कोविड संकट का सामना करते हुए, पहली लहर के सीख के आधार पर मानवीय एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य को प्राथमिकता दी जाये (in Hindi)

By अनुवाद - आलोक चन्द्र प्रकाशonMay. 14, 2021in Health and Hygiene

विकल्प संगम कोर ग्रूप का बयान – १० मई 2021

मूल बयान अन्ग्रेजी में पढ़िए

कृपया इस याचिका पर http://chng.it/d98CyBTv5B दस्तखत कीजिये

भारत कोविड संकट के बीच फँसा है। इस महामारी के दूसरी लहर ने सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के गंभीर स्थिति और इस संकट का सामना करने में  केंद्र तथा राज्य सरकार के अक्षमता को उजागर कर दिया है। यद्यपि पिछले एक साल से सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के कर्मी मानव-संसाधन और अन्य मेडिकल संसाधन के अभाव के बीच जिन बुरे हालातों में काम कर रहे है हम उनकी सराहना करते है, हालांकि हम चिंता पूर्वक यह भी देखते है कि सरकार की तरफ से या अस्पताल प्रशासन की तरफ से दूसरी लहर को रोकने में लापरवाही हुई है और पिछले साल भर से इसकी तैयारी में तंत्र की विफलता गंभीर रूप से सामने आयी है। संक्रमण एवं मौत के आंकड़ों में बढ़ोतरी के बीच हम राजनीतिक पार्टियों और सरकार के द्वारा चुनावी रैलियों, धार्मिक मेला और अन्य आयोजनों को जारी रखने के फैसले से चकित है, जो दरअसल संक्रमण फैलाने वाले साबित हुए है।    

जंतु से मानव में इस महामारी के प्रसार ने मानव स्वास्थ्य के साथ पर्यावरण के गहन संबंध को स्पष्ट कर दिया है। जैसा की इस विषाणु का प्रसार मानव के श्वसन कणिकाओं के द्वारा होता है, जो की पूरी तरह से पर्यावरण पर निर्भर है। पहली लहर ने हमें सिखाया की स्वास्थ्य कोरोना विषाणु के संक्रमण के साथ-साथ आजीविका संकट के वजह से भी प्रभावित हुआ था। यह ख़ासकर असंगठित क्षेत्र के कामगार जो हमारे शहरी अर्थव्यवस्था के रीढ़ है के ख़राब स्वास्थ्य का वजह बना जिसका कारण साफ़ तौर पर भूख और बढ़ता कुपोषण था। वे जो अपेक्षाकृत प्रकृतिपरक आजीविका जैसे कृषि और पशुपालन, वनोत्पाद संग्रहण, और मछली-पालन में संलग्न है इस संकट का सामना ज़्यादा अच्छे तरीक़े से कर पायें, और कुछ तो पलायीत कामगार जो इस संकट में अपने घर को लौटें थे उनका सहयोग भी कर पाये, (जैसा की विकल्प संगम का दस्तावेज कहता है, देखें)   

जलवायु संकट और अन्य पर्यावरणीय विनाश के प्रभाव तथा सम्भवतः आने वाले दशकों में आम, आगामी महामारी के मद्देनजर यह आवश्यक है की अब से ‘विकास’ के नाम पर होने वाले आर्थिक गतिविधियों का पूरा ज़ोर मानव एवं पर्यावरणीय स्वास्थ्य तथा सकुशलता पर दिया जाना चाहिए। यह आवश्यक है कि हमारी आर्थिक योजनाएं GDP के परे, उन  संकेतको से निर्देशित हो जो इन प्राथमिकताओं को ध्यान में रखता है।       

हम इस बात पर ज़ोर देते है और मांग करते है की कोविड के दूसरी लहर से आजीविका एवं स्वास्थ्य के ऊपर पड़े प्रभाव से निपटने के लिए तात्कालिक एवं दूरदर्शी दोनों उपाय अपनाया जाए। हालांकि केंद्र तथा राज्य सरकार के पास इसको करने के लिए आवश्यक संसाधन है, और इसके लिए उनकी जिम्मेदारी तय की जानी चाहिए साथ ही साथ  सिविल सोसाइटी समूह तथा गाँव एवं शहर में स्थानीय स्वशासन को भी इसको संभव करने में अपना पूरा प्रयास लगाना चाहिए। अंततः, ऐसे संकट का सामना करने या टालने के लिए समुदाय जितना ज़्यादा अपेक्षाकृत स्वतंत्र एवं आत्मनिर्भर होगा, भारत उतना ही मजबूत होगा। 

स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए तात्कालिक उपाय 

पहले और तात्कालिक समाधान ये होने चाहिये : 

1. हल्के लक्षण वाले मरीज को प्राथमिक सेवा एवं घर पर ही स्वास्थ्य सुविधा तथा रेफर किए गए मरीज को द्वितीयक तथा तृतीयक स्तर पर पूरे सुविधा से लैस या जैसी भी ज़रूरत हो अस्पताल द्वारा उपलब्ध कराया जाना चाहिए,  

2. ऑक्सीजन एवं अन्य श्वसन समस्या को संबोधित करने वाले संसाधन के प्रसार को ग्रामीण एवं शहरी समुदाय के जितना नजदीक हो सके सुनिश्चित किया जाए;

3. अनावश्यक रूप से दवाइयों तथा डायग्नोस्टिक के प्रयोग जैसे एंटीबायोटिक, एंटी-वायरल और CT-स्कैन  में हो रही बेतहाशा बढ़ोतरी को, श्वसन-तंत्र के प्रभाव के निगरानी के लिए न्यूनतम संसाधन लगने वाले निगरानी तरीके को लोकप्रिय बनाते हुए विश्वसनीय वैज्ञानिक अध्ययन के आधार पर तर्कसंगत चिकित्सा उपाय की सूचना आमजन के बीच सक्रिय रूप से पहुँचा कर कम किया जाये;    

4. सार्वजनिक सेवा में स्वास्थ्यकर्मी, ऑक्सीजन उत्पादन और इसके चिकित्सा जरूरतें हेतु सामान सप्लाई को सुनिश्चित करने के लिए आपातकालीन कदम उठाया जाए, तथा जिनको जरूरत है उनके लिए आइसोलेशन सुविधा; खास करके; इन सुविधाओं को वरिष्ठ नागरिकों तथा अलग तरह से सक्षम व्यक्तियों के पहुँच में लाया जाए;  

5. आयुष प्रणाली के तहत अपनाये जा रहे कोविड-केयर पर उपलब्ध आंकड़ों को अविलंब जारी किया जाना चाहिए, और इसे वर्तमान कोविड-प्रबंधन प्रोटोकॉल में भी सम्मिलित किया जाना चाहिए; साथ-ही-साथ इस पर विस्तृत और गहन अध्ययन शुरू किए जाने चाहिए; 

6. सुविधाजनक व्यवस्था के द्वारा जो कोविड-संक्रमित व्यक्ति को देखने वाले चिकित्सा परिसर से अलग हो और सुरक्षित भी हो; टीकाकरण को पर्याप्त मात्रा में तथा निःशुल्क उपलब्ध किया जाए तथा जो लेना चाहते है उनके पहुँच में लाया जाए लेकिन इसे अनिवार्य नहीं बनाया जाए; 

7. वरिष्ठ नागरिकों, अलग तरह से सक्षम व्यक्तियों और अन्य जो टीकाकरण केंद्र तक नहीं जा सकते है लेकिन टिका लेना चाहते है; उनके लिए घर पर जाकर टीकाकरण की सुविधा मुहैया कराया जाए;

8. मानसिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दों पर भी ध्यान दिया जाए, जैसा की (अवसाद, तनाव, परिवार में अंतर्संबंध समस्या, OCD से जूझ रहे व्यक्ति में व्यवहार पुनरावृत्ति, गर्भवती एवं धात्री महिला में तनाव, फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कर्मियों में तनाव के) कुछ रिपोर्ट कहती है की यह एक अदृश्य महामारी की तरह फैल रहा है; यह सुनिश्चित किया जाए कि प्रभावित व्यक्ति को आधार कार्ड न होने की वजह से इलाज से और अस्पताल में भर्ती होने से वंचित नहीं किया गया,   

इस के साथ ही,सेंट्रल-विस्टा जैसे अनावश्यक परियोजनाओं पर होने वाले खर्चे को अवश्य ही रोका जाए, और सभी संभावित संसाधनों को इस संकट से निपटने में लगा दिया जाए।    

किसी भी प्रकार के नए प्रावधान और प्रतिबंध जैसे लॉकडाउन इत्यादि को लागू करते हुए, सबसे ज्यादा संवेदनशील तबकों,जैसे की बुजुर्ग, अनाथ बच्चे, अलग तरह से सक्षम व्यक्तियों, महिलायें एवं बच्चे, दिहारी मजदूर के साथ-साथ घरेलू कामगार, भीड़-भाड़ वाले शहरी स्लम के निवासी, भीड़ वाले जेल में कैद बंदी, सफाईकर्मी, ट्रांसजेंडर लोग, यौनकर्मियों, कुष्ठ रोग/एचआईवी से पीड़ित व्यक्ति, स्वतंत्र कलाकार और मनोरंजन कर्मी, एवं छोटे-मझोले किसान, चरवाहा, मछुआरा, तथा वनोत्पाद संग्राहक पर ध्यान दिया जाना चाहिए। 

आजीविका के लिए तात्कालिक उपाय : 

महामारी का दूसरा वेब और ज़्यादा ख़तरनाक होने जा रहा है, और फिर से हम देश के विभिन्न हिस्सों में अपने घर को लौटते पलायित मजदूरों का सामूहिक विस्थापन देख रहे है, जैसा की अभी भी लॉकडाउन का डर और सरकारी सहायता का अभाव 2020 के डरावने स्मृति की तरह है। इस विकट समस्या के समाधान के लिए कुछ तात्कालिक समाधान की ज़रूरत है :   

1. मजदूर जो इस दौरान बेरोजगार हो गए है उनके लिए मजदूर, सामाजिक सुरक्षा, भोजन, एवं अन्य आवश्यक सेवा प्रदान किया जाये; जहाँ संभव है, वहाँ पूरे सुरक्षा एवं सावधानी के साथ (जैसा की पहली लहर के दौरान कुछ समुदायों और राज्यों में किया गया) मनरेगा और अन्य योजनाओं को चालू रखा जाए। 

2. फ्रंटलाइन कर्मियों जो इस दूसरी लहर का सामना करने के लिए सबसे ज़रूरी है और लगातार अपना जीवन खतरे में डाल रहे है उनके लिए पर्याप्त सुरक्षात्मक उपाय किए जाए। कम-से-कम हम आशा (ASHA) जैसे कर्मियों को विशेष मानदेय, बीमा सुविधा, और अन्य लाभ दे सकते है; साथ ही साथ नियमित करके उनको पेंशन के लिए भी योग्य लाभार्थी बनाया जा सकता है। इसके साथ ही उनके लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता भी इस प्रकार किया जाना चाहिए जहाँ वो सेवा-प्रदाता को अपनी ज़रूरत के अनुसार चुन सकें।  

3.  कई सारे सिविल सोसाइटी प्रभावित व्यक्तियों के सहयोग जैसे आईसीयू और अस्पताल में बेड की उपलब्धता ढूँढने, ऑक्सीजन सिलेंडर, दवाई, भोजन तथा अन्य आवश्यक वस्तुओं की व्यवस्था करने  जैसे उपाय में लगे है; उनकी जिस प्रकार भी संभव हो मदद की जानी चाहिए।

4. वर्तमान संकट का सामना करने के लिए पहली लहर के उदाहरणों से सीखते हुए समुदायों एवं समूहों को प्रोत्साहित, सहयोग तथा सशक्त किया जाये, जिससे की वे शारीरिक तथा सामाजिक उपायों को लागू कर सकें।

5. सार्वजनिक जगहों को कोरंटाईन सेंटर के रूप में प्रयोग में लाया जाये, कोविड से प्रभावित लोगों के सहयोग के लिए विभिन्न गतिविधियों को NRLM या WASH बजट में सम्मिलित किया जाये, और सामुदायिक केयर ग्रुप को सक्रिय होकर केयर सेंटर(जो महिलाओं एवं पुरुषों के लिए बराबर के साझेदारी में हो) को चलाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।   

6. हजारों परिवारों के जीवन में आये व्यापक दुष्प्रभाव के कारण सम्भव है वो अपना खाना नहीं बना पा रहे हो, इस बात के मद्देनजर वृहत स्तर पर सामुदायिक किचन के स्थापना को सहयोग दिया जाये।  

दीर्घकालीन उपाय : 

अधिकांश श्रम संसाधन को संवेदनशील और असुरक्षित बनाकर रखने वाले आर्थिक व्यवस्था के गहरे अंतर्दोष एक बार फिर से सामने आ चुके है। सभी लैंगिक पहचानों, अलग तरह से सक्षम व्यक्तियों को सम्मिलित करते हुए सभी सामाजिक श्रेणियों के लिए गरिमा, समता और न्याय के मूल्यों पर आधारित; और पारिस्थितिकीय संतुलन के अनुरूप समुदायों में स्वावलंबन को मजबूत करते हुए, सुरक्षित आजीविका के उपाय ढूँढने को सर्वोच्च प्राथमिकता दिया जाना चाहिए। सम्भव है की कोविड 19 की समस्या अभी और दिन तक रहे, और यदि ये नहीं भी रहता है, तो जलवायु संकट, वित्तीय अस्थिरता इत्यादि के वजह से उत्पन्न हुए संकट विश्व को अस्थिर करके रखेगा। 

अतः, जैसा की हमारे पूर्ववर्ती बयान में जोर दिया गया, तात्कालिक उपायों के साथ-साथ दीर्घकालीन उपाय भी अपनाये जाने की ज़रूरत है। विशेष रूप से हम निम्नलिखित उपायों पर ध्यान दिलाना चाहते है :      

1. स्थानीय रूप से आजीविका के विकल्प को बढ़ावा दिया जाना :कोविड 19 के दूसरी लहर ने एक बार फिर पलायित एवं दिहारी कामगार और असंगठित अर्थव्यवस्था में के बहुत सारे लोगों के अनिश्चित एवं नाजुक स्थिति को उजागर कर दिया है।आजीविका के अवसर के अभाव एवं युवाओं में बदलते आकांक्षा की वजह से पलायन हुआ है। पलायन के विभिन्न  कारकों के रोकथाम के लिए प्रत्येक ग्रामीण बसावट और 

छोटे-छोटे शहरों में गरिमामयी, लाभकारी आजीविका के साधनों को विकसित करने की ज़रूरत है। यही वास्तव में आत्म-निर्भरता होगा।    

2. आत्म-निर्भर, पारिस्थितिक रूप से संतुलित आजीविका कोबढ़ावा देना :  सामान्यतः, स्थानीय खान-पान,  जल, ऊर्जा-स्त्रोत और सुरक्षा तथा उत्पादक संसाधनों का अधिकार आधारित उपलब्धता, और स्थानीय लेन-देन पर आधारित आत्म-निर्भर आजीविका ऐसे संकट का सामना करने में ज़्यादा सक्षम होता है, जो कम से काम बुनियादी ज़रूरतों को तो सम्बोधित कर पाता है। ये विकल्प संगम के द्वारा जुटायें गयें दर्जनों उदाहरणों में देखा जा सकता है। ये प्रासंगिक तथा उपयुक्त बाहरी अनुभवों के मदद से स्थानीय ज्ञान, कौशल तथा तकनीक को विकसित करने का अवसर प्रदान करेगा।   

3. स्थानीय आर्थिक प्रणाली का सशक्तिकरण :आत्म-निर्भरता के सहयोग और संवर्धन के लिए नीतियों और कार्यक्रमों की तुरंत जरूरत है। इसमें जैविक तथा जैवीय रूप से विविध खेती को सक्षम बनाना, कृषि-प्रसंस्करण तथा शिल्प; (कांट्रैक्ट-फार्मिंग जैसे योजना के माध्यम से बड़े कॉरपोरेट चेन से जोड़ने के बजाय) मज़बूत स्थानीय नेटवर्किंग तथा उत्पादक-उपभोक्ता लिंक वाले उत्पादक-सहकारी जैसे विभिन्न छोटे एवं मध्यम उद्यम शामिल है। हमें सोलर, पवन, बायोमास जैसे विकेंद्रित ऊर्जा स्रोत को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है; भारत के व्यापक नवीकरणीय ऊर्जा योजना को मेगा-सौर/पवन ऊर्जा पार्क जिनके गंभीर पारिस्थितिक एवं सामाजिक परिणाम है के अपेक्षा विकेंद्रित मॉडल पर आधारित करने की ज़रूरत है। 

4. सार्वजनिक स्वास्थ्य संरचना में व्यापक सुधार :स्वास्थ्य एक्टिविस्ट दशकों से यह मांग कर रहे है की सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा एवं संरचना के लिए बजट बढ़ाया जाये, लेकिन इसकी दुर्दशा दूसरी लहर के द्वारा जगजाहिर हो गयी है। प्राथमिक एवं आपात स्वास्थ्य सेवा की उपलब्धता को सर्वसुलभ बनाने, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था के सभी खाली पदों पर बहाली, राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के अधीन सभी संविदा कर्मचारियों को नियमित करने, पैरामेडिकल स्टाफ के प्रशिक्षण, वादा किए गए हेल्थ एवं वेलनेस सेंटर के संचालन, और सभी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में विविध चिकित्सा प्रणालियों के व्यवस्था के लिए बजट प्रावधान को बढ़ाया जाये।   

5. मानसिक स्वास्थ्य एवं काउंसलिंग सेवा का प्रसार:  हमें अति शीघ्र जिला मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों को सभी पीएचसी और जिला स्तर पर शुरू करने की ज़रूरत है। साथ ही साथ हमें निजी अस्पतालों में भी पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध कराने, निःशुल्क हेल्पलाइन को प्रोत्साहित करने, जरूरतमंद लोगों के लिए टेली-मेंटल हेल्थ सेवा शुरू करने की ज़रूरत है। मानसिक रूप से अस्वस्थ व्यक्ति/ एचआईवी से संक्रमित व्यक्ति/ कुष्ठ से पीड़ित व्यक्ति के देखभाल के लिए निजी एवं सार्वजनिक अस्पतालों को उचित मार्गदर्शन और आदेश जारी किए जाने की ज़रूरत है, और आवश्यक है कि जो इसका अनुपालन नहीं करें उन्हें दंड दिया जाना चाहिए। चिकित्सकों, नर्स, स्वास्थ्यकर्मी और NGO कर्मी के मानसिक स्वास्थ्य देखभाल पर स्वयंसेवा आधारित सेवा के परे के पेशेवर साझेदारी के द्वारा ध्यान दिए जाने की ज़रूरत है। बाल देखभाल केंद्र और परिवार परामर्श केंद्र को वर्तमान कोविड 19 से उपजे हालात से निपटने लायक़ बनाने की ज़रूरत है। किशोर मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम को फ़ास्ट-ट्रैक करनेकी ज़रूरत है। शोक एवं वियोग तथा मादक द्रव एवं अल्कोहल पर निर्भरता सम्बन्धी विशेष सेवा को सशक्त करने की ज़रूरत है। 

6. प्राकृतिक पारिस्थितिकी के संरक्षण एवं संवर्धन को प्राथमिकता दिया जाना :हमें जरूरत है की हम प्राकृतिक पारिस्थितिकी जिसमें वेटलैंड और जल-प्रणाली भी सम्मिलित है, जो भारत के व्यापक वन्य-जीवन और जैव विविधता को संपोषित करता है और जिसमें लाखों लोगों का निवास भी है को संरक्षित करें और उसके संवर्धन का उपाय करें। हम अब तथाकथित विकास परियोजना जैसे बड़े बांध और खनन के नाम पर इसके विनाश को नहीं बर्दाश्त कर सकते है, खासकर तब जब यह स्पष्ट है की कोविड 19 जैसी बीमारियां ऐसी ही पारिस्थितिक विनाश और अति-उपभोग का नतीजा है।  

7. बेहतर स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी कारकों के उपलब्धता में विशेष सुधार की आवश्यकता :ऊपर के सारे कदम के अलावे, यह ज़रूरी है की स्वास्थ्य के महत्वपूर्ण सामाजिक कारकों जैसे पर्याप्त मात्रा में स्वच्छ पानी, साफ़ हवा, पौष्टिक एवं सुरक्षित (जैविक) भोजन, रचनात्मक कार्य, मनोरंजन और रचनात्मकता के अवसर इत्यादि पर विशेष जोर दिया जाये; सामान्यतः, भारत के स्वास्थ्य व्यवस्था में अस्वस्थता और बीमारियों के रोकथाम के उपाय गंभीर रूप से अनुपस्थित है, जिसे ठीक करने की आवश्यकता है। 

8. स्थानीय शासन व्यवस्था को सशक्त किया जाना :  ग्राम सभा और पंचायत, स्वशासन के नगर निकाय के साथ-साथ सार्वजनिक सम्पदा (भूमि, प्राकृतिक पारिस्थितिकी और संसाधन तथा ज्ञान) पर सामूहिक नियंत्रण, और पानी, ऊर्जा, अपशिष्ट-प्रबंधन, वन इत्यादि पर स्थानीय निर्णय-प्रणाली को सशक्त किया जाना चाहिए। विकल्प संगम के दस्तावेज दिखाते है की कोविड 19 के पहली लहर के दौरान उन समुदायों ने जिनके पास अपने आसपास के संसाधन पर अपनत्व का भावना था उसने स्थानीय स्वास्थ्य और आर्थिक सुरक्षा संकट से निपटने में ज्यादा सबलता और सक्षमता दिखाया

9. हाशिये के समुदाय के लिए अफरमेटिव ऐक्शन : महिलाएं, भूमिहीन, दलित, आदिवासी, अलग तरह से सक्षम लोग, ट्रांसजेंडर तथा अन्य हाशिए के लैंगिक पहचान के लोग, जो कोविड और आर्थिक लॉकडाउन से बुरी तरह से प्रभावित हुए है उन पर विशेष ध्यान दिये जाने के ज़रूरत है।  

10. स्थानीय नेटवर्क को मजबूत किया जाना: गरिमामयी आजीविका के ऊपर काम कर रहे ग्राम/नगर स्तरीय सिविल सोसाइटी संगठन के नेटवर्क को सहयोग तथा मान्यता दिया जाना चाहिए।

उपरोक्त सभी उपायों को भारत के गांवों/नगरों के स्थानीय अर्थव्यवस्था के फलने-फूलने के दिशा में लागू किया जाना चाहिए, जिससे कि लोगों को काम करने के लिए बाहर न जाना पड़े, और सम्भव हो तो वे लौट भी आये; बहुत सारे पलायित मज़दूर जो अपने गाँव को लौटे है वो ऐसे विकल्प के होने की स्थिति में अपने गाँव में ही रुक जाना चाहते है।  

इनमें से कुछ और अन्य सम्बंधित उपाय विस्तार से विकल्प संगम के द्वारा 2019 के शुरुआती वर्ष में जारी किए गए दस्तावेजपीपल्स मेनिफ़ेस्टो फ़ोर अ जस्ट, इक्वेटेबल एंड सस्टेनेबल इंडिया  में प्रस्तावित किए गए थे https://vikalpsangam.org/article/peoples-manifesto-for-a-just-equitable and-sustainable-india-2019/)। हम ज़ोर देते है की उपरोक्त सुझाव को कोविड संदर्भ के अनुसार आवश्यक बदलाव के साथ ध्यान में रखते हुए इस दस्तावेज को एक संदर्भ की तरह देखा जायें।

मूल बयान अन्ग्रेजी में पढ़िए

नीचे [अंग्रेजी के] वर्णानुक्रम में दिए गए विकल्प संगम कोर ग्रुप के द्वारा प्रचारित। विकल्प संगम प्रक्रिया मानव एवं पारिस्थितिकी स्वास्थ्य के लिए समतामूलक और सस्टेनेबल तरीकों पर काम करने वाले आंदोलनों, समूहों, और व्यक्तियों को एक साथ लाने का मंच है। यह विकास के वर्तमान मॉडल तथा इसमें अंतर्निहित असमानता और अन्याय के संरचना को अस्वीकार करता है, और व्यवहार तथा दृष्टि में विकल्पों की खोज करता है। इस प्रक्रिया में पूरे देश से लगभग 65 आंदोलन तथा संगठनायें संलग्न है। अधिक जानकारी के लिए कृपया देखें https://vikalpsangam.org/about/   

ACCORD (Tamil Nadu)

Alliance for Sustainable and Holistic Agriculture (national)

Alternative Law Forum (Bengaluru)

Ashoka Trust for Research in Ecology and the Environment (Bengaluru)

BHASHA (Gujarat)

Bhoomi College (Bengaluru)

Blue Ribbon Movement  (Mumbai)

Centre for Education and Documentation (Mumbai)

Centre for Environment Education (Gujarat)

Centre for Equity Studies (Delhi)

CGNetSwara (Chhattisgarh)

ChalakudypuzhaSamrakshana Samithi / River Research Centre (Kerala)

ComMutiny: The Youth Collective (Delhi)

Deccan Development Society (Telangana)

Deer Park (Himachal Pradesh)

Development Alternatives  (Delhi)

Dharamitra (Maharashtra)

Ekta Parishad (several states)

Ektha (Chennai)

EQUATIONS (Bengaluru)

Extinction Rebellion India (national)

Gene Campaign (Delhi)

Goonj (Delhi)

Greenpeace India (Bengaluru)

Health SwaraajSamvaad (national)

Ideosync (Delhi)

Jagori Rural (Himachal Pradesh)

KagadKach Patra Kashtakari Panchayat (Pune)

Kalpavriksh  (Maharashtra)

Knowledge in Civil Society (national)

Kriti Team (Delhi)

Ladakh Arts and Media Organisation (Ladakh)

Local Futures (Ladakh)

Maadhyam (Delhi)

Maati (Uttarakhand)

Mahila Kisan AdhikarManch (national)

Mahalir Association for Literacy, Awareness and Rights (MALAR)

Mazdoor Kisan Shakti Sangathan (Rajasthan) Revitalising Rainfed Agriculture Network (national)

National Alliance of Peoples’ Movements (national)

National Campaign for Dalit Human Rights (national)

Nirangal (Tamil Nadu)

North East Slow Food and Agrobiodiversity Society (Meghalaya)

People’s Resource Centre (Delhi)

Peoples’ Science Institute (Uttarakhand)

reStore (Chennai)

Sahjeevan (Kachchh)

Sambhaavnaa (Himachal Pradesh)

Samvedana (Maharashtra)

Sangama (Bengaluru)

Sangat (Delhi)

School for Democracy (Rajasthan)

School for Rural Development and Environment (Kashmir)

Shikshantar (Rajasthan)

Snow Leopard Conservancy India Trust (Ladakh)

Sikkim Indigenous Lepcha Women’s Association

Social Entrepreneurship Association (Tamil Nadu)

SOPPECOM (Maharashtra)

South Asian Dialogue on Ecological Democracy (Delhi)

Students’ Environmental and Cultural Movement of Ladakh (Ladakh)

Thanal (Kerala)

Timbaktu Collective (Andhra Pradesh)

Titli Trust (Uttarakhand)

Tribal Health Initiative (Tamil Nadu)

URMUL (Rajasthan)

Vrikshamitra (Maharashtra)

Watershed Support Services and Activities Network (Andhra Pradesh/Telangana)

Youth Alliance (Delhi)

Yugma Network (national)

Let India Breathe

Travellers’ University

Dinesh Abrol

Sushma Iyengar

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