केरल में उम्मीद का संगम (In Hindi)

By बाबा मायाराम (Baba Mayaram)onJan. 05, 2024in Environment and Ecology

विकल्प संगम के लिए लिखा गया विशेष लेख (Specially written for Vikalp Sangam)

(Kerala Mein Ummeed Ka Sangam)

सभी फोटो – अशीष कोठारी

विकल्प संगम एक साझा मंच है, जिसमें आपस में जोड़ने, गठजोड़ बनाने, एक-दूसरे सीखने व वैकल्पिक रास्ते तलाशने की कोशिश की जाती है.

केरल के पालक्कड़ जिले का छोटा सा कस्बा है शोरनूर। जंगल और पहाड़ से घिरा यह इलाका हरा-भरा है। दुरंगी और पथरीली जमीन है। नीला नदी बहती है। उसकी चमकीली रेत में रंग-बिरंगे फूल खिले रहते हैं। यह दृश्य बहुत ही मनमोहक व रमणीय है। यह रमणीयता यहां के बाशिन्दों के लिए आत्मिक ही नहीं, भौतिक भी है। हवा, पानी, मिट्टी, पेड़ जो प्राकृतिक छटा के अंग हैं, उनके जीवनाधार हैं। 

हम यहां विकल्प संगम की बैठक में शामिल होने इकट्ठे हुए थे। यह बैठक विकल्प संगम प्रक्रिया की आम सभा से जुड़ी संस्थाओं की सालाना बैठक थी। इसमें उत्तर-दक्षिण,पूर्व-पश्चिम सभी जगह से प्रतिभागी शामिल हुए थे। 12 राज्यों के 25 संगठनों के करीब 40 लोग आए थे। बैठक में पर्यावरणविद्, मैदानी कार्यकर्ता, विद्यार्थी, शोधकर्ता इत्यादि शामिल थे। इसमें प्रकृति, हक, खेती, दलित अधिकार,लैंगिक अल्पसंख्यक अधिकार, जलवायु बदलाव और स्थानीय अर्थव्यवस्था जैसे अलग-अलग मुद्दों पर काम करनेवाले लोग शामिल थे।

प्रतिभागी

मैं कोच्चि से 2 नवंबर की शाम को शोरनूर पहुंचा। उस समय हल्की रिमझिम बारिश हो रही थी। यहां से शोरनूर की दूरी 90 किलोमीटर है। यह मेरी पहली केरल यात्रा थी। दक्षिण के बारे में मेरा कौतूहल प्राकृतिक सुंदरता ही नहीं, यहां के पर्यावरण और सामाजिक आंदोलन भी रहे हैं।  

सुबह हम लोग पैदल घूमने गए। जंगल से निकलकर नीला नदी पहुंचे। तटों के दोनों ओर हरियाली और बीच में कल-कल नदी बह रही थी। यह गांव कितना खुशनसीब है कि नजदीक ही पानी मिल जाता है, अन्यथा, भारत के कुछ हिस्से ऐसे हैं, जहां पानी के लिए मीलों भटकना पड़ता है। यह सोचकर मेरा रोमांच कुछ कम हो गया।

विकल्प संगम की आमसभा की बैठक तीन (3 से 5 नवंबर) दिन चली। शोरनूर में स्थित फार्मर शेयर के परिसर में यह बैठक सम्पन्न हुई, जो गांधी के ग्राम स्वराज का एक अच्छा उदाहरण है। तराई में स्थित फार्मर शेयर का घर, बेकार मानी जानेवाली चीजों से बना है, जिसमें साइकिल की रिम, लकड़ी के टुकड़े, और जंगली बीज इत्यादि का इस्तेमाल किया गया है। 

यहां प्राकृतिक खेती, बुनाई, मिट्टी के बर्तन और शिल्प का काम होता है। यह एक केन्द्र है जहां युवा हुनर सीखते हैं, टिकाऊ आजीविका पाते हैं और आत्मनिर्भर बनने की राह पकड़ते हैं। यह पहल बताती है कि मनुष्यों की अधिकांश बुनियादी जरूरतें मिट्टी से पूरी होती हैं, इसलिए मिट्टी, पानी, हवा, पेड़ों को बचाना और धरती की जीवनदायिनी शक्ति को बचाना कितना जरूरी है, जो आज जलवायु बदलाव के दौर में खतरे में पड़ गई है।

आगे बढ़ने से पहले विकल्प संगम क्या है और इसकी जरूरत क्या है, यह जानना उचित होगा। वर्तमान विकास के नाम पर पर्यावरण नष्ट हो रहा है। यह प्रकृति के विनाश और लोभ-लालच पर आधारित है। इससे विस्थापन हो रहा है, आजीविका पर संकट मंडरा रहा है, खेती-किसानी का संकट बढ़ रहा है, गैर-बराबरी बढ़ती जा रही है और असमानता भी बढ़ रही है। ये कुछ ऐसी खामियां हैं, जो विकास के प्रचलित मॉडल से जुड़ी हुई हैं।

विकल्प संगम, इन सबके बावजूद आशा और उम्मीद की तलाश करने का मंच है। यह ऐसी प्रक्रिया है, जिसमें क्षेत्रीय और मुद्दों पर भारत के अलग-अलग हिस्सों में गोष्ठियां होती हैं। विकल्पों पर जो समुदाय, व्यक्ति, समूह और संस्थाएं काम कर रही हैं, उनके अनुभव सुने-समझे जाते हैं और एक-दूसरे से सीखा जाता है। इसके माध्यम से आपस में विचारों का आदान-प्रदान करने, गठजोड़ मजबूत करने और मिल-जुलकर बेहतर भविष्य बनाने की कोशिश की जाती है। 

विकल्प संगम का उद्देश्य सिर्फ वैकल्पिक विचारों पर बात करने तक सीमित नहीं है, बल्कि जो जमीन पर विकल्प खड़े हो रहे हैं, उन्हें लोग प्रत्यक्ष रूप से जाकर देखें और उनसे प्रेरणा लें, सीखकर अपनाएं, यह भी सोच है। इसीलिए मुद्दा आधारित संगमों के अलावा क्षेत्रीय संगम भी होते हैं।

यहां सिर्फ बौद्धिक बहसें ही नहीं होती हैं, बल्कि किसान, कारीगर, बुनकर, पशुपालक के अनुभव सुने जाते हैं। यह एक मिला जुला समूह होता है जिसमें युवा, अनुभवी मैदानी कार्यकर्ता, ग्रामीण, महिलाएं, विकलांग इत्यादि, सभी शामिल होते हैं। इन बैठकों में कोई तामझाम नहीं, बल्कि खुलापन व सभी को सुनने का धीरज और जानने की जिज्ञासा होती है। इसमें जो विचार-मंथन होता है, इससे जो ऊर्जा पैदा होती है, उससे इसका विस्तार होता है और प्रेरणा मिलती है।

बैठक स्थल पर एक पोस्टर प्रदर्शनी भी लगाई गई थी,जो विकल्पों की कहानियों पर आधारित है। यह देशभर में हो रहे विकल्पों की एक झलक प्रस्तुत करती है। इसके अलावा, देश भर में किए जा रहे वैकल्पिक प्रयासों के वीडियो भी बनाए गए हैं। केस स्टडी भी की गई हैं, जो विकल्प संगम की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं। 

इस बैठक के दौरान विकल्प संगम के उद्देश्यों का विश्लेषण किया गया। उपसमूह बनाकर प्रतिभागियों के अनुभव और विचार जाने, खेलों के माध्यम से प्रकृति के साथ रहने, सीखने और एक दूसरे से जुड़ने के तरीके सीखे। अनुसंधान और दस्तावेजीकरण को कैसे बेहतर करें, इस पर बातचीत हुई। विकल्प संगम की प्रक्रिया को कैसे सुगम और सुचारू बनाएं, इसका विस्तार कैसे करें, संगठनात्मक प्रक्रिया की बाधाओं को कैसे दूर किया जाए, इस पर विचार किया गया।

इस दौरान जन घोषणा पत्र ( पीपुल्स मेनिफेस्टो) को अंतिम रूप दिया गया, जिसे 18 दिसंबर को दिल्ली में जारी कर दिया गया है। इस घोषणापत्र का उपयोग 2024 के आम चुनावों के लिए किया जाएगा। राज्य स्तर से लेकर ग्राम स्तर तक की जन जागरण के लिए भी किया जाएगा। इसमें सम्मानजनक  टिकाऊ आजीविका, पर्यावरण को बिना पहुंचानेवाली आर्थिक नीतियां, जातिवाद और पितृसत्ता सहित हर तरह के भेदभाव से निपटना, हाशिये वाले समूहों के अधिकार सुरक्षित करना और शिक्षा और स्वास्थ्य को प्रमुखता देना शामिल है।

घोषणा पत्र में कहा गया है कि हम ऐसे भारत के लिए प्रतिबद्ध हैं जो वर्तमान और आनेवाली पीढ़ियों और पूरी प्रकृति के लिए न्यायसंगत और टिकाऊ हो। सभी के पास रोजगार व आजीविका हो, लोकतंत्र के प्रत्यक्ष रूपों के माध्यम से निर्णय लेने में सीधी भागीदारी हो, लिंग, जाति, वर्ग, धर्म, नस्ल, यौन के आधार पर भेदभाव न हो, संस्कृतियों और ज्ञान की विविधता और बहुलतावाद का सम्मान हो, और प्रकृति और पारिस्थितिकीय का सम्मान हो, जिस पर हम सब का जीवन निर्भर है। 

बैठक के दौरान एक दिन दोपहर भोजन के बाद स्वतःस्फूर्त तरीके से सामूहिक गान और नृत्य शुरू हो गया। यहां कोई तमाशबीन नहीं था, जैसे आमतौर होता है। जो भी चाहे यहां गा रहा था और नृत्य में शामिल हो रहा था। सभी नाच रहे थे, स्री-पुरूष, युवा और बुजुर्ग भी। यह एक दूसरी संस्कृति है, जो मिटाई जा रही है। यही मुख्यधारा की संस्कृति थी। अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है, जो यहां सहज ही दिखाई दे रही थी। मैं सोच रहा था सहज होना ही विकल्प है, कृत्रिम और नकल नहीं।

बैठक के दौरान नाश्ता करते प्रतिभागी

बैठक के दौरान फार्मर शेयर ने हमें शंखपुष्पी व हिबिस्कस फूलों की चाय पिलाई। बहुत ही लज़ीज और स्वादिष्ट खाना खिलाया। केरल के व्यंजनों से परिचय कराया। केले के पत्ते पर पारंपरिक भोजन कराया, जिसमें पायसम सहित 28 प्रकार के व्यंजन होते हैं। कुछ व्यंजन दही, नारियल से बने होते हैं। हमने पुट्टू ( पिसे चावल का केक) और रंग-बिरंगे चावल का स्वाद लिया। यहां हमने सभी तरह के स्वाद चखे, जैसे खट्टा, मीठा, नमकीन, मसालेदार, कसैला इत्यादि, जिनके स्वाद की अनुभूति लंबे समय तक बनी रहेगी। क्योंकि आजकल हमारा भोजन दो-तीन अनाजों पर ही टिक गया है, जबकि विविधता ही देश की पहचान रही है। 

बैठक के दौरान पारंपरिक भोजन

बैठक के आखिरी दिन हमें त्रिचूर जिले में फारेस्ट पोस्ट नामक संस्था के कार्यालय में जाने और उसके काम के बारे में जानने का मौका मिला। इस संस्था की प्रमुख मंजू वासुदेवन ने इसके बारे में विस्तार से बताया। उन्होंने बताया कि उनकी संस्था काडर आदिवासियों के बीच काम करती है। उनके महिला समूहों के माध्यम से उनकी आर्थिक आमदनी बढ़ाने का काम कर रही हैं। शतावरी का अचार, शहद, अचार, साबुन और बांस की टोकरियां बनाने का काम कर रही हैं। बांस की सुंदर चटाई भी दिखाई।

वाजाचल आदिवासी मुखिया से बातचीत

इसके बाद हम वाजाचल गांव की आदिवासी मुखिया गीता से मिले। वह काडर आदिवासी समुदाय से हैं। उन्होंने बताया कि चालकुडी नदी पर अथिराप्पिल्ली पनबिजली परियोजना प्रस्तावित है, जिसका प्रबल विरोध हुआ है, जिसके चलते फिलहाल यह स्थगित हो गई है। वे कहती हैं कि नदी हमारे लिए अलग नहीं है, नदी का जीवन और काडर लोगों का जीवन एक ही है। नदी हमारा जीवन है। यह वैकल्पिक दृष्टिकोण ही विकल्प संगम का आधार भी है।

कुल मिलाकर, विकल्प संगम की प्रक्रिया को वर्ष 2024 में पूरे 10 साल हो जाएंगे। यह प्रक्रिया समाज में उम्मीद की लहर को जीवित रखने की एक छोटी कोशिश है। विकास के नाम पर पर्यावरणीय विनाश और लोभ- लालच के खिलाफ नए वैकल्पिक रास्ते की तलाश की जा रही है। प्राकृतिक संसाधनों के ध्वंस से उपजा विकल्प संगम का विचार टिकाऊ विकास और समतामूलक समाज से जुड़ गया है। जो विचार-मंथन बैठक में हुआ, लंबी बैठकों के बीच में खेल और सांस्कृतिक कार्यक्रमों ने सरसता बनाई, उससे जो ऊर्जा निकली है, उत्साह बना है, वह लोगों को इस दिशा में आगे बढ़ने की प्रेरणा देगा, ऐसी उम्मीद है। 

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