विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख (SPECIALLY WRITTEN FOR VIKALP SANGAM)
हाल ही मेरा इन्दौर जाना हुआ। वहां सामाजिक कार्यकर्ता दंपति राहुल बनर्जी सुभद्रा खापर्डे के घर ठहरा तो मुझे उनके पानी बचाने, घरेलू बिजली की जरूरत सौर ऊर्जा से पूरी करने व जैविक खेती करने के प्रयोग ने आकर्षित किया।
उनका घर खंडवा रोड़ पर स्थित है। दूर से ही हरी-भरी पत्तियों व लम्बी लताओं से ढका हुआ, जैसे प्राकृतिक बंधनवारों से सजाया गया हो। मधुमालती व अपराजिता के खिले फूलों की छटा ऐसी कि देखते ही रहो।
सामाजिक कार्यकर्ता राहुल बनर्जी आई. आई. टी. खड़गपुर के सिविल इंजीनियरिंग के छात्र रहे हैं। हालांकि उन्होंने अपना अधिकांश जीवन पश्चिमी मध्यप्रदेश के आदिवासियों के बीच उनके अधिकारों के लिए संघर्ष करते बिताया है। बहरहाल, उन्होंने अपनी सिविल इंजीनियरिंग की पढ़ाई का उपयोग जल एवं ऊर्जा संरक्षण के कार्यों में किया है।
पिछले कुछ सालों से राहुल इन्दौर शहर में रहते हैं। उऩ्होंने अपने घर को ही कार्यालय बनाया है। इसे बिजली और पानी के लिहाज से आत्मनिर्भर बनाया है। वे सौर ऊर्जा से बिजली की काफी घरेलू जरूरतें पूरी कर लेते हैं। वे दिन में बिजली विभाग को अतिरिक्त बिजली दे देते हैं और रात को जब सौर ऊर्जा पैदा नहीं होती तब विभाग से बिजली लेते हैं। बिजली विभाग के साथ एक संविदा के तहत् यह व्यवस्था की गई है। और इस कारण वे बिजली विभाग से बिजली लेते कम हैं, देते अधिक हैं।
इस प्रकार, वे न केवल अपनी जरूरतों को जलवायु परिवर्तन में बढ़ोतरी किए बिना पूरी कर रहे हैं बल्कि जलवायु परिवर्तन को रोकने में योगदान दे रहे हैं।
पानी के लिए भी उन्हें नगर निगम पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। वे बारिश के पानी को रेनवाटर रिचार्जिंग के माध्यम से भू-जल के भंडार में पंहुचाते हैं। इसके लिए बगीचे में गड्ढे खोदे गए हैं जिसमें ईंट के टुकड़े और रेत भरी गई है ताकि जो पानी पाइपों के माध्यम से वहां तक पहुंचाया गया है, वो उसे सोख लें और ज़मीन में रिचार्ज कर दें।
रसोई व संडास के गंदे पानी को भी शुद्ध कर उससे भूजल को रिचार्ज किया जाता है। विशेष रूप से उल्लेखनीय है कि संडास के पानी को सेप्टिक टैंक के अंदर पम्प द्वारा हवा मारकर शुद्ध किया जाता है। बाद में इसे सोक पिट में ईंट और रेत से और शोधित कर ज़मीन में उतारा जाता है। आमतौर पर सेप्टिक टैंक में पानी को शोधन बिना हवा के जरिए किया जाता है पर इस प्रक्रिया से बदबूदार गैस पैदा होने के अलावा पानी का शोधन भी कम होता है। पर सेप्टिक टैंक में पम्प से हवा मारने से न केवल बदबू नहीं होती है बल्कि पानी का शोधन भी और अच्छा होता है। इस सब से भूजल रिचार्ज इतना अधिक होता है कि गर्मियों के मौसम में जब आसपड़ौस के दूसरे बोरवेल सूख जाते हैं, तब उनके बोरेवेल में पर्याप्त पानी रहता है जो आसानी से घर में पानी की आपूर्ति कर देता है।
इस प्रकार, उनके घर से न तो कोई पानी बाहर जाता है और न ही कोई पानी बाहर से अंदर आता है। वे घर के अंदर सहेजे गए कुदरती पानी पर ही निर्भर है। शहर में रहते हुए भी ऊर्जा औरे पानी, दोनों में ही वे आत्मनिर्भर है।
राहुल की पत्नी सुभद्रा, जो न केवल समाज कार्य करती हैं बल्कि उसमें पीएचडी भी कर रही हैं। उन्होंने घर के बगीचे में कई पेड़ पौधे लगाए हैं। जैसे अमरूद, नीम, सहजन, पपीता, केला इत्यादि। मौसमी सब्जियां, फूल और लताएं भी हैं। रसोई के कचरे को कम्पोस्ट बनाकर इन पौधों को पोषित किया जाता है। इस प्रकार इस घर से केवल सूखा कचरा ही बाहर जाता है। फलस्वरूप जब गर्मियों में इन्दौर शहर का तापमान 48 डिग्री सेल्सियस तक होता है, तब उनका यह घर अपेक्षाकृत बहुत ठंडा रहता है। अधिकांश समय कूलर और पंखों की जरूरत नहीं पड़ती जिससे बिजली की बचत होती है। इसके अलावा, पेड़-पौधों से प्राप्त लकड़ियां घरेलू निर्धूम चूल्हे में जलाने के काम आती हैं।
परिवार की भोजन की जरूरत खेती से पूरी होती है। इंदौर से पचास किमी दूर स्थित गाँव पांडुतालाब (बागली, जिला देवास) में उनकी खेती है। इसे भी सुभद्रा संभालती हैं। विलुप्त होते जा रहे देसी बीज जैसे ज्वार, बाजरा, मक्का,रावला, कोदो, देसी धान, उड़द, तुअर, मूँगफली इत्यादि की खेती की जाती है। कम पानी वाले गेंहू और चना भी बोए जाते हैं। सब्जियों की खेती की जाती है। और यह सब पूरी तरह जैविक तरीके से की जाती है। यहां भी मिट्टी और पानी संरक्षण का कार्य किया गया है जिससे कि खेत का पानी खेत में ही रहता है। पंप चलाने के बिजली सौर ऊर्जा से उत्पादित की जाती है। खेती में पानी का उपयोग कम करने के लिए टपक सिंचाई प्रणाली लगाई गई है। कुल मिलाकर, खेती और खान-पान में भी प्रकृति का ध्यान रखकर पर्यावरण संरक्षण का काम किया जा रहा है।
वर्तमान में सरकार को शहरों में पानी और बिजली उपलब्ध कराने में और गंदे पानी और कचरा के प्रबंधन में बहुत बड़ा खर्च करना पड़ता है। इसके अलावा, खेती में अत्यधिक रसायन और पानी के बेजा उपयोग के कारण किसानी और पर्यावरण दोनों ही संकट में है। ऊपर से खान-पान भी रसायनों से प्रदूषित होने से स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा हो गया है। ज्यादा उत्पादन के साथ ज्यादा बीमारी भी हो गई हैं। राहुल और सुभद्रा ने अपने जीवन प्रयोगों से साबित कर दिया है कि विकेन्द्रित तरीके से अपेक्षाकृत कम खर्च में शहर में बिजली और पानी का प्रबंध सुचारु रूप से किया जा सकता है। साथ ही गांवों में खेती को रसायन मुक्त कर पैसे और पर्यावरण दोनों को बचाया जा सकता है।
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(A House of Solutions: In this video Rahul Banerjee, a urban water expert tells us how we can manage our water and sanitation problems in our home by setting his own home based model approach.)