लोकशाही की नींव की लडाई (in Hindi)

By मिलिन्द थत्तेonJun. 03, 2021in Politics
विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख  (SPECIALLY WRITTEN FOR VIKALP SANGAM)

(Title – A Battle for the Foundation of Democracy)

ग्रामसभा याने गांव की लोकसभा या गांव का विधिमंडल. गांव के कायदे-कानून इसी में बनते हैं, निर्णय होते हैं, संकल्प या ठहराव होते हैं. इन संकल्पों को अमल में लाने का काम ग्रामसभा की समितीयां करती हैं. ग्रामसभा कभी विसर्जित नही होती, न उसके चुनाव होते हैं. गांव के सारे मतदाता ग्रामसभा के आजीवन सभासद होते हैं. ग्रामसभा की बैठकें सालभर में कभी भी और कितनी भी हो सकती हैं. और हर ग्रामसभा में नया अध्यक्ष उपस्थित मतदाताओं में से चुना जा सकता है. जैसे मुख्यमंत्री विधानसभा के अध्यक्ष नही होते, वैसे ही सरपंच (या प्रधान) भी ग्रामसभा के अध्यक्ष नही हो सकते.

उपर के यह सारे वाक्य आप किसी भी आम जनजाति/आदिवासी गांव में पढ कर सुनाएं, तो लोग आप पर हसेंगे. कहेंगे – ऐसा भी कहीं होता है क्या? आप तो दिन में सपना देख रहे हो! वास्तविक उपर के सारे विधान ‘पेसा’ (अनुसूचित क्षेत्र में पंचायत विस्तार अधिनियम) इस कानून पर आधारित हैं. लेकिन सच है कि वास्तव कुछ और है.

गांव के लोग आप को बताएंगे की आम तौर पर वास्तव चित्र ऐसा होता है – ग्रामसभा में भीड-शोरशराबा-झगडे होते हैं. जो किसी योजना का लाभ लेना चाहता है, वही नागरिक ग्रामसभा में बैठता है. एक बार उसे अपना लाभ मिल जाएं, तो वह और किसी चीज पर गौर नही करता. सरपंच या उन्ही की मर्जी से कोई अध्यक्ष बन बैठता है. ग्राम पंचायत के आफिस में ही ग्रामसभा होती है, और कहीं नही. अक्सर ऐसे आफिस में तो गणसंख्या से बहुत ही कम लोग बैठ सकते हैं. ज्यादातर लोग तो खिडकी से, बरामदे से झांक कर ही ग्रामसभा देखते हैं. जहाँ ग्रामसभा में बैठना ही संभव नही, वहाँ क्या खाक लोक-सहभाग होगा? ग्रामसभा वर्ष में केवल चार बार होती है, और उस में सरकार से (उपर से) इतने सारे विषय आते हैं के पहले ३-४ होने के बाद कुछ भी समझना मुश्किल हो जाता है. ग्रामसभा का इतिवृत्त लिखते समय बही में जगह खाली छोड लोगों के हस्ताक्षर या अंगूठे ले लेते हैं. बाद में सरपंच – ग्रामसेवक (ग्राम पंचायत सचिव) अपने मनमर्जी से ठहराव लिखते हैं, लाभान्वित नाम भी बदल देते हैं. ग्रामसभा मीटींग तहकूब या स्थगित हो गई, तो सत्ताधारी खूष हो जाते हैं. जितने कम लोग निर्णय के बारे में जाने, उतना भ्रष्टाचार का मौका अधिक! जहाँ कोरम/गणसंख्या जितने लोग ग्रामसभा में आते ही नही, वहाँ पंचायत का चपरासी घर घर जाकर लोगों के अंगूठे/हस्ताक्षर ले आता है. पिछले साल का निधि कहाँ खर्च हो गया, कौनसे काम हुए वगैरह कोई भी जानकारी ग्रामसभा में नही दी जाती.

यह आम चित्र होने के बावजूद जव्हार तहसिल (जि. पालघर, महाराष्ट्र) के कुछ जनजातिय गांव कुछ अलग ही राह पर आगे बढते जा रहे हैं. यह उन के जागरण की गाथा है.

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दो सितंबर 2020 – जव्हार तहसिल की जनपद पंचायत के प्रांगण में 16 ग्राम पंचायतों से 500 नागरिक इकठ्ठा आए थे. कंधे पर ‘पाडोपाडी स्वराज्य’ का झंडा ले लोग धरना देने बैठ गए थे. उन की घोषणा थी, “आमचा हक्क देशाल कधी, आत्ता निगुत ताबडतोब! ग्रामसेवक दिसणार कधी, आत्ता निगुत ताबडतोब!” (हमरा हक दोगे कब, आज अभी इसी वक्त! ग्रामसचिव दिखेगा कब, आज अभी इसी वक्त!) किन अधिकारों की मांग कर रहे थे यह लोग? किसी व्यक्तिगत योजना का लाभ या पैसा या कोई छूट – ऐसा कुछ भी इन की मांगों में नही था. कई अलग थलग मांगों का जुगाड कर किसीने यह भीड नही जमाई थी. चाय-नाश्ता, आना फ्री-जाना फ्री ऐसे कोई आमिष नही थे. घर से रोटी बांधकर, जेब से यात्रा खर्च कर, एक दिन की मजदूरी छोड कर यह सब क्या मांग रहे थे?…

ये लोग जिन गांवों से आए थे, वह सब छोटे टोले, फाल्या, तांडे या पाडे हैं. ऐसे दर्जनभर पाडे जनसंख्या के हिसाब से एक गठरी में बांध सरकारने एकेक ग्रुप ग्राम पंचायत बनाई है. ऐसे पाडों में से सब से बडे व सडक से सटे गांव में ग्राम पंचायत का आफिस होता है. सरकार की योजनाएं वहीं तक पहुंच कर गायब हो जाती हैं. दुर्गम पाडों तक क्वचित इस गंगा के दो-चार बूंद पहुंचते हैं. 2014 में पेसा कानून के नियम महाराष्ट्र में लागू हुए और इस परिस्थिती को बदलने का एक दरवाजा खुला. इन नियमों के तहत ग्राम पंचायत भले एक हो, ग्रामसभा हर पाडे में स्वतंत्र हो सकती है. ग्रामसभा पाडे में होगी इसका मतलब वहां के मतदाता हर योजना का हर खर्चे का निर्णय करेंगे. ग्राम पंचायत बनेगी ग्रामसभा की कार्यकारी समिती – ग्रामसभा ने जो जो तय किया उसे अमल में लाने का काम होगा ग्राम पंचायत का. ठीक से अमल में लाया की नहीं यह देखने का – अर्थात् युटीलायझेशन सर्टीफिकेट देने का अधिकार भी ग्रामसभा का. हर महिने का जमाखर्च, खरीद-विक्री काविवरण ग्रामपंचायत ने ग्रामसभा के सम्मुख पेश करना होगा. – ऐसी कई बातें इन नियमों में लिखी है.

लेकिन नियम मे लिखा और प्रत्यक्ष में बदलाव हो गया, ऐसी जादू भी कहीं होती है क्या? ‘अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर’ – यह काम किसी को तो करना पडता है. नियमों का क्रियान्वयन हो, इसलिए संघर्ष करना पडता है. वयम् चळवळ (अभियान) के कार्यकर्ताओं ने इस संघर्ष की चिनगारी सुलगाई. ग्रामपंचायत से सुदूर पाडों में जा जा कर कार्यकर्ताओं ने पेसा नियमों की जानकारी लोगों को दी. जनमानस जगाया. अपने गांव की प्राकृतिक सीमाओं का नक्शा और सारे मतदाताओं ने हस्ताक्षरित किया प्रस्ताव सरकार को प्रस्तुत करने की मुहीम छेड दी. दो महिनों में 47 गांवों ने (पाडों ने) ऐसे प्रस्ताव जव्हार के उपविभागीय अधिकारी के सामने प्रस्तुत किए. आगे इस मुहीम में और भी गांव जुडते गये. नियमों में ऐसा भी कहा है, की प्रस्ताव प्रस्तुति के दिन से तीन महिने के भीतर उपविभागीय अधिकारी स्वयं गाव में आकर प्रस्ताव की पडताल करें. जव्हार के अधिकारी को यह ध्यान दिलाने पर उन्होंने कुछ गांवों में आकर पडताल की और सिफारिशें जिलाधिकारी (कलेक्टर) को भेज दी. कुछ गांवो में पडताल भी न हुई और सभी गांवों के प्रस्ताव कलेक्टर कचहरी में थम गए.

नियमों में आगे ऐसा भी कहा है की, उपविभागीय अधिकारी ने यदि तीन महिने की अवधि समाप्त होने तक पडताल नही की, तो अगले डेढ माह में जिलाधिकारी यह काम करेंगे. व उन की सिफारिश पर विभागीय आयुक्त गांव को राजपत्र में घोषित करेंगे. “परंतु” इस अवधि में यदि जिलाधिकारी ने कोई कार्रवाई नही की, तो गांव अपने आप घोषित माना जाएगा. (देखें – महाराष्ट्र पेसा नियम ४(४) परंतुक). जव्हार तहसिल के 42 गावों ने इसी “परंतु” का सहारा लिया. गांव में लोगों ने चंदा इकठ्ठा कर परंतुकानुसार घोषित ग्रामसभा का लेटरहेड और मुहर (मुद्रा) बनवाई. ग्राम पंचायत, जनपद पंचायत समिती, व अन्यराजकीय कार्यालयों से पत्राचार भी इन ग्रामसभा लेटरहेड पर करना लोगों ने शुरू कर दिया. नोकरशाही ने लोगों का डराया – ऐसे लेटरहेड बनाने के लिए जेल जाओगे. लोगों ने चुनौती दी, हम पर गुनाह दाखिल करा ही दो साहेब! देखें तो की कौन नियमों को समझ रहा है और कौन नासमझी कर रहा है. लोगों का आत्मविश्वास देख नौकरशाही चुप हो गई.

हमारे पाडे में फलानी तारीख को फलाने पेड की छांव में ग्रामसभा की बैठक होगी. इस में हाजिर रहें और अपने खाते की फलानी जानकारी देवें – ऐसी लिखित नोटिस लोग ही ग्राम पंचायत सचिव व अन्य कर्मचारीयों को देने लगे. इस नोटिस पर पहली ग्रामसभा बैठक के अध्यक्ष का हस्ताक्षर होता था. पहली कुछ नोटिस को कोई प्रतिसाद नही मिला. लेकिन धीरे धीरे कभी वनरक्षक, कभी पटवारी, कभी बिजली कंपनी का वायरमन, कभी स्वास्थ्य कर्मचारी, जिला परिषद शाला के प्रधानाचार्य – ऐसे कर्मचारी इन ग्रामसभाओं में आने लगे. कई बार इन कर्मचारियों को लोगों ने याद दिलाया की, हम लोग इस के पहले भी आप को दो बार नोटिस दे चुके हैं, तिसरी बार भी नोटिस के बावजूद आप ग्रामसभा में नही आये, तो यह कानूनन अपराध है.

यह सब होने के बावजूद इन ग्रामसभाओं के संकल्प स्वीकारने में सरकारी विभाग हिचकिच कर रही थी.

फिर इन ग्रामसभाओं ने संगठित हुंकार का निश्चय किया. वयम् के नेत्तृत्व में ‘ग्रामसभा जागरण’ रैली निकली. 42 ग्रामसभाओं से ढाई हजार नागरिक इस रैली में शामिल हुए. तारपा, तूर, ढोल ऐसे पारंपरिक वाद्य बजाते हुए निकली इस रैली में हजारो कंठों से एक गाना गूँज रहा था…(उस गीत का कुछ हिंदी सा रूपांतर ऐसा है) –

सरकार का आटा ढिला, आटा कैसे ढिला ढिला रे माझे गुलाबाचे फुला

पैसे दिए गरामकोष में, हारे कैसे गरम खिशात रे माझे गुलाबाचे फुला

गाव मेरा एकजुट करूंगी, हक मेरा खींच लाऊंगी रे माझे गुलाबाचे फुला

पेसा का कानून बना, कानून बना भला भला रे माझे गुलाबाचे फुला

ग्रामसभा पाडे में साजे, गांव मेरा गर्जेगर्जे रे माझे गुलाबाचे फुला

इस सभा से संवाद करने तत्कालीन पालकमंत्री व आदिवासी विकास मंत्री विष्णू सवरा और सहायक जिलाधिकारी पवनीत कौर मंच पर उपस्थित थे. मंत्री जी ने सभा में निःसंदिग्ध शब्दों में कहा की, ग्रामसभा पाडे में ही होगी और ग्रामसभा को ही निर्णय के सारे अधिकार हैं. जिलाधिकारी महोदया ने आश्वस्त किया की जल्द ही गांव घोषित होंगे.

भोकरहट्टी गांव के एक काका के शब्दों में कहें तो – “अब तो हम बता देंगे ग्रामसेवक-सरपंच और बाकी साहब लोगों को – ठीक से सुना न मंत्री ने क्या बोला? हम लोग पगलाये नही हैं, जो कानून में है वही कर रहे हैं!”

इस रैली के बाद ग्रामसभाओं के लेटरहेड और नोटिस को गंभीरता से लेना शुरू हो गया. किंतु फिर भी “हमें उपर से कोई कागज नही आया, नोटिफिकेशन नही है” यह रूदाली तो नौकरशाही गाती रही. फिर ग्रामसभाओं ने सीधे राजभवन पर दस्तक दी. तत्कालीन राज्यपाल विद्यासागर राव को निवेदन दिए. फिर विभागीय आयुक्त जगदीश पाटील से मुलाकात की और अगले एक माह में पाडों को ग्रामसभा घोषित करने का राजपत्र निकला. ग्रामसभा जागरण रैली से बस नौ महिनों में यह बात बनी. लोगों का विश्वास सौ गुना बढा.

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वयम् अभियान का आग्रह रहा की ग्रामसभा हर महिने होनी चाहिए. वांगडपाडा, साखळीपाडा, डोवाचीमाळी, मुहूपाडा, पेंढारशेत, ताडाचीमाची, काष्टीपाडा, भोकरहट्टी, देवीचापाडा, खैरमाळ, खर्डी, खरपडपाडा – इन 12 गावों ने इस आग्रह पर अमल किया. प्रत्येक ग्रामसभा में अगली ग्रामसभा मीटींग की तारीख और समय तय करना. वैसे ही नोटिस लिखना. वह नोटिस सरकारी कार्यालयों में और वयम् अभियान के केंद्र में जाकर रसीद (ओ.सी.) लाने का काम कौन करेगा यह भी वहीं तय करना. गांव के काज के लिए तहसिल जाने वाले दो व्यक्तियों का यात्रा-खर्च भी गांव के चंदे से दिया जाता है. ऐसा चंदा गांव के उत्सव के लिए निकालने के लोग आदी थे ही. इस चंदे को ईराड कहते हैं. अब ग्रामसभा का ईराड भी लोगों की आदत में बैठ गया है. अर्थात ऐसा हमेशा ही हर गांव में होता है ऐसी बात नही. जहाँ जहाँ मानव स्वभाव है, वहाँ वहाँ उत्साह का ज्वार-भाटा तो आते जाते रहता ही है.

ग्राम पंचायत सचिव आए बिना ग्रामसभा चल ही नही सकती – इस अंधश्रद्धा से लोग कब के मुक्त हो चुके हैं. ग्रामसभा चलाने का प्रशिक्षण वयम् वालों ने दिया है. हर सभा की शुरुआत में अध्यक्ष चुनना. सरपंच यदि सभा में आए, तो उसे सम्मानपूर्वक बगल की कुर्सी में बिठाना. लेकिन अध्यक्ष पेसा के नियमानुसार गांव का ही मतदाता बनेगा. अध्यक्ष चुनने के बाद उसने (महाराष्ट्र ग्रा.पं. कानून के धारा 54-ग के तहत) उस सभा का सचिव नियुक्त करना. सचिव इतिवृत्त लिखता/लिखती है. गांव के कई युवा/युवतीयों को वयम् वालों ने इतिवृत्त लिखना भी सीखाया है. बाबू ग्राम पंचायत सचिव बिना गांवगाडा रूकता नही. इतिवृत्त बही में जो भी लिखा हो, अंत में जोर से पढना. उस के बाद सब ने अंगूठे/हस्ताक्षर लगाना– बस् हो गई ग्रामसभा. फिर अगला काम – इतिवृत्त रजिस्टर में लिखे ठहरावों की नकल प्रत ग्रामसभा के लेटरहेड पर लिखना, अध्यक्षजी ने उसपर दस्तखत और मुहर लगाना. अब यह ठहराव किसी भी सरकारी कचहरी में जा सकता है.

इन ग्रामसभाओं में केवल सरकारी जी आर का पठन या ‘उपर से आया’ अजेंडा नही होता. लोगों ने लोगों के लिए चलाई ग्रामसभा होने के कारण जो भी विषय लोगों को महत्त्वपूर्ण लगते, ऐसे सारे विषय इस में आते हैं. पेयजल पाईपलाईन पर हुए विवाद मिटाने की बात हो या आने वाले किसी उत्सव की तैयारी हो–सारे विषय ग्रामसभा में! अब तो इतनी आदत हो गई है की कोई नई एनजीओ या सरकारी एजेन्सी गांव में आएं – तो उन्हें भी लोग बताते हैं, हमारी ग्रामसभा में आईए, सारे फैसले वहीं होते हैं.

अपनी भीतरी शक्ति जगाना यह भी वयम् का आग्रह रहता है. इसी लिए श्रमोत्सव भी आदत का हिस्सा बना. वर्ष में कम से कम तीन बार गांव के सारे घर एक दिन का श्रमदान करते ही हैं यही श्रमोत्सव. पेंढारशेत जैसे कुछ गांवो में तो हर महिने श्रमोत्सव की रीति बन गई है. खरपडपाडा में ग्रामवासियों ने की सफाई, भोकरहट्टी के लोगों ने रास्ते के गढ्ढे दुरूस्त कर दिए, वाकीचापाडा के लोगों ने सभामंडप बनाया–ऐसे हर श्रमोत्सव के लिए शाबाशी देने का कार्यक्रम वयम् अभियान के मासिक अभ्यास वर्ग में होता है.

हर महिने का तीसरा सोमवार –मतलब जव्हार स्थित वयम् लोकशाही जागर केंद्र में जाने का दिन. वहीं ग्रामसभाओं का मासिक अभ्यास वर्ग चलता है. प्रत्येक गांव से कुछ पुरूष, कुछ महिलाएं इस वर्ग के लिए आते हैं. पिछले माह में कुछ गांवों ने बढिया काम किया हो, तो उन पर तालियों की बौछार वहाँ होती है. सरकार के नये निर्णय व नियमों की जानकारी वहाँ मिलती है, कानून की नई खुबियां पता चलती है. हम ने क्या करना है इसका कृती कार्यक्रम मिलता है. हर अभ्यास वर्ग के बाद सब ने किसी न किसी शासकीय अधिकारी से मिलने जाने की भी रीति है. कई बार अधिकारी खुद ही इस वर्ग में आते हैं. उनकी योजनाओं का टार्गेट पूरा करने के लिए गांववालों से, ग्रामसभा से वे मदद मांगते हैं. साहब का डर गायब हो जाता है.

जैसे जैसे अपनी ग्रामसभा की आंतरिक शक्ति का अनुभव लोग करने लगते हैं, वैसे ही वह ग्रामसभा सशक्त होते जाती है. वांगडपाडा की ग्रामसभा ने पानीयोजना आरेखित की. वयम् के तज्ञों ने इस में मदद की. योजना बनाते वक्त ध्यान में आया की एकमात्र कुएं का पानी मार्च में खत्म होते जाता है. गांव के बुजुर्गों ने बताया की यह कुआं बनने से पहले उपर जमीन के भीतर एक झरना हुआ करता था. वह गर्मी के अंत तक पानी देता था. यह बात सुनकर युवाओं ने उस झरने की जगह छह फीट खुदाई की. वहां पानी था. फिर लोग ग्राम पंचायत में सरपंच-ग्रामसचिव से मिलने गए. उन्हें पानी दिखाया और सिमेंट-रेत वगैरह मांग लिया. इस बात का लिखित ग्रामसभा संकल्प भी दिया. हप्ते के भीतर ही माल मिला और लोगों ने उस झरने को कुएं मे छोडा. मई महिने के बीच में उस कुएं का पानी बढ गया.

खरपडपाडा हर बरसात में चारों तरफ से बाढ से घिर जाता था. किसी गर्भवती महिला या सर्पदंश के पेशंट को अस्पताल ले जाना असंभव हो जाता था. खरपडपाडा ग्रामसभा ने वयम् की सहायता से तीन वर्ष लगातार पीछा कर के वन विभाग, राजस्व विभाग, पंचायत विभाग आदि सब के परमिशन (अनुमति) प्राप्त किए. और जनपद पंचायत से सडक निर्माण का काम सैंक्शन करवा लिया. लॉकडाऊन के महिनों में इस कच्ची सडक का काफी काम हो गया. अब पक्की सडक बनना बाकी है. लेकिन कच्ची सडक से क्यों न हो, अस्पताल में पेशंट को ले जा सकते हैं. संभवतः १०८ वाली रूग्णवाहिका भी गांव तक आ पाएगी.

खैरमाळ यह मात्र 15 घरों का पाडा. नदी से सटा हुआ. इन के नदी के ताल से कई लोग रेत निकाल ले जाते थे. इर्दगिर्द की खेती धस जाती थी. जमीन टूट नदी में गिरती थी. पेसा कानून में रेत-पत्थर इ. लघु खनिजों पर ग्रामसभा को नियंत्रण का अधिकार दिया गया है. खैरमाळ ग्रामसभा ने इस नियम का प्रयोग कर रेत निकालने पर पाबंदी लगाई. अब यह ठहरा छोटा गांव. पडोसी बडे गांवों ने, रेत व्यापारीयों ने इन्हे डराया-धमकाया. पर खैरमाळ वाले डटे रहे. सीनाजोरी करने वालों को वे नम्रतापूर्वक बोले, “हमारी पाबंदी के बावजूद रेत निकालोगे–तो कानूनन कार्रवाई होगी. हम सरकार के पास गए, तो दंड हमें नही आप को भुगतना होगा. उस से अच्छा यहाँ से रेत निकालना बंद कर दो.” धीरे धीरे रेत निकालना बंद हो गया.

भोकरहट्टी गांव पहाड पर और कुआं नीचे खाई में था. सर पर पानी ले कर चढनें में जान निकल जाती थी. भोकरहट्टी ग्रामसभा ने दो साल पीछा करके, ग्रामसभा जागरण रैली में परिचित हुए आदिवासी प्रकल्प अधिकारी के पीछे लगकर ठक्कर बाप्पा आदिवासी वस्ती सुधार योजना से पेयजल पाईपलाईन मंजूर करवा ली. पंपघर, पाईपलाईन, टंकी सारा निर्माण पूरा हो गया. लेकिन गांव के हर घर तक नल ले जाने के लिए पर्याप्त एस्टीमेट योजना में नही था. भोकरहट्टी वालों ने हार नही मानी. सब ने ईराड (चंदा) निकाला और श्रमदान भी किया. हर देहलीज तक नल पानी लाया.

डोवाचीमाळी, मुहूपाडा, ताडाचीमाची व अन्य पांच गावों ने बरसात के बाद (दिसंबर में) खाली बोरीयों के बांध बनाए. वयम् के शहरवासी दोस्तों ने खाली बोरे भेजे थे बस्. कुल 24 बांध एक हप्ते में बन गए. मवेशी (गाय-बकरी) को पीने, लोगों को नहाने, कपडे धोने के लिए काफी पानी हो गया. कुएं से खीचने की जरूरत न रही.

डोयापाडा गांव में वैयक्तिक वन अधिकार के खेती में कुएं खोदने थे. वयम् से निधि मिलने वाला था. ग्रामसभा ने नायब तहसिलदार और वनरक्षक इन की उपस्थिति में इस विषय पर चर्चा की. सामुहिक वनहक्क प्रबंधन समिति की निगरानी में जंगल का कोई भी नुकसान न करते हुए कुओं का निर्माण किया जाएगा ऐसा संकल्प ग्रामसभा ने किया. फिर भी वनविभाग ने इस काम में बाधाएं लाई. जेसीबी जप्त करने की धमकी दी. दो कुओं का काम जबरन रुकवाया. लेकिन ग्रामसभा ने धीरज नही छोडा. अपना पक्ष कानुनी और सच्चाई का है. हम पीछे नही हटेंगे. – इस विश्वास से ग्रामसभा अडीग रही. जिलाधिकारी व उपविभागीय अधिकारी के सामने शिकायत दर्ज कराई. उन अधिकारीयों ने वनविभाग व ग्रामसभा को सामने बुलवाकर न्याय किया. और कुल छह कुओं का निर्माण विनारुकावट हो पाया. गत तीन वर्षों से डोयापाडा ग्रामसभा ने पहाडों पर जंगल की रक्षा की थी, उसी कारण भूजल का स्तर बढ गया. कुएं बारमाही बने.

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मा. राज्यपाल के आदेशानुसार इन ग्रामसभाओं को आदिवासी उपयोजना के बजट का 5% निधि मिलना था. सरकार से हर साल यह निधि निकलता था और ग्राम पंचायत के कीप में अटक जाता था. यहीं से संघर्ष का अगला चरण शुरू हुआ. हर पाडे का ‘ग्रामसभा कोष’यह बैंक खाता खुलने में एक साल लगा. पर उस के बाद भी उस खाते में पैसे नही आ रहे थे. पैसे तो ग्रामपंचायत के ही खाते में पडे रहते. २२ पाडों की ग्रामसभाओं ने वयम् अभियान के नेतृत्व में इस विषय पर संघर्ष खडा किया. इस लेख के प्रारंभ में उल्लेखित ‘ठिय्या आंदोलन’ इसी संघर्ष की एक कडी थी.

महाराष्ट्र ग्राम पंचायत कानून व पेसा कानून – दोनों कहते हैं कि ग्रामपंचायत ने जमाखर्च / आयव्यय का विवरण ग्रामसभा के सामने पेश करना जरूरी है. यह कानूनन अनिवार्य है. लोगों की एक सादी सी मांग थी – जमाखर्च दिखाओ. ताकी हम तय कर सकें कि बची रकम से कौन कौन से काम करने हैं. जो भी खर्च हुआ होगा वह वाजिब था या नही यह भी देख लें. दिसंबर 2017 में पाडे-पाडे की ग्रामसभाओं ने अपनी अपनी ग्राम पंचायतों को निर्देश-पत्र दिए, कि भई जमाखर्च प्रस्तुत करो. लेकिन पंचायतें टस् से मस् न हुई. फिर 26 जनवरी की ग्रामसभा का कामकाज लोगों ने थालीयां बजाकर रोके रखा. पहले जमाखर्च पठन फिर बाकी सारा कामकाज. तब कुछ ऐरीगैरी आधी अधूरी जानकारी दे कर पंचायत सचिव ने छुटकारा पा लिया. पर लोगों ने मामला छोडा नही. दो महिने बाद (मार्च 2017 में) 14 ग्रा.पं. से 391 नागरिकों ने सूचना अधिकार के अर्ज दाखिल कर यही जानकारी मांगी. उन्हें धमकीयां मिली, पर जानकारी नही. फिर पहला अपील किया, अपिलीय अधिकारी ने जानकारी देने के आदेश देने के बावजूद 14 में से केवल एक ग्रा.पं.ने जानकारी दी. फिर दूसरा अपील किया, उस पर छह महिने राह देखने के बाद फिर सुनवाई हुई. गांव से चंदा इकठ्ठा कर यात्रा-खर्च कर लोग नई मुंबई में सुनवाई के लिए गए. सूचना आयुक्त की कुर्सी पर बैठे नौकरशाह ने लोगों को खूब डांटा. ग्राम पंचायत सचिव बेचारे इतना काम करते हैं, आप लोग किसी के बहकावे में आकर उन्हे तंग कर रहे हो – यह पाठ उस महान आयुक्त ने लोगों को पढाया. फिर भी लोग न झुके, न रूके. पालघर जिला पंचायत के तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी को ग्रामसभाओं ने आवेदन दिया, वयम् अभियान ने आवेदन दिया. उन्हों ने हाँ कहा, जानकारी दी जाएगी. उस के बाद एक साल तक राह देख ग्रामसभाओं ने फिर तहसिल पंचायत में आवेदन दिया. और अंततः 16 अगस्त 2020 को वयम् अभियान ने सीधी बात कही –15 दिन में ग्रा.पं. से जानकारी दिलवाएं वरना हम सडक पर उतरेंगे. फिर प्रशासन में कुछ खलबली मची. 14वे दिन देर शाम को कुछ पंचायत सचिवों ने गांव-गांव मे आकर आधी अधूरी जानकारी के कागज लोगों के हाथ मे थमाए. तहसिल पंचायत के बीडीओ ने वयम् से कहा कुछ और दिन रुकें. किंतु ना ग्रामसभा ना वयम् तैयार थे रुकने के लिए. संयम खत्म हो चुका था.

युवा, वृद्ध, महिला ऐसे करीब पांच सौ नागरिक खुद का किराया खर्च कर और एक दिन का काम/मजदूरी छोड कर इस आंदोलन के लिए जव्हार (तहसिल शहर) आए. इस में तिनकाभर भी व्यक्तिगत लाभ नही मिलने वाला था. दर्जनों मांगों का जुगाड नही था. खाना पिना तो दूर, पानी भी कोई मांगनेवाला नही था. लोकशाही के एक अत्यंत मूलभूत सिद्धांत के लिए – पारदर्शिता के लिए – शासन को उत्तरदायी बनाने के लिए – यह अती सामान्य लोग सडक पर उतरे थे.

गटविकास अधिकारी (बीडीओ) ने एकेक ग्राम पंचायत के सचिवों को व सरपंचों को बुलावा भेजा. लोगों के आवेदन में दी सारी जानकारी तुरंत प्रस्तुत करने को कहा. कुछ जानकारी जो तब नही जुटा पाए, वह आठ दिन में देने का वचन दिया. सामान्य नागरिक के प्रति आप जवाबदेह हैं – यह पाठ कई नौकरशाह उस दिन सीख गए. 16 ग्रामपंचायतों की जानकारी निचोडने तक पांच सौ नागरिक देह-दूरी और मास्क के नियम पालते हुए 5 घंटे तक शांत बैठे रहे.

ग्रामसभाओं ने जैसे सरकार से पारदर्शिता का आग्रह किया वही सत्याग्रह खुद के साथ भी किया. जिन गावों को पेसा निधि (टीएसपी 5%) मिला था, उन गावों ने कामों का चयन तो ग्रामसभा में किया ही था, पर साथ ही पूरा पैसा खर्च कर उस का सारा हिसाब फलक पर लिख सब के सामने खुला रखा. गांववालों की कहाँ क्षमता होती है, उनसे इतना पैसा कैसे खर्च हो पाएगा – वगैरह नौकरशाही बकवास को लोगों ने अपनी कृती से उत्तर दिया.

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ग्रामसभा जागरण की इस पहल में जो 12 गांव अग्रणि रहे, उन से कई नए गांव प्रेरित हुए. वयम् अभियान ने अब इन 12 ग्रामसभाओं से विदा ली है और अगले चरण के 15 गांवों मे यहीं ग्रामसभा शक्ति जागरण का काम शुरू कर दिया है. यहीं लोकशाही की नींव की लडाई है. संविधान की कृपा और जनता जनार्दन की शक्ति से आगे भी विजय ही पाएगी.

  • मिलिन्द थत्ते

कार्यकर्ता, वयम् अभियान

पत्ता – लोकशाही जागर केंद्र, मु. जांभूळविहीर पो. ता. जव्हार जि. पालघर (महाराष्ट्र) पिन 401603

इमेल –[email protected] फोन –+91.253.4039002, 91.9421564330

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