क्या है गनियारी का स्वास्थ्य मॉडल? (In Hindi)

By बाबा मायाराम (Baba Mayaram)onJan. 01, 2024in Health and Hygiene

विकल्प संगम के लिए लिखा गया विशेष लेख (Specially written for Vikalp Sangam)

(Kya Hai Ganiyari Ka Swasthya Model?)

सभी फोटो- जन स्वास्थ्य सहयोग

यहां बीमारी ही नहीं, उसकी रोकथाम और स्वस्थ कैसे रहें, इस पर ध्यान दिया जाता है

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले का छोटा सा कस्बा है गनियारी। वैसे तो यह आम कस्बे की तरह है, पर यहां के जन स्वास्थ्य के काम ने इसे खास बना दिया है। देश-दुनिया में मशहूर कर दिया है। यहां सिर्फ कम कीमत पर बेहतर इलाज ही नहीं होता, बल्कि उसकी रोकथाम पर ध्यान दिया जाता है। जैविक खेती से लेकर स्वयं सहायता समूहों के माध्यम से आत्मनिर्भर कैसे बनें, और स्वस्थ कैसे रहें, इस पर ज़ोर दिया जाता है।

इसकी शुरूआत देश की मौजूदा ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं की हालत से चिंतित होकर दिल्ली के कुछ डॉक्टरों ने की थी। यह डॉक्टर जाने-माने दिल्ली के ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) से निकले थे। यहां आने से पूर्व इन्होंने देशभर में घूमकर ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा किया था, जहां वे उनकी सेवाएं दे सकें। और अंततः देश के गरीब इलाकों में से एक छत्तीसगढ़ के एक कस्बे में उन्होंने काम प्रारंभ किया। 

इस गैर सरकारी ‘जन स्वास्थ्य सहयोग’ केन्द्र की स्थापना वर्ष 1999 में हुई। संस्था ने गनियारी में सिंचाई विभाग की एक टूटी-फूटी कॉलोनी की 10 एकड़ जमीन को सरकार से लीज पर लिया। उसकी मरम्मत कर एक स्वास्थ्य केन्द्र की शुरूआत की।

बिलासपुर जिला अत्यंत पिछड़ा व निर्धन माना जाता है। यहां बड़ी संख्या आदिवासियों और दलितों की है। यहां के बाशिन्दे गोंड और बैगा आदिवासी हैं। यह वही इलाका है, जहां से बड़ी संख्या में पलायन होता रहा है। बिलासपुरिहा मजदूर के नाम से जाने जानेवाले मजदूर देश के कई हिस्सों में मजदूरी के लिए जाते रहे हैं। बहुत पहले चाय बागानों व जूट मिलों में काम करने के लिए गए हैं। अब ईंट भट्टों में मजदूरी करने जाते हैं।

यहां के डॉक्टर मानते हैं कि कुछ रोग कुपोषण से जुड़े हैं, इसलिए कुपोषण दूर करना जरूरी है। बीमारी को ठीक करने के लिए दवा और उपचार करना ही पर्याप्त नहीं है, उसकी रोकथाम करना भी जरूरी है। इसलिए पौष्टिक अनाजों की खेती के प्रचार-प्रसार पर ज़ोर दिया जाता है। यहां जंगली खाद्यों के महत्व को ग्रामीणों से साझा किया जाता है। छोटे बच्चों के कुपोषण दूर करने के लिए फुलवारी कार्यक्रम चलाया जा रहा है। टिकाऊ आजीविका के लिए स्वयं सहायता समूहों को आत्मनिर्भर बनाने पर ध्यान दिया गया है।

 पंजीयन कार्यालय

इस केन्द्र की उपयोगिता का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि वर्ष 2000 में बिना किसी औपचारिकता के बाह्य रोगी विभाग ( ओपीडी) शुरू हुआ था और मात्र 3 माह के अंदर यहां प्रतिदिन आनेवाले मरीजों की संख्या 250 तक पहुंच गई थी। अब ओपीडी में रोज करीब 300 मरीजों की जांच व इलाज होता है। यह सप्ताह में तीन दिन सोमवार,बुधवार और शुक्रवार को होती है।

यहां 100 बिस्तर का अस्पताल है। बाल चिकित्सा देखभाल इकाई, नवजात गहन देखभाल इकाई, कीमोथैरेपी वार्ड, टीबी वार्ड, प्रसव वार्ड इत्यादि हैं। शल्य चिकित्सा कक्ष है। कुष्ठ रोग से लेकर टीबी, कैंसर का भी इलाज होता है। परिसर में रहने और भोजन की सुविधा उपलब्ध है। धर्मशाला भी है। 5 रूपए में खाने की थाली मिलती है। यह सुविधा मरीज के साथ उसके देखभालकर्ताओं को भी उपलब्ध है। 

सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम का त्रिस्तरीय ढांचा है। सबसे पहले ग्राम स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं, जिन्हें गांव में समुदाय द्वारा चुना जाता है। जन स्वास्थ्य सहयोग के डॉक्टरों की टीम इन्हें प्रशिक्षित करती है। दूसरे स्तर पर उप स्वास्थ्य केन्द्र हैं, जहां वरिष्ठ कार्यकर्ता होते हैं और तीसरे स्तर पर गनियारी का अस्पताल है। जहां गंभीर व जटिल बीमारियों के लिए मरीजों का लाया जाता है। 

डॉक्टर ट्रेनिंग के दौरान बातचीत

बिलासपुर जिले के कोटा-लोरमी के 70 से भी अधिक गांवों में सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के जरिए बीमारियों का इलाज व उनकी रोकथाम की कोशिश की जाती है। इस ग्रामीण सामुदायिक कार्यक्रम के तहत् गांव की 70 महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण किया गया है। इनमें से अधिकांश महिलाएं बिना पढ़ी लिखी या कम पढ़ी लिखी हैं।

स्वास्थ्य कार्यकर्ता के लिए योग्यता पढ़ाई-लिखाई नहीं, सेवा भावना होती है। कई सालों से इस कार्यक्रम को संचालित करने में ऐसी अनुभवी महिलाओं को योगदान है। यह कार्यकर्ता गंभीर मरीजों को खुद अस्पताल लेकर आती हैं, और इलाज करवाती हैं। इस कार्यक्रम का एक और महत्वपूर्ण हिस्सा है, तीन उप स्वास्थ्य केन्द्र जो सेमरिया, शिवतराई और बम्हनी में बनाए गए हैं।

डॉक्टरों का वार्ड भ्रमण

शिवतराई व बम्हनी, अचानकमार अभयारण्य के अंदर के गांव हैं। बम्हनी तक पहुंच मार्ग नहीं है। रास्ते में मनियारी नदी है, जिसमें बारिश के दिनों में बाढ़ होती है। मैंने उफनती नदी को डॉक्टरों और कार्यकर्ताओं को पार करते देखा है। 

यहां कार्यकर्ताओं के अलावा नर्सिंग स्टॉफ होता है और सप्ताह में निर्धारित दिन क्लिनिक भी होता है, जिसमें पुराने व नए मरीजों का इलाज किया जाता है। यहां खून जांच, वजन इत्यादि लेने की भी सुविधा होती है।

लंबी बीमारियों के मरीजों से परामर्श 

इसके अलावा, दाई प्रशिक्षण, गर्भवती महिलाओं की जांच के लिए जागरूकता शिविऱ लगाए जाते हैं। मुझे एक बार दाई प्रशिक्षण में शामिल होने का मौका मिला था, जहां संस्था से जुड़ी डॉ. रमनी ने गांव की दाईयों को जचकी करवाने में क्या सावधानियां रखनी चाहिए, इसका प्रशिक्षण दिया था। कपड़ों के पुतलों के माध्यम से पूरी प्रक्रिया समझाई थी।

मच्छर काटने से मलेरिया होता है, यह तो सब जानते हैं, पर मच्छर न पनपें, शायद ही कोई इसके लिए प्रयास करता हो। यहां मच्छरों को पनपने से रोकने के लिए हर स्तर पर प्रयास किया जाता है। स्वास्थ्य कार्यकर्ता जयकुमार उइके स्कूली बच्चों को मच्छर न पनपें, इसलिए कई तरीके बताते हैं।

इस कार्यक्रम का एक हिस्सा उपयुक्त टेक्नोलॉजी का विकास भी है। इसके तहत् स्वास्थ्य को बेहतर बनाने के लिए सरल-सहज तकनीक से ऐसे यंत्र तैयार किए जा रहे हैं, जो बीमारी की जांच और रोकथाम में मददगार हों।

महीने की स्टॉफ मीटिंग

यहां ऐसा थर्मामीटर तैयार किया गया है, जिसे इस्तेमाल करने के लिए स्वास्थ्य कार्यकर्ता का पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं है। इसमें तेज बुखार के लिए लाल और सामान्य के लिए हरा निशान बना हुआ है, जिसे देखकर मरीज की हालत का अंदाजा लगाया जा सकता है।

इसी प्रकार, यहां ब्लड प्रेशर चैक करने की मशीन विकसित की गई है। प्रदूषित पानी की जांच की सकती है। ओ.आर.एस. के पैकेट, प्रसूति किट, बच्चों के पोषण आहार तैयार किए जाते हैं। यहां साबुन बनाया जाता है और आयुर्वेदिक दवाएं तैयार की जाती हैं।

6 माह से 3 वर्ष तक के बच्चों के लिए फुलवारी ( झूलाघर) कार्यक्रम चलाया जा रहा है। यह झूलाघर की तरह होता है, जिसमें बच्चों को खाना भी खिलाया जाता है। अभी मध्यप्रदेश व छत्तीसगढ़ में कुल 172 फुलवारी संचालित की जा रही हैं।

यहां अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति की लड़कियों के लिए नर्सिंग स्कूल संचालित होता है। यह जन स्वास्थ्य सहयोग केन्द्र व छत्तीसगढ़ आदिम जाति विभाग के संयुक्त प्रयास से चल रहा है। यहां एसटी-एससी छात्राओं को जीएनएम ( जर्नल  नर्सिंग मिड लाईफ) की ट्रेनिंग दी जाती है। 

हर साल अक्टूबर माह में पोषण मैराथन दौड़ का आयोजन होता है। इस मौके पर बीमारियों से बचाव के लिए अच्छा आहार क्या है, इस संबंध में पोस्टर तैयार किए जाते हैं और उनके माध्यम से ग्रामीणों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता लाने का प्रयास किया जाता है।

मैराथन के लिए तैयार अस्पताल टीम

जन स्वास्थ्य सहयोग की टीम घर-घर जाकर सिकल सेल रोग की जांच और उसके इलाज के लिए काम करती है, जिसमें गर्भवती महिलाओं और बच्चों समेत लोगों की जांच की जाती है। उनका इलाज सिर्फ दवाओं से नहीं, बल्कि उनकी हर माह बैठक होती है,जिसमें मरीज की स्थिति की जानकारी, आवश्यक जांच व आपस में मिलने-जुलने का मौका होता है। नई जानकारियों का आदान-प्रदान भी होता है। 

जन स्वास्थ्य सहयोग ने छत्तीसगढ़ में कोदो, कुटकी, मड़िया, सांवा, कांगनी, राजगिरा जैसे पौष्टिक अनाज, पारंपरिक व्यंजनों, दालों की किस्मों और कंद-मूल व मौसमी सब्जियों व फलों को बढ़ावा देने के लिए शिवतराई गांव में जेवनार मेले का आयोजन किया। खाद्य विविधता का महत्व बताया गया।

इसके अलावा, पशु स्वास्थ्य कार्यक्रम चलाया जाता है। वर्ष 2005 से यह कार्यक्रम शुरू हुआ है। इसके लिए 25 महिलाओं को पशु स्वास्थ्य का प्रशिक्षण दिया गया था। अब यह काम 8 युवा कर रहे हैं, जिनके जिम्मे 70 गांव हैं। यानी एक कार्यकर्ता 10 गांवों के पशुओं का इलाज करता है। जिससे लोगों की टिकाऊ आजीविका हो और वे आत्मनिर्भर बनें।

जन स्वास्थ्य सहयोग के डॉ. पंकज तिवारी बताते हैं कि यहां न तो गैरजरूरी जांच की जाती है और न ही अनावश्यक दवाएं दी जाती हैं। यह कोशिश होती है कि एक ही दिन में रोगी की जांच, दवा और इलाज का काम पूरा हो जाए। अब इस कार्यक्रम का विस्तार हुआ है। पांच वर्ष पहले से मध्यप्रदेश के डिंडौरी, अनूपपुर और शहडोल में चल रहा है। वहां सिकल सेल रोग के खिलाफ भी मध्यप्रदेश सरकार के साथ मिलकर सतत् कार्यक्रम चलाया जा रहा है। इन प्रयासों की वजह से वर्ष 2021 में राज्य सरकार ने सिकल सेल एनेमिया प्रबंधन मिशन भी शुरू किया है।

वे आगे कहते हैं कि हमारे काम की सीमाएं हैं, सार्वजनिक स्वास्थ्य का काम तो सरकार की जिम्मेदारी है, इसलिए हमने उनके साथ मिलकर काम करना शुरू किया है। मध्यप्रदेश सरकार के साथ सिकल सेल का कार्यक्रम चल रहा है, वह इसी का हिस्सा है।

कुल मिलाकर, यहां सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम, ग्रामीण जांच प्रयोगशाला, ब्लड बैंक, आयुर्वेदिक दवा निर्माण, कृषि व पशु स्वास्थ्य सुधार के लिए काम किया जा रहा है। गरीबों  के लिए कम कीमत पर बेहतर इलाज किया जाता है। रोगों की रोकथाम के लिए निरंतर प्रयास किया जाता है। इस पहल से यह भी समझा जा सकता है कि देश की मौजूदा स्वास्थ्य व्यवस्था में क्या बदलाव करना जरूरी है। ग्रामीण स्वास्थ्य व्यवस्था की क्या चुनौतियां हैं और उनका मुकाबला कैसे किया जा सकता है, यह भी सीखा जा सकता है। यहां के समर्पित व प्रतिबद्ध डॉक्टरों की टीम का काम प्रेरणादायक है। यह पूरी पहल सराहनीय होने के साथ अनुकरणीय है।

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