खेती और खाद्य उद्यमिता: असम की नाज़ुक अर्थव्यवस्था का पारिस्थितिकी को ध्यान में रखते हुए पुनर्निर्माण (In Hindi)

By स्नेहा गुटगुटियाonFeb. 11, 2023in Environment and Ecology

(Farm and Food Entrepreneurship: Rebuilding Assam’s Fragile Economy and Ecology)

विकल्प संगम के लिए लिखा गया विशेष लेख (Specially written for Vikalp Sangam)

‘लेट इंडिया ब्रीद’ द्वारा भाषा प्रयोगशाला से यश ओझा द्वारा अनुवादित

Written by Sneha Gutgutia, originally in English.

जैविक खेती, पोषण और शिक्षा एक समृद्ध समाज के तीन स्तंभ हैं, जिस पर केंद्रित फार्म2फूड (Farm2Food) असम के ग्रामीण क्षेत्रों के युवाओं, और महिलाओं को सशक्त बना रहा है। फार्म2फूड असम के जोरहाट जिले में स्थित एक गैरलाभकारी सामाजिक उद्यम है, जो स्थायी कृषिआधारित आजीविका को बढ़ावा देने के लिए सरकारी स्कूलों और स्थानीय समुदायों के साथ मिलकर काम करता है। वे कृषि और खाद्य उद्यमिता में प्रशिक्षण, उपकरण और जानकारी प्रदान करने में सहायक के रूप में कार्य करते हैं। उनकी प्रमुख योजनाफार्म प्रीनेउर‘ (Farm Preneur) का उद्देश्य, स्कूलों में स्थापित पोषण उद्यानों (Nutrition Garden) में शिक्षा के माध्यम से जीवन कौशल प्रदान करना है। स्कूल में पोषण उद्यान, विज्ञान और गणित की प्रयोगशाला के रूप में कार्य करते हैं, जहां कक्षाओं में सीखे गए सिद्धांतों को शिक्षकों की मदद से जैविक खेती की प्रक्रिया में लागू किया जाता है। जिज्ञासु छात्र अब पहले की तुलना में ज़्यादा स्कूल आते हैं। इन बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन भी सुनिश्चित किया जाता हैक्योंकि उद्यानों में उगाई गयी सब्ज़ियों का उपयोग ही मध्याह्न भोजन में किया जाता हैजिसके परिणामस्वरूप शैक्षिक प्रदर्शन में सुधार होता है। स्वास्थ्य और शिक्षा के लिए एक सहायक पारिस्थितिकी तंत्र बनाने के लिए, छात्रों द्वारा बीज दान यात्रा (Seed Donation Drive) आयोजित की जाती है| बीज दान यात्रा के दौरान गांव के बुजुर्ग, बच्चों को स्थानीय और स्वदेशी फसलों के बीज और उन्हें उगाने से सम्बंधित सलाह साझा करते हैं| इस प्रकार, पारंपरिक ज्ञान बच्चों तक पहुँचता है। मातापिता द्वारा श्रमदान भी किया जाता है, जिसके तहत मातापिता स्वयंसेवा के तहत बच्चों को इन कृषिआधारित गतिविधियों में उनकी शिक्षा को और समृद्ध करने के लिए सलाह देते हैं।

संमिलिता हाई स्कूल में अपने शिक्षकों के साथ छात्र। पोषण उद्यानों को वर्गाकार, गोलाकार और आयताकार बनाया गया है ताकि क्यारी, आकार, क्षेत्रफल, परिमाप आदि जैसी महत्वपूर्ण गणितीय अवधारणाओं के बारे में छात्र सीख पाएं । फोटो क्रेडिट:सुनील सैकिया

संमिलिता हाई स्कूल में अपने शिक्षकों के साथ छात्र। पोषण उद्यानों को वर्गाकार, गोलाकार और आयताकार बनाया गया है ताकि क्यारी, आकार, क्षेत्रफल, परिमाप आदि जैसी महत्वपूर्ण गणितीय अवधारणाओं के बारे में छात्र सीख पाएं । फोटो क्रेडिट: सुनील सैकिया

स्कूलों के अलावा, फार्म2फूड(Farm2Food), माताओं को घरों में उद्यान स्थापित करने और वाणिज्यिक बिक्री के लिए वर्मीकम्पोस्ट तैयार करने जैसे छोटे पैमाने पर टिकाऊ कृषिव्यवसाय शुरू करने में सक्षम बना रहा है। यह विभिन्न माताओं का एक स्वयं सहायता समूह (SHGs) बनाकर हासिल किया जाता है। हालाँकि, फ़ार्म प्रीन्यूर और मदर्स ग्रुप योजना केवल कक्षा 6,7 और 8 के बच्चों और उनके परिवारों के साथ संचालित किए जा रहे हैं। इसके अतिरिक्त, मिडिल स्कूल के छात्रों को उनके पर्यावरण के लिए जिम्मेदार बनाने और उन्हें अपने स्कूलों और समुदायों में परिवर्तनकर्ता बनने में मदद करने के लिएसॉल्व निन्जा‘ (Solve Ninja) नामक एक कार्यक्रम आयोजित किया जा रहा है। युवाओं को उनके मौलिक अधिकारों, कर्तव्यों के साथसाथ भारतीय संविधान में निर्धारित मूल्यों के बारे में जागरूक करने के उद्देश्य सेजागरिकनामक एक अन्य कार्यक्रम भी सञ्चालन में है। इसके अलावा, समाज में भेदभाव से लड़ने और बच्चों को अधिक समावेशी सोच विकसित करने में मदद करने के लिए कई कार्यक्रम हैं।

‘Farm and Agri’preneur

संमिलिता हाई स्कूल के प्रधानाध्यापक चंदन नाथ ने बताया, “असम के ग्रामीण हिस्से मुख्य रूप से कृषि प्रधान अर्थव्यवस्थाऐं हैं, और यहाँ 70-80 प्रतिशत लोग कृषि पर निर्भर हैं।” “हर घर खेती में संलग्न है। वे गाय, बकरी और मुर्गे पालते हैं। लगभग 40 प्रतिशत घरों के पास छोटे चाय बागान हैं। कुछ में बांस का उत्पादन भी होता है”, नाथ ने आगे बताया।कुछ शिक्षक हैं, कुछ नर्स हैं, कुछ के पास बैंक की नौकरी है; लेकिन ज्यादातर लोग खेती करते हैं, हम भी करते हैं। जिंदा रहने के लिए खाना पड़ेगा और खेती नहीं करेंगे तो क्या खाएंगे!” बबीता बोरा ने कहा, जिनके पति भैरब बोरा एक सरकारी स्कूल, खनिकर उत्सव बुनियादी विद्यालय, में शिक्षक हैं।

तृष्णा सैकिया, जो अप्पुपम गाँव के गर्ल्स हाई स्कूल में दसवीं कक्षा की छात्रा हैं, ने विस्तार से बताया कि कैसे एक बेकार पॉलीस्टाइरीन मछली के डिब्बे का पुन: उपयोग करके वर्मीकम्पोस्ट बॉक्स तैयार किया जाता है।वर्मीकम्पोस्ट के एक पॉलीस्टायरीन बॉक्स से 40 दिनों में 15 किलोग्राम खाद पैदा होती है जो 10 रुपये प्रति किलो में बेची जाती है”, पिछले सात वर्षों से Farm2Food के एक कार्यक्रम समन्वयक सुनील सैकिया ने बताया।वर्मीकम्पोस्ट की बिक्री से आने वाला पैसा कुछ शैक्षिक खर्चों को उठा सकता है”, तृष्णा के पिता, अजीत सैकिया ने कहा।घर पर सब्जियां और फल उगाने से पैसे की बचत होती है। अतिरिक्त सब्जी पड़ोसियों या व्यापारियों को भी बेच दी जाती है। वर्मी कम्पोस्ट को भी अब बाजार से खरीदने की जरूरत नहीं है क्योंकि इसे घर पर ही बनाया जा रहा है। वर्मी कम्पोस्ट से उगाए गए चावल ज़्यादा स्वादिष्ट भी होते हैं”, अजीत सैकिया ने जोड़ा। अजीत सैकिया एक किसान हैं जो एक चाय बागान में काम करते हैं और उनका एक और खेत है जहाँ वे चावल और सब्जियां उगाते हैं।

मध्याह्न भोजन तैयार करने के लिए पोषण उद्यान की सब्जियां, स्कूल को बेची जाती हैं।प्रत्येक बच्चे के मध्याह्न भोजन पर सरकार छः रूपए खर्च करती है जिसमें से हर बच्चे को जैविक खेती करने पर कमाई के तौर पर 1 रूपए मिलते है”, फार्म2फूड के सहसंस्थापक दीपज्योति सोनू ब्रह्मा ने कहा।हालांकि पैसा बहुत अधिक नहीं है, लेकिन यह अनिवार्य है कि यह पैसा उनके बैंक खातों में जाता है,” ब्रह्मा ने जोर देकर कहा।उद्यमशीलता के लिए महत्वपूर्ण है कि वित्तीय कौशल जल्दी विकसित हो,” ब्रह्मा ने आगे जोड़ा। Farm2Food बच्चों को उनके मातापिता की मदद से अपने नाम से बैंक खाते खोलने की सुविधा भी प्रदान करता है।

हेडमास्टर नाथ समझते हैं कि यह हुनर और कौशल कितने महत्वपूर्ण हैं।व्यावहारिक जीवन के लिए किताबी ज्ञान पर्याप्त नहीं है”, उन्होंने जोर देकर कहा जब उनसे पूछा गया कि उनके स्कूल ने फार्म2फूड के साथ सहयोग करने के बारे में क्यों सोचा। सुनील सैकिया का मानना है कि वे जिन तकनीकों का उपयोग करते हैं, जैसे कम जगह में खेती करने के लिए बेड बनाना, खाद बनाने के लिए बेकार पॉलीस्टाइरीन बक्से का उपयोग इत्यादि, इन तकनीकों के बारे में स्थानीय आबादी को जानकारी देने की आवश्यकता है, क्योंकि उनमें से कई लोग गरीबी रेखा से नीचे हैं और इन तकनीकों से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार आ सकता है | पार्थ प्रोतिम बोरदोलोई, फार्म2फूड के एक अन्य कार्यक्रम संचालक का मानना है कि बेहतर शैक्षणिक प्रदर्शन के लिए बच्चों और उनके परिवारों के बीच पोषण की स्थिति में सुधार करना महत्वपूर्ण है, अन्यथा अक्सर यह देखा जाता है कि वेजीवन में बहुत दूर नहीं जा पाते“, और फिर असामाजिक गतिविधियाों में शामिल हो जाते हैं और बेरोज़गार रह जाते है। सुनील सैकिया (जो पहले सर्व शिक्षा अभियान पर काम कर चुके हैं) और पार्थ बोरदोलोई (जिन्होंने चाय बागान समुदायों के बीच भोजन की आदतों और पोषण की स्थिति का अध्ययन किया है) दोनों इस दिक्कत को कम करने में बाहरी, मजेदार और जीवन कौशल से भरी शैक्षिक गतिविधियों की भूमिका में विश्वास करते हैं। वे दोनों बच्चों के साथ काम करने में ख़ुश भी महसूस करते हैं।

COVID-19 and Homestead Gardens

बबीता बोरा ने गर्व करते हुए बताया कि स्कूल के सभी बच्चे और आठवीं कक्षा में उनकी बेटी अनुष्का ने, विज्ञान प्रदर्शनियों में भाग लिया, जहाँ सब ने अपनी वैज्ञानिक परियोजनाऐं प्रस्तुत कीं। लेकिन अनुष्का ने जिस तरह का प्रोजेक्ट किया है, वह अकेला नहीं है। अनुष्का और उनके सहपाठी शुभंकर दत्ता कई और बच्चों के साथ [1] कोविड-19 के लॉकडाउन के दौरान घरों में बगीचों की देखरेख की। उनके बगीचों से फसल न केवल उनके परिवारों की पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा करती थी, बल्कि लॉकडाउन के दौरान आय उत्पन्न करने के लिए भी काम आती थी। अनुष्का और शुभंकर ने कहा, “हमने पहले अपने स्कूलों में बनाये हुए बेड का उपयोग करके जैविक खेती सीखी और फिर इसे घर पर शुरू किया।अनुष्का ने आगे व्यक्त किया कि उन्हें कितना गर्व महसूस हुआ कि उन्होंने यह सारी खेती घर पर खुद की और क्योंकि यह पूरी तरह से जैविक थी इसलिए यह स्वास्थ्य के लिए भी अच्छी थी। अनुष्का और शुभंकर दोनों बड़े होकर एक सफ़ल पेशे में काम करने के साथसाथ खेती भी करना चाहते हैं। यह सब इसलिए संभव हो सका क्योंकि लॉकडाउन के कारण बच्चों के पास अचानक अपने बागों में निवेश करने के लिए बहुत समय था। शुभंकर ने कई दिहाड़ी मजदूरों की दुर्दशा के बारे में भी बताया, जिन्हें घर पर रहना पड़ा क्योंकि अर्थव्यवस्था के पूरी तरह से बंद होने के कारण कोई नौकरी उपलब्ध नहीं थी। हालाँकि, पार्थ बोरदोलोई ने बताया कि कुछ मामलों में इस संकट में भी एक अवसर था, क्योंकि मजदूरों ने इस अतिरिक्त समय का उपयोग घरों के बागानों को शुरू करने के लिए किया जिनकी वे पहले देखभाल नहीं कर पाते थे।

शुभंकर दत्ता- VIII कक्षा का छात्र, खनिकर गाँव में अपने होमस्टेड गार्डन में। फोटो क्रेडिट: संगीता दत्ता

बिस्वजीत हज़ारिका – VIII कक्षा का छात्र, धुबवूनीगाँवमेंअपनेहोमस्टेडगार्डनमें।

सुनीता गोन्जु -XI कक्षा की छात्रा, मोहनटिंगगाँवमेंअपनेहोमस्टेडगार्डनमें।

घर के बगीचों के लिए, बच्चों को फार्म2फूड के प्रशिक्षिकों और उनके मातापिता का समर्थन प्राप्त हुआ। प्रशिक्षिकों ने लॉकडाउन के दौरान बच्चों के मनोसामाजिक समर्थन के लिए भी कई कार्यक्रम किये | इन कार्यक्रम में भारतीय संविधान के बारे में प्रतिदिन 15 नए शब्द सीखना, आसपड़ोस में कोरोना वायरस महामारी से संबंधित उपयोगी जानकारी वाले पोस्टर चिपकाने से लेकर जरूरतमंद लोगों और जानवरों को भोजन उपलब्ध कराने और कुछ बनाने के लिए अपशिष्ट पदार्थों का पुन: उपयोग करना आदि शामिल थे। अनुष्का ने कहा कि लॉकडाउन के दौरान जब स्कूल बंद थे तो उन्हें बिल्कुल भी बोरियत महसूस नहीं हुई क्योंकिमैं कुछ न कुछ करती रही जैसे कि ड्राइंग, खेती आदि।पार्थ बोरदोलोई ने समझाया, “बच्चों को तनाव, उदासी या चिंता हो सकती है, क्योंकि लॉकडाउन ने वित्तीय परेशानियों को बढ़ा दिया, जिसका सामना कुछ गरीब परिवारों ने किया और घरों में माहौल को ख़राब कर दिया।

इस अवधि के दौरान अकादमिक रूप से बच्चों का समर्थन भी जारी रहा, क्योंकि ऑनलाइन कक्षाएं नियमित रूप से आयोजित की जा रही थीं।

2011 में अपनी स्थापना के बाद से, Farm2Food ने असम के कई जिलों में 446 स्कूलों के साथ काम किया है, जिसमें 8920 छात्रों ने भाग लिया है और इसने कुल 30000 छात्रों को प्रभावित किया है। दिसंबर 2018 में, 30 सरकारी स्कूलों ने लगभग 500 किलोग्राम जैविक सब्जियां बेची थीं [3] फरवरी 2019 में, मलोवखत गाँव की कुछ माओं के एक समूह ने 2,100 किलोग्राम से अधिक वर्मीकम्पोस्ट [4] बेचा। उभरते हुए किसानों में लगभग 79 प्रतिशत महिलाएं हैं[5] जिनमें से कई कृषिउद्यमी हैं। फार्म2फूड ने भागीदारी और क्षमता निर्माण के माध्यम से मेघालय और दिल्ली जैसे कई अन्य राज्यों में भी अपनी उपस्थिति बढ़ाने में कामयाबी हासिल की है। वहाँ स्कूल अपने पाठ्यक्रम में इसे संदर्भित करने के बाद फार्म प्रीनेउर योजना चला रहे हैं।

असम में एक नाजुक अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी है क्योंकि मूल आबादी लगातार संघर्ष की स्थिति में रहती है, काम के लिए नियमित रूप से पलायन होता है, पड़ोसी राज्यों से भोजन का आयात किया जाता है, बाढ़ से आजीविका और चाय की मोनोक्रॉपिंग से जैव विविधता में व्यापक नुकसान भी होता है। ऐसी परिस्थितियों में, फार्म2फूड असम के ग्रामीण जिलों में कुछ सबसे वंचित समुदायों के साथ काम कर रहा है जैसे कीचाय बागान के मजदूर, मिशिंग (मूलनिवासी) समुदाय, अनुसूचित समुदाय और मुस्लिम समुदाय। यह संघर्ष एक ऐसे उत्तरपूर्वी भारत के निर्माण के लिए हो रहा है जो एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ समृद्ध, आत्मनिर्भर और शांतिपूर्ण हो। असम में Farm2Food के कार्य में कई मोर्चों पर परिवर्तन लाने की क्षमता है: पारिस्थितिकजैविक खेती में संलग्न होकर और स्वदेशी फसल किस्मों को पुनर्जीवित करना; सामाजिकहाशिए के समूहों की शैक्षिक और पोषक स्थिति को ऊपर उठाना; आर्थिक – ‘खेत और कृषिउद्यमियों की एक सेना बनाना; और सांस्कृतिकपारंपरिक ज्ञान को जीवित रखना।

 

छात्रों के साथ जूम मीटिंग चल रही है – अनुष्का बोरा, शुभंकर दत्ता और फार्म2फूड के को-ऑर्डिनेटर – पार्थ प्रोतिम बोरदोलोई, कृष्णाली हजारिका और सुनील सैकिया। फ़ोटो क्रेडिट: स्नेहा गुटगुटिया

*स्नेहा गुटगुटिया कल्पवृक्ष, पुणे की सदस्य हैं और वर्तमान में नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज, बेंगलुरु में पीएचडी कर रही हैं।

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