पर्यावरण के प्रति जागरूकता भी दिखाई दे रही है।

रामसर तालाब पुराना है। इसकी गहराई लगभग 50 फुट है और इसका आगौर है 1100 बीघा जमीन का, जो दस्तावेजों में दर्ज है। यह तालाब भव्य व सुंदर है, तालाब की पाल के किनारे पुराने खेजड़ी के पेड़ों की पंक्तियां हैं। लेकिन यहां युवाओं की पर्यावरण संस्था ने 300 से ज्यादा पेड़ नए भी लगाए हैं और ट्री गार्ड से उनकी सुरक्षा भी की है। इन हरे-भरे पेड़ों के कारण सैकड़ों की संख्या में पक्षियों का कलरव बरबस ही खींचता है। यहां मोर, उल्लू, तीतर, सोन चिडिया काफी दिखाई देते हैं। इसके अलावा, हिऱण भी कुलांचे भरते दिख जाते हैं। 

पर्यावरण संस्था से जुड़े मुकेश गोड बताते हैं कि तालाब के किनारे लगे खेजड़ी के पेडों की उम्र हो गई है, वे गिरने लगे हैं, इसलिए नए पेड़ लगाने की जरूरत महसूस हुई। युवाओं ने पर्यावरण संस्था का गठन किया और एक वाट्सएप ग्रुप भी बनाया, जिसमें 180 सदस्य हैं, जिनमें काफी नए युवा भी जुड़े हैं, और यह सिलसिला जारी है। इस वाट्सएप ग्रुप के माध्यम से पेड़ लगाने की मुहिम के लिए चंदा एकत्र किया गया, और पेड़ लगाए। अब उनकी परवरिश भी की जा रही है। इसके अलावा, आगौर में अतिक्रमण न हो, यह भी सुनिश्चित किया जा रहा है। इस पूरी मुहिम में पंचायत ने भी सहयोग दिया है।

वे आगे बताते हैं कि तालाब बुजुर्गों की धरोहर है। तालाब है तो गांव है, वह पहचान है। पेड़ लगाना ही जरूरी नहीं है बल्कि उनकी देखरेख व परवरिश भी जरूरी है। इसलिए गांव के सभी युवाओं ने इसकी जिम्मेदारी ली है।

चावली का तालाब

इसी प्रकार, चावली गांव के ग्रामीणों ने बताया कि उनके पूर्वज प्रकृति से कामना करते हैं कि अगर उनका अगला जन्म हो तो उन्हें चावली गांव की चिड़िया बनाना जिससे वे यहां का मीठे तालाब का पानी पी सकें। इस तरह तालाबों की जरूरत व महत्व को लोग उनके अलग-अलग नजरिए से बताते हैं।

गालानाडी में संरक्षण का संकल्प

कुल मिलाकर, रोल गांव का यह तालाब जिंदा है, सैकड़ों सालों से सदानीरा है। यह ऐसा तालाब है, जहां पनघट पर रोज भीड़ होती है। पक्का घाट बना है, जिससे पानी भरने में सुविधा होती है। गांव-समाज ने इसकी सार-संभाल बहुत ही अच्छे से की है। पंचायत ने भी इस संबंध में प्रस्ताव पारित किया है, और नियम-कायदे बनाए हैं, जिसका सख्ती से पालन किया जा रहा है। यहां सामाजिक समरसता भी देखने को मिलती है, जिसमें सभी समुदाय के लोग एकजुट होकर तालाब के रखरखाव के लिए काम करते हैं। यहां के पानी ने सबको जोड़ा है, भाईचारा भी कायम किया है। इसी प्रकार, रामसर गांव में युवाओं ने तालाब के रखरखाव के साथ ही पेड़ लगाने की मुहिम चलाई है, जिससे तालाब तो पानीदार है ही, मनुष्यों के साथ पशु-पक्षियों को पानी मिल रहा है, इस तालाब के किनारे कई तरह के पक्षी देखे जाते हैं। रामसर तालाब की सार-संभाल व रखरखाव भी अच्छा है, युवाओं ने बुजुर्गों की इस धरोहर को संभालने का जिम्मा लिया है। उन्नति संस्था की यह पूरी पहल सराहनीय होने के साथ अनुकरणीय भी है। 

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Rakes Giri Goswami January 2, 2023 at 8:36 pm

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