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(Jan Svaasthya Sahayog ka Anootha Aspataal)
छत्तीसगढ़ में एक अस्पताल ऐसा है, जहां न केवल सस्ता और बेहतर इलाज होता है बल्कि रोग की रोकथाम पर भी ध्यान दिया जाता है। जैविक कृषि व पशुपालन के जरिए कोशिश की जाती है जिससे लोगों को पोषण मिले और वे बीमार ही न पड़े।
यह स्वास्थ्य का ऐसा मॉडल है जिससे काफी कुछ सीखकर स्वास्थ्य की स्थिति को सुधारा जा सकता है। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के एक छोटे से कस्बे में गनियारी में चल रहे इस अस्पताल की कीर्ति अब देश-दुनिया में फैल चुकी है।
यह स्वास्थ्य केन्द्र इस क्षेत्र के आदिवासियों और ग्रामीणों की आशा का केन्द्र बन गया है। यहां सुदूर जंगलों में रहने वाले सैकड़ों आदिवासी ग्रामीण सैकड़ों मील दूर से अपना इलाज कराने आते हैं।
बिलासपुर से 20 किलोमीटर दूर दक्षिण की ओर स्थित गनियारी में जन स्वास्थ्य सहयोग है। इस गैर सरकारी स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना वर्ष 1999 में हुई है। देश की मौजूदा स्वास्थ्य सेवाओं की हालत से चिंतित दिल्ली के मेधावी डॉक्टरों ने इसकी शुरुआत की है। वे घूमते-घामते यहां पहुंचे।
इससे पहले, वे लोग पूरे देश में ग्रामीण क्षेत्रों का दौरा कर ऐसी जगह तलाश रहे थे जहां वे कम कीमत पर ग्रामीणों का अच्छा इलाज कर सकें। इनमें से कुछ डॉक्टर आॅल इंडिया इंस्टिट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (एम्स), नई दिल्ली से निकले थे जिन्होंने यह तय किया कि वे सामुदायिक और ग्रामीण स्तर पर एक स्वास्थ्य केन्द्र विकसित करेंगे।
एम्स में काम करने के दौरान, श्रेष्ठ डाक्टरों का सुदूर इलाकों से आए मरीजों से साक्षात्कार हो चुका था और वे उनकी बीमारियों और समस्याओं से भी वाकिफ हो गए थे। इन डॉक्टरों में कुछेक ऐसे भी थे जो अपने कार्य के अलावा झोपडपट्टियों में जाते थे और वहां मरीजों की हालत देखकर चिंतित थे।
उन्हें अपने जीवन में कुछ सार्थक सकारात्मक काम और अपनी लिखाई-पढ़ाई के बदले समाज सेवा की भावना से ग्रामीण क्षेत्रों में जाने की जरूरत हुई, जहां ऐसे कामों की सख्त जरूरत है। उन्होंने ऐसे स्वास्थ्य केन्द्र की जरूरत महसूस की जहां कम कीमत में बेहतर इलाज किया जा सके।
इस स्वास्थ्य केन्द्र का उद्देश्य है कि ग्रामीण समुदाय को सशक्त कर बीमारियों की रोकथाम और इलाज करना। साथ ही ग्रामीण क्षेत्रों की स्वास्थ्य समस्याओं का अध्ययन करना, उनकी पहचान करना और कम कीमत में उनका उचित इलाज करना।
इस केन्द्र की उपयोगिता और जरूरत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है वर्ष 2000 में बिना किसी उद्घाटन के ओ.पी.डी.शुरू हुई और मात्र 3 महीने के अंदर ही यहां प्रतिदिन आने वाले मरीजों की संख्या 250 तक पहुंच गई।
जन स्वास्थ्य सहयोग ने अपना कार्यक्षेत्र बिलासपुर जिले को बनाया है। यह जिला प्राकृतिक रूप से आरक्षित वन से आच्छादित होने के बावजूद अत्यंत पिछड़ा व निर्धन है। अचानकमार अभयारण्य यही हैं। यहां के अधिकांश बाशिंदे, आदिवासी और दलित हैं। यह इलाका वही है जहां से आज भी बड़ी संख्या में लोग पलायन करते हैं।
बिलासपुरिया मजदूर के नाम से जाने जानेवाले मजदूर देश के कई हिस्सों में जाते हैं। ये मजदूर बहुत मेहनती और सीधे-साधे माने जाते हैं, इसका अर्थ यह भी लगाया जा सकता है कि इन्हें आसानी से बुद्धू बनाकर ठगा जा सके। गाहे-बगाहे इस तरह के समाचार आते रहते हैं।
यहां उल्लेखनीय है कि हरित क्रांति के आरंभिक दिनों से शुरू हुई एक ट्रेन बिलासपुर-अमृतसर एक्सप्रेस यहां के मजदूरों को पंजाब ले जाने के लिए आरंभ की गई थी। यह ट्रेन आज भी चलती है और बड़ी संख्या में काम की तलाश में अधिकांश मजदूर इसी ट्रेन से बाहर जाते हैं। लेकिन जहां भी जाते हैं, वहां स्वास्थ्य की देखभाल नहीं हो पाती।
वे कई कई महीनों तक बीमारी की हालत में काम करते रहते हैं। और जब घर लौटते हैं तब तक बीमारी बढ़ जाती है। ऐसी कई गंभीर बीमारियों के मामले भी स्वास्थ्य केन्द्र में आते रहते हैं। इस तरह के मामलों की ऐसी कई कहानियां यहां के मरीजों से सुनी जा सकती है जिसमें उन्हें रोग का पता तो बहुत पहले चल गया था लेकिन इलाज नहीं हो पाया, या बीच में पैसों की कमी के कारण बंद कर देना पड़ा या इलाज गलत ढंग से हुआ।
जन स्वास्थ्य सहयोग का स्वास्थ्य कार्यक्रम मोटे तौर पर त्रिस्तरीय है। ग्रामीण स्तर पर महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता, सुदूर क्षेत्रों में तीन उप स्वास्थ्य केन्द्र (मोबाइल क्लिनिक) और गनियारी में प्रमुख अस्पताल। हम यहां इन तीनों पर बारी बारी से चर्चा करेंगे।
सामुदायिक ग्रामीण स्तर पर चलने वाला कार्यक्रम 71 गांवों में चलाया जा रहा है। इन गांवों में से सिर्फ कुछ ही गांव सड़क संपर्क से जुड़े हैं और बाकी गांव दूरदराज और अंदर जंगल के हैं। महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता गांव की होती हैं और हमेशा ग्रामीणों के बीच रहती हैं। इस कार्यक्रम से 140 महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता जुड़ी हुई हैं। वे बीमारियों की रोकथाम से लेकर छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज भी करती हैं। साथ ही जरूरत पड़ने पर वरिष्ठ चिकित्सकों से सलाह और इलाज के लिए मरीजों को स्वास्थ्य केन्द्र गनियारी भेजती हैं। कुपोषण, मलेरिया, टी.बी.आदि बीमारियों की रोकथाम के लिए दवाईयां और उचित सलाह देती हैं। ग्रामीणों को मलेरिया जैसी बीमारियों से बचने के लिए गांवों के आसपास गड्ढों आदि को पाटने में मदद करती हैं जिसमें मलेरिया न फैले। वे अपने साथ ग्रामीणों को ले जाकर ऐसे गड्ढों या ठहरे पानी को दिखाती हैं जहां मलेरिया का मच्छर पनपता है जिससे ग्रामीण ऐसे बचाव कर सकें जिससे मलेरिया से बचा जा सके।
महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का चयन का आधार स्कूली शिक्षा नहीं है, बल्कि ग्रामीणों के साथ व्यवहार में मिलनसार, गांव की सेवा और सहयोग की भावना को ही स्वास्थ्य कार्यकर्ता बनने की योग्यता माना जाता है। इस कार्यक्रम से जुड़ी अधिकांश कार्यकर्ताएं अशिक्षित या कम पढ़ी लिखी हैं पर वे चिकित्सकों की सतत देखरेख और प्रशिक्षण के चलते आज बखूबी स्वास्थ्य कार्यकर्ता का काम कर रही हैं। उन्हें पोस्टर, पर्चे आदि की सामग्री के माध्यम से प्रशिक्षित किया जाता है। वे थर्मामीटर से बुखार नापने से लेकर मलेरिया और ब्लडप्रेशर की जांच कर लेती हैं। वे बच्चों का वजन नापती हैं। स्थानीय खाद्य पदार्थों, पोषण प्रदान करने वाले फल-फूलों से कुपोषण दूर करने की सलाह देती हैं। पीने के पानी की गुणवत्ता मापने के लिए एक सरल विधि से जांच करती हैं। इसे स्कूली बच्चों को भी सिखाया गया है जिससे प्रदूषित होने वाली बीमारियों से बचा जा सके।
महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ता, ब्लड प्रेशर, मलेरिया, निमोनिया आदि बीमारी और गर्भवती महिलाओं की जांच करती हैं। वे ओ. आर. एस. का घोल बनाती हैं। वे छोटी-मोटी जांच के लिए नमूने एकत्र कर गनियारी अस्पताल भेजती हैं। इसके लिए वे अपने गांव से गुजरने वाली प्राइवेट बसों का इस्तेमाल करती हैं। सड़कों का आवागमन का स्वास्थ्य सुविधाएं में सहायक हाने का यह एक अच्छा उदाहरण है। स्वास्थ्य केन्द्र के चिकित्सकों का मानना है कि एक अच्छे स्वास्थ्य के लिए एक अच्छे परिवहन की जरूरत होती है। यानी यह सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यक्रम महिला सशक्तिकरण का भी एक अच्छा और सराहनीय प्रयास है।
सुदूर क्षेत्र में तीन उप स्वास्थ्य केंद्र है- बम्हनी, शिवतराई और सेमरिया जहां पर २ वरिष्ठ स्वास्थ्य कार्यकर्ता और ए.एन.एम. होती हैं। सुदूर पहुंच मोबाइल क्लिनिक की वैन हर सप्ताह तीन उपकेन्द्रों बम्हनी, शिवतराई और सेमरिया गांव में जाती है। बम्हनी करीब 54 किलोमीटर अंदर है। अचानकमार अभयारण्य के अंदर बसे इस गांव में पहुंचना बारिश के दिनों में खासा मुश्किल है। मोबाइल क्लिनिक में न केवल डॉक्टर होते हैं बल्कि दवाएं, लेबोरटरी और प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की टीम होती है जो वही पर एनीमिया, मलेरिया, टीबी, पेशाब और गर्भवती जांच आदि उपकेन्द्रों पर ही करती है। यहां जरूरी दवाएं भी दी जाती हैं। कोई संक्रामक बीमारी फैलने पर इस इन उपकेन्द्रों में क्लिनिक की उपयोगिता और बढ़ जाती है।
इसके अलावा, मातृ एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम, फुलवारी, एन.सी.डी. कार्यक्रम, रोगी सहायता समूह, पी.एल.ए. जैसे कई कार्यक्रम हैं। मातृ एवं बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम में ए.एन.सी.जांच, उच्च जोखिम वाले रोगियों की पहचान, दाई प्रशिक्षण, जन्म और नवजात मृत्यु पंजीकरण शामिल है। फुलवारी को 6 माह से 3 वर्ष की आयु वर्ग के बच्चों की देखभाल, सुरक्षा, उचित पोषण सुनिश्चित करने के लिए शुरू किया गया जिससे उनके माता-पिता खेतों में काम करने और बड़े भाई-बहन स्कूल में जा सके। रोगी सहायता समूह में एक जैसे लम्बी बीमारी से पीड़ित रोगी शामिल होते हैं जिसमें वे एक दूसरे को उपचार का अनुपालन करने में प्रोत्साहित करे और बीमारी से सम्बंधित समस्याओं से निपटने में सहायता करे। पी.एल.ए. बैठकें, लोगों में स्वास्थ्य के बारे में ज्ञान और जागरूकता बढ़ाने में मदद करती हैं।गैर संचारी रोग के सर्वेक्षण और फॉलो उप के लिए एन.सी.डी. कार्यक्रम कि शुरुआत की गई है।
गनियारी में जन स्वास्थ्य सहयोग का प्रमुख अस्पताल है जहां से इन दोनों कार्यक्रमों का सहयोग देने के अलावा प्रतिदिन करीब ढाई सौ अधिक मरीजों की जांच व इलाज किया जाता है। इस प्रक्रिया को दो चरणों में विभाजित किया गया है- पहले चरण में मरीजों का पंजीकरण होता हैं जिसके लिए एक ई.एम.आर. प्रणाली विकसित की गयी है, फिर रोगी को संबंधित ओ.पी.डी.में भेजा जाता है जिसके बाद आवश्यक निदान परीक्षण किया जाता है। दूसरे चरण में बीमारी का निदान, आवश्यक उपचार (चिकित्सा या सर्जिकल) और दवाओं का वितरण किया जाता है। यहां यह सुनिश्चित किया जाता है कि रोगी का उसी दिन इलाज हो जाए।
उन्हें यहां फार्मेसी से जो दवा दी जाती है,वो प्रायः बाजार से कम दामों पर मिलती है। यहां आने वाले ज्यादातर मरीज आदिवासी और पिछड़ा वर्ग के होते हैं।
जन स्वास्थ्य सहयोग के संस्थापक सदस्यों में डॉ. योगेश जैन, डॉ. अनुराग भार्गव, डॉ. रचना जैन, डॉ. रमन, डॉ.अंजु कटारिया, डॉ.विश्वजीत चटर्जी, डॉ. माधुरी चटर्जी, डॉ. माधवी शामिल हैं। इसके अलावा, 80 से अधिक स्वास्थ्यकर्मी भी कार्यरत हैं, जो आसपास के गांव के निवासी हैं।
100 बिस्तर वाले इस अत्याधुनिक स्वास्थ्य सुविधाओं से युक्त स्वास्थ्य केन्द्र में ओ. पी. डी. भी है। इस केन्द्र के संस्थापक डॉ.योगेश जैन का कहना है कि हमारा केन्द्र एक शुरुआत है, ग्रामीण भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं का बहुत अभाव है, इस दिशा में और प्रयास करने की जरूरत है।
जन स्वास्थ्य सहयोग का कृषि कार्यक्रम भी है जिसमें देशी धान की कई किस्में संग्रहीत हैं और उनकी जैविक खेती की जा रही है। मेडागास्कर पद्धति के जरिए दोगुना उत्पादन जैसे प्रयोग हो रहे हैं। ज्वार, मडिया जैसे अनाजों के प्रयोग हो रहे हैं जो पोषण की दृष्टि से उपयोगी हैं। इस खेती को किसानों के बीच गांवों में फैलाया जा रहा है, जिससे लोगों को अच्छा पोषण मिले और वे स्वस्थ रहे।
कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि जन स्वास्थ्य सहयोग का काम कई मायनों में अनूठा है। यह केन्द्र कम कीमत में बेहतर इलाज का मॉडल तो है ही, देश के लोगों का स्वास्थ्य कैसे बेहतर हो और मौजूदा स्वास्थ्य सुविधाओं में कैसे और क्या बदलाव किया जाए, यह भी जन स्वास्थ्य सहयोग के काम को देखकर सीखा जा सकता है। एक और महत्वपूर्ण बात इससे उभरती है कि जहां गांव में जाने से आज डॉक्टर बचते हैं वहीं देश के श्रेष्ठ व संवेदनशील डॉक्टरों ने अपना कार्यक्षेत्र देश के सबसे गरीब व जरूररतमंद लोगों के बीच बनाया है, यह अनुकरणीय है।
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