मौलिक विकल्पों की राह (In Hindi)

By अशीष कोठारी (Ashish Kothari)onDec. 04, 2024in Economics and Technologies

(Maulik Vikalpon ki Raah)

(बाबा मायाराम द्वारा अनुवादित) (Translated from English by Baba Mayaram)

भारत में विकल्प संगम प्रक्रिया के दस वर्ष

एक दशक पहले, भाषाविद् और विद्वान-कार्यकर्ता गणेश देवी के साथ मेरी चर्चा में भारत में विकल्पों के संगम की शुरुआत करने का विचार सामने आया था। इसके बाद, हम इस विचार को लेकर कई संगठनों और व्यक्तियों तक पहुंचे, जो प्रकृति के विनाश और समुदायों के विस्थापन सहित ‘विकास’ की हिंसा पर सवाल उठा रहे थे, और न्याय और पारिस्थितिकीय ज्ञान के साथ मानवीय जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के वैकल्पिक तरीकों को बढ़ावा दे रहे थे। 

लोकतंत्र विकल्प संगम, स्कूल फॉर डेमोक्रेसी, राजस्थान, अक्टूबर 2019

इस विचार का जोरदार समर्थन प्राप्त करने के बाद, साल 2014 में विकल्प संगम की शुरूआत हुई, जिसका मुख्य उद्देश्य इस विचार से सहमत आंदोलनों और संगठनों को एक साथ लाना था। एक दशक के बाद, प्रक्रिया की समीक्षा करने और अगले चरण की योजना बनाने का समय आ गया है, जिसके लिए नवंबर 2024 में एक राष्ट्रीय संगम का आयोजन किया जा रहा है। लेकिन इस बीच क्या हुआ और क्या नहीं हुआ, इस पर मेरी राय यहां संक्षेप में प्रस्तुत की गई है। 

प्रेरणा क्या है?  

दुनिया भर में लोगों के आंदोलन पितृसत्ता, पूंजीवाद, राज्यवाद, जातिवाद, नस्लवाद और मानव-केंद्रितता सहित सत्ता के ढांचों से लड़ रहे हैं – जो पारिस्थितिकीय रूप से विनाशकारी, आर्थिक रूप से अन्यायपूर्ण और सामाजिक रूप से विघटनकारी हैं। प्रतिरोध, जो जीवन के मौजूदा तरीकों को बचाने का प्रयास करता है, जो एक बेहतर दुनिया की हमारी खोज के लिए प्रासंगिक है, महत्वपूर्ण हैं, लेकिन पर्याप्त नहीं हैं। लिंग, जाति, जातीयता, क्षमता के आधार पर जीवन के कई पारंपरिक तरीकों की अपनी असमानताएं हैं; इसके अतिरिक्त, प्रतिकूल नीतियों, जनसांख्यिकीय परिवर्तनों और नई पीढ़ियों के दृष्टिकोण के कारण जीवन के ये तरीके हमेशा बुनियादी जरूरतों या वैध आकांक्षाओं को पूरा करने में सक्षम नहीं होते हैं। ऐसे मुद्दों को संबोधित करने के लिए पारंपरिक और नई अवधारणाओं और प्रथाओं दोनों से प्राप्त रचनात्मक विकल्पों की आवश्यकता होती है। 

सामाजिक आंदोलन अक्सर अलग-अलग मुद्दों पर काम करते हैं। हम इन विविध आंदोलनों को एक साथ लाने, उनके बीच अंतर-संबंधों को समझने और बढ़ाने के लिए क्या कर सकते हैं? हम वैश्विक राजनीतिक, पारिस्थितिकीय, आर्थिक और सामाजिक संकटों को सामूहिक रूप से कैसे संबोधित कर सकते हैं?  पृथ्वी को बर्बाद किए बिना हम मानवीय जरूरतों व आकांक्षाओं को कैसे पूरा कर सकते हैं? बेहतर भविष्य के बारे में हमारा दृष्टिकोण क्या है? और हम यह कैसे सुनिश्चित करें कि जो ‘समाधान’ वही सत्ताधारी प्रणाली द्वारा जो अपनाए जा रहे हैं, जिसने समस्या पैदा की है, जैसे कि कार्बन ट्रेडिंग, हरित अर्थव्यवस्था इत्यादि का खुलासा किया जाए?  यहां तक ​​कि टिकाऊ विकास जैसी सतही पहल भी विकास-आधारित, पूंजीवादी या राज्यवादी दृष्टिकोण की मूल बातों को चुनौती नहीं देती है। ऐसे सवालों का सामना करने का प्रयास विकल्प संगम प्रक्रिया के मूल में है। 

विकल्प संगम के मुख्य कार्य

विकल्प संगम प्रक्रिया ने पांच प्रमुख क्षेत्रों पर काम किया है:- दस्तावेज़ीकरण, जन सूचना, आपसी सहयोग व सहकारिता, सामूहिक दृष्टिकोण बनाना, और पैरवी करना। कई वैकल्पिक पहलों का दस्तावेजीकरण करना और समझना, उनकी सराहना करना और उनसे सीखना महत्वपूर्ण है। विकल्प संगम प्रक्रिया के इस भाग में पत्रकारों और शोधकर्ता-लेखकों को या संगम के लोगों को वैकल्पिक पहलों पर विकल्प की कहानियों को लिखवाना या अनुरोध करना शामिल है। ऐसी पहल मे फिल्में,  और विशिष्ट क्षेत्रों के मुद्दों पर विस्तृत अध्ययन, शामिल हैं। एक उदाहरण साल 2020-22 का है, जब कोविड वैश्विक ​​​​महामारी अवधि के दौरान सामुदायिक लचीलेपन की कहानियों का दस्तावेजीकरण किया गया था, जिनमें लगभग 70 कहानियां ‘साधारण’ लोगों के असाधारण कार्य’ नामक श्रृंखला की पुस्तिका मे प्रकाशित की गई।  

सिर्फ दस्तावेज़ीकरण पर्याप्त नहीं है; ऐसी कहानियों और केस स्टडी को विविध दर्शकों तक भी पहुंचाना होगा। तो, संगम के काम का दूसरा क्षेत्र जन सूचना और जनसाधारण तक पहुंचना है। इसके लिए एक प्रमुख मंच विकल्प संगम वेबसाइट है, जिसने सकारात्मक परिवर्तन पर लगभग 2000 कहानियां, संदर्भ सामग्री और 100 से अधिक फिल्में प्रकाशित की गई हैं। दुर्भाग्य से, इस वेबसाइट पर अंग्रेजी भाषा तथा कुछ हद तक हिन्दी का प्रभुत्व बना हुआ है; लेकिन अन्य भारतीय भाषाओं में विविधता लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। 

विकल्प संगम द्वारा विकल्प की कहानियों की एक पोस्टर प्रदर्शनी बनाई गई है, जिसे स्कूलों, कॉलेजों और अन्य संस्थानों में दिखाया जा रहा है। इसके साथ ही कई पुस्तिकाएं और ग्राफिक उपन्यास का स्टॉल भी लगाया जाता है। पिछले 2-3 वर्षों में, विकल्प संगम की कहानियां व सामग्री और कार्यक्रमों को विभिन्न ‘सोशल मीडिया’  के माध्यम से भी प्रचारित किया गया है। पर कई कारणों से  मुख्यधारा के मीडिया (प्रिंट और ऑनलाइन)  तक विकल्प संगम की पहुंच सीमित और असंगत रही है।

गतिविधि का तीसरा प्रमुख क्षेत्र आपसी सहयोग और एक दूसरे से सीखना है। सबसे रोमांचक हैं, ऐसे संगम जिसमें 3-4 दिनों के लिए लोगों का जमावड़ा होता है। साल 2024 की शुरुआत तक, लगभग 30 संगम आयोजित किए जा चुके हैं, जिनमें भारत के कई राज्यों/क्षेत्रों के क्षेत्रीय संगम शामिल हैं; और ऊर्जा, भोजन, युवा, लोकतंत्र, पारंपरिक वैश्विक दृष्टिकोण, वैकल्पिक अर्थव्यवस्थाएं, स्वास्थ्य, समृद्धि और न्याय, पारंपरिक शासन, और मध्य भारत में शांति पर संगम शामिल हैं। इन सभाओं में गंभीर संवादों के साथ-साथ क्षेत्रीय यात्राएं, शारीरिक गतिविधियां और वैकल्पिक उत्पादों का प्रदर्शन भी शामिल होता है। अब तक भाग लेने वाले कुछ हज़ार लोग शामिल हैं,  जिनमें नागरिक समाज संगठनों, खेती, ग्रामीण, शिल्प-आधारित और अन्य भूमि-आधारित समुदायों, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ, अधिकारियों और राजनेताओं की व्यक्तिगत क्षमता और वैकल्पिक कामकाजी लोग शामिल थे।  

संगम का स्वरूप का एक प्रमुख पहलू अंतर-क्षेत्रीय और अंतर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान करना और अनुभवों को आपस में साझा करना है, जिससे अलग-अलग खांचों को तोड़ा जा सके। इस प्रयास में कई समूह शामिल हैं। मेरी यादों में से एक साल 2023 में आदिवासी व अन्य सामुदायिक दृष्टिकोण विकल्प संगम में आदिवासी, खानाबदोश चरवाहों और गैर-आदिवासी कृषक समुदायों के बीच बातचीत हुइ। एक अन्य संगम में विकलांग व्यक्ति की है, और दूसरी मे  एलजीबीटीक्यू समुदाय के कार्यकर्ता ने तथाकथित ‘सामान्य’ लोगों को उनके सामने आने वाली समस्याओं के बारे में संवेदनशील बनाया।

हालांकि प्रतिभागियों द्वारा अपर्याप्त रिपोर्टिंग के कारण यह मुद्दे हमेशा स्पष्ट नहीं होते है, ये सभाएं बाद में इसे आगे बढ़ाने के लिए प्रेरित करती हैं, जो जमीनी काम को गहरा और व्यापक बनाने में मदद करती हैं। उदाहरण के लिए, पश्चिमी हिमालय में संगमों ने एक-दूसरे से सीखने के लिए आदान-प्रदान कार्यक्रमों को जन्म दिया है, और अंततः तीन साल से यह प्रक्रिया जारी है, जो क्षेत्र के समूहों द्वारा स्वतंत्र रूप से चलाई जा रही है। साल 2017 में आयोजित युवा विकल्प संगम में विभिन्न क्षेत्रों और भौगोलिक क्षेत्रों और संस्कृतियों के युवाओं को एक साथ लाने की बहु-वर्षीय प्रक्रिया शुरू हुई, ताकि वे जिस तरह का समाज चाहते हैं और जिसके लिए काम कर रहे हैं, उसे व्यक्त कर सकें। 

नास (जौ) उत्सव के प्रतिभागी, विकल्प संगम प्रक्रिया लद्दाख, सितंबर 2022

संगम का चौथा क्षेत्र सामूहिक नजरिया बनाना है। यह कई वर्षों से भारतीय समाज के कई वर्गों की दूरदर्शी आवाज़ों को एक साझा एजेंडा में लाने का प्रयास करता है। इसमें किसान, चरवाहे, मछुआरे, औद्योगिक श्रमिक, शिल्पकार की आवाजें और दृष्टिकोण शामिल हैं – इन लोगों को अक्सर ‘कामकाजी’ माना जाता है जबकि शहरी बुद्धिजीवी ‘विचारक’ माने जाते हैं (इसका सम्बन्ध लिंगभेद और जातिवाद में भी निहित है). इस झूठे द्वंद्व को तोड़ना विकल्प संगम प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण उद्देश्य रहा है। 

इस तरह की दूरदर्शिता के लिए एक प्राथमिक नजरिया का एक दस्तावेज़ है – ‘मौलिक विकल्पों की खोज: मुख्य पहलू और सिद्धांत’ – जिसे साल 2014 में तैयार किया गया था, और अपने वर्तमान (7वें) प्रारूप तक कई संगमों के माध्यम से विकसित हो रहा है। इसमें विकल्प संगम की समझ पर एक हिस्सा शामिल है कि विकल्प क्या है, एक ‘बदलाव का फूल’ जो बदलाव के पांच अंतर-विभाजक क्षेत्रों का वर्णन करता है, और अन्य मुद्दे (अगला भाग देखें)।

संगम का पांचवां और अंतिम क्षेत्र पैरवी करना है। विकल्प संगम के सदस्यों को एहसास है कि राजनीतिक आलोचनात्मक जनसमूह के बिना वर्तमान में प्रमुख वृहत् राजनीतिक और आर्थिक ताकतों को चुनौती देना असंभव है। कई संगमों की घोषणाओं में नीतिगत सिफ़ारिशें शामिल की गई हैं। उदाहरण के लिए, साल 2016 में राष्ट्रीय खाद्य संगम में, प्रतिभागियों ने समुदाय-आधारित टिकाऊ कृषि के पक्ष में और आनुवांशिक रूप से संशोधित ( जी.एम.) सरसों को पेश करने के प्रयासों का विरोध करते हुए एक घोषणा जारी की। पर्यावरण और सामाजिक न्याय के लिए स्थानीय संघर्षों के समर्थन में कई बयान जारी किए गए हैं, जिनमें कश्मीर और लद्दाख की स्थिति में संवैधानिक परिवर्तन, लक्षद्वीप में जीवन को सांप्रदायिक बनाने के प्रयास, ऑरोविले में सरकारी हस्तक्षेप, मणिपुर में जातीय दरारें, और उन समुदायों से सीखे गए सबक जो कोविड के दौरान संकट के सामने लचीले बने रहे – इन सबमें सुधार के लिए तत्काल कार्रवाई के कदम शामिल हैं।

पैरवी का सबसे महत्वाकांक्षी प्रयास साल 2019 और साल 2024 में जारी किया गया ‘न्यायपूर्ण, समतापूर्ण, टिकाऊ भारत के लिए जन घोषणापत्र’ रहा है। इनमें भारत के सामने आने वाले आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और पारिस्थितिकीय मुद्दों पर विस्तृत सिफारिशें शामिल हैं। इसका उद्देश्य न केवल राजनीतिक दलों से अपने चुनाव अभियानों में इन मुद्दों पर विचार करने का आग्रह करना है, बल्कि राज्य चुनावों जैसे अन्य अवसरों के लिए इस्तेमाल करने के लिए एक सांचा के रूप में, स्थानीय से राज्य सरकारों के साथ पैरवी करना और नागरिक समाज को अपने कार्यों के लिए मार्गदर्शन के रूप में उपयोग करना है। विकल्प संगम ने जन सरोकार प्रक्रिया जैसे समान उद्देश्यों के साथ अन्य राष्ट्रीय नेटवर्क के साथ भी गठबंधन या सहयोग किया है। 

वैचारिक और क्षेत्रीय सीमाओं को पार करना

दिलचस्प बात यह है कि संगम क्षेत्र में पारंपरिक वैचारिक बाधाएं अधिक कमजोर होती दिख रही हैं। मजबूत गांधीवादी, मार्क्सवादी, नारीवादी, दलित, आदिवासी, प्रकृति अधिकार और अन्य दृष्टिकोण वाले प्रतिभागी, जो अक्सर एक-दूसरे के साथ प्रतिस्पर्धा में रहते आए हैं, रचनात्मक बातचीत करने में शामिल व कामयाब रहे हैं। बैठकों का माहौल इन मतभेदों को दूर करने, या उन्हें स्पष्ट रूप से स्वीकार करने और समानताओं (विशेषकर मूल्यों और सिद्धांतों में) पर निर्माण करने का है। ऐसा इसलिए हो सका है क्योंकि संगम में आने वाले प्रतिभागी विविधता के प्रति अधिक सम्मानजनक होने की ओर उन्मुख होते हैं, यहां चूंकि समस्याओं और आलोचना पर केंद्रित चर्चा कम होती है। यहां नकारात्मकता के विपरीत विकल्पों पर चर्चा में सकारात्मकता का माहौल अधिक होता है। तीसरा, और संभवत: सबसे महत्वपूर्ण, जमीनी संघर्षों मे वैचारिक सीमाएं टूटती हैं, अत: उन पर आधारित चर्चाओं मे अन्य प्रकार की विचारधारा भी मिली-जुली होती है। 

विकल्प संगम प्रक्रिया ने अधिक छिद्रपूर्ण राजनीतिक सीमाओं पर चर्चा और परिकल्पना को भी जन्म दिया है, जो दक्षिण एशिया में राष्ट्र-राज्यों और भारत के भीतर राज्यों/जिलों के बीच वर्तमान कठिन सीमाओं से बाधित पारिस्थितिकीय, सांस्कृतिक और आर्थिक प्रवाह को फिर से स्थापित करने में मदद कर सकता है। अक्टूबर 2019 में आयोजित लोकतंत्र विकल्प संगम में, एक ‘दक्षिण एशिया जैव क्षेत्रवाद कार्य समूह’ का प्रस्ताव रखा गया था, और तब से यह राजनीतिक सीमाओं के पार जैव-क्षेत्रीय या जैव-सांस्कृतिक संबंधों के दस्तावेजीकरण की कई रिपोर्ट लेकर आया है। 

विश्लेषणात्मक तरीका और वैश्विक नेटवर्किंग को बढ़ावा देना

ऊपर उल्लिखित विकल्प संगम की रूपरेखा ने साल 2017 में वैकल्पिक पहल के नायकों द्वारा उपयोग के लिए ‘वैकल्पिक परिवर्तन प्रारूप’ का नेतृत्व किया। यह उन्हें यह देखने में सक्षम बनाता है कि उनकी पहल कितनी समग्र, सुसंगत और व्यापक है, उसमें कहां कमी है, और वे और क्या कर सकते हैं। यह प्रारूप एक वैश्विक परियोजना ‘एकेडमिक-एक्टिविस्ट को-जेनरेशन ऑफ नॉलेज ऑन एनवायर्नमेंटल जस्टिस’  के हिस्से के रूप में विकसित हुआ है, और इसका उपयोग विकल्प संगम प्रक्रिया के भीतर और बाहर कई संगठनों द्वारा किया गया है, आलोचनात्मक आत्म चिंतन या अनुसंधान के लिए, जिसमें कुछ विश्वविद्यालय भी शामिल हैं।  

साल 2019 में ग्लोबल टेपेस्ट्री ऑफ़ अल्टरनेटिव्स (जीटीए) शुरू करने के लिए, विकल्प संगम प्रक्रिया दुनिया के अन्य हिस्सों में समान नेटवर्क और मंचों से भी जुड़ी है। विकल्प संगम अब जीटीए के ‘बुनकरों’ में से एक है (कोलंबिया, मैक्सिको और दक्षिण-पूर्व एशिया में अन्य बुनकरों के साथ), अन्य घटकों के साथ आपसी सीखने और सामूहिक कार्रवाई में शामिल है।  

संरचना और प्रक्रिया और विकेद्रीकृत ढांचा

विकल्प संगम कोई संगठन नहीं है, यह एक नेटवर्क या मंच है। इसकी अपेक्षाकृत अनौपचारिक संरचना में एक राष्ट्रीय महासभा है (साल 2024 के मध्य तक ९० से अधिक आंदोलन और संगठन शामिल हैं)। पहले कुछ वर्षों तक इसका केंद्र बिन्दु कल्पवृक्ष संस्था थी, लेकिन साल 2021 से समन्वय और अगुआई आंशिक रूप से लगभग 10 सदस्य संगठनों की एक सुविधा टीम में विकेंद्रीकृत हो गई हैं। प्रत्येक संगम का आयोजन एक या अधिक मेजबानों द्वारा किया जाता है, जिनमें आमतौर पर महासभा के सदस्य भी शामिल होते हैं।

अपने आंतरिक संचालन में भी, विकल्प संगम अपने मूल सिद्धांतों को शामिल करने का प्रयास करता है। संगमों के कुछ नियम होते हैं, जिसमें सभी की भागीदारी (उन लोगों पर विशेष ध्यान देना, जो बोलने में झिझकते हैं), प्लास्टिक और अन्य कूड़ा उत्पन्न करने वाले उत्पादों का इस्तेमाल न करना, स्थानीय व्यंजनों को अधिकतम भोजन में शामिल करना और विभिन्न तरीकों से एक सुरक्षित स्थान (खास महिला के लिए) बनाना शामिल है। यौन या अन्य प्रकार के उत्पीड़न या भेदभाव के प्रति कोई सहिष्णुता नहीं, इसका भी बराबर ऐलान किया जाता है।

विकल्प संगम पहल ‘सामान्य’ लोगों की नव प्रवर्तन, दृढ़ता, सहयोग और संकटों का समाधान खोजने की क्षमता का जश्न मनाने का प्रयास करती है। इससे यह भी पता चलता है कि बेहतर समाज की परिकल्पना औपचारिक ‘विशेषज्ञों’ का विशेषाधिकार नहीं है। यह कहीं भी लोगों के ज्ञान और अनुभव को एक साथ रखकर किया जा सकता है – जीवन के विभिन्न चरणों में, विविध संस्कृतियों और आजीविका में, सीखने और शिक्षा के विभिन्न स्तरों पर, प्रकृति में या खेत में या कक्षाओं में। और ऐसा करने पर, यह ज्ञान और कार्रवाई उत्पन्न करने के सत्ताधारी औपनिवेशिक तरीकों को नष्ट कर सकता है। 

पिछले कुछ दशकों में, हमने सीखा है कि प्रक्रिया भी उतनी ही महत्वपूर्ण है जितना उत्पाद। इस प्रक्रिया को जितना अधिक लोकतांत्रिक, सहभागी, विविध और रोमांचक बनाया जा सकता है, कम से कम कुछ लक्ष्य पूरे होने और अप्रत्याशित लाभ होने की संभावना उतनी ही अधिक होगी। इसके अलावा, भले ही हमारी कुछ गतिविधियां राज्य की नीति को प्रभावित करने की कोशिश पर केंद्रित हों, अंततः यह लोगों का सशक्तीकरण ही है, जो परिवर्तन को आगे बढ़ाएगा। सार्थक भागीदारी की प्रक्रिया अपने आप में लोगों को सशक्त बनाती है। इस पूरी प्रक्रिया में छोटे छोटे जमीनी समूहों से लेकर देश-दुनिया के सामाजिक कार्यकर्ता, लेखक, शोधकर्ता, कलाकार, इत्यादि में समीपता आई है, वह अद्वितीय है और मौलिक विकल्पों के प्रति  लगातार आकर्षण बढ़ रहा है, जो उम्मीद जगाता है।  


इस लेख का एक संस्करण 11 अक्टूबर 2024 को सर्वोदय प्रेस सर्विस में प्रकाशित हुआ है|

इस लेख का अंग्रेजी संस्करण पहली बार 4 सितंबर 2024 को काफ़िला द्वारा प्रकाशित किया गया था।



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