विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख (Specially written for Vikalp Sangam)
सभी फोटो – शहीद अस्पताल
“मैं अप्रैल महीने में पॉजिटिव हो गई। पहले बुखार आया, जब वह असहनीय हो गया, तब मैं अस्पताल गई। बुखार चेक करवाया, कोविड टेस्ट कराया। डॉक्टरों ने मुझे भरती होने की सलाह दी, पर मैं अपनी खुद देखभाल कर सकती थी, इसलिए भरती नहीं हुई। जो दवाएं अस्पताल से दी गईं, वह नियमित लेती रही। तीसरे दिन से मेरी हालत में सुधार होने लगा, 11 दिन में पूरी तरह ठीक हो गई और ड्यूटी पर लौट आई।” यह सुनीता सिन्हा थीं, जो शहीद अस्पताल में नर्स हैं।
छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में दल्ली राजहरा स्थित शहीद अस्पताल है। यह खदान मजदूरों का अपना अस्पताल है। छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ (सी.एम.एस.एस.) के मजदूरों ने इसे बनाया है। इसके प्रबंधन से लेकर संचालन तक सभी काम मजदूर करते हैं। 1981 से एक छोटी डिस्पेंसरी से शुरू हुआ था।
इस अस्पताल की शुरूआत से जुड़े डॉ. शैवाल जाना बताते हैं कि “छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ की उपाध्यक्ष कुसुमबाई की प्रसूति के दौरान उचित स्वास्थ्य व्यवस्था न होने के कारण मौत हो गई थी। इससे संगठन को बड़ा धक्का लगा। तभी से खदान मजदूरों के मन में अस्पताल बनाने की सोच बनी। दल्ली राजहरा की खदानों से भिलाई इस्पात संयंत्र को लौह अयस्क भेजा जाता था। खदान मजदूरों ने ही छत्तीसगढ़ माइंस श्रमिक संघ बनाया था, जिसका नेतृत्व मशहूर मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी कर रहे थे।”
वे आगे बताते हैं कि “शहीद अस्पताल के निर्माण के पीछे शहीद शंकर गुहा नियोगी की दूरगामी सोच थी। उनके नेतृत्व में संघर्ष के साथ निर्माण के कामों की नींव डाली गई थी और इनमें से एक शहीद अस्पताल है। नियोगी जी का मानना था कि यूनियन सिर्फ 8 घंटे के लिए नहीं, वरन् 24 घंटे के लिए काम करेगा। मजदूरों की जिंदगी को बेहतर बनाने के लिए काम करेगा। इस तरह अस्पताल बनाने का निर्णय लिया गया।”
खदान मजदूरों की स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याएं उनके कामकाज की प्रकृति से जुड़ी हैं। रेजिंग में जो महिला पुरुष काम करते हैं, वह गिट्टी तोड़ते हैं, उनकी आंखों में कई बार गिट्टी के कण घुस जाते हैं, हाथ में चोट लग जाती है। और जो मजदूर लोडिंग का काम करते हैं, उनको कमर दर्द होता है। मजदूरों को धूल से परेशानी होती है। यहां के पानी में लौह अयस्क के तत्व ज्यादा होते हैं, जिससे यह पानी पीने से हजम नहीं होता। गैस की समस्या होती है। इसलिए ऐसे अस्पताल की जरूरत महसूस की गई, जो मजदूरों को सस्ता, अच्छा व उचित इलाज दे सके।
शहीद अस्पताल के पर्याय बन चुके डॉ. शैवाल जाना बताते हैं कि “जो मजदूर खदान में काम करते थे, उनमें से ही कुछ मजदूरों को स्वास्थ्यकर्मी का प्रशिक्षण दिया गया। इनमें से ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे, फिर भी उनमें जो कार्य क्षमता थी, उस हिसाब से अस्पताल में उन्हें जिम्मेदारी सौंपी गई। काम के दौरान उनका हुनर सामने आया, और उसमें निखार आता गया।“
वे आगे बताते हैं कि “शुरूआत में ऐसे मजदूर थे, जो खदान में काम करने के साथ-साथ अस्पताल में अवैतनिक सेवाएं देते थे, 6-6 घंटे की रात्रिकालीन सेवाएं प्रदान करते थे। अब उनमें से अधिकांश मजदूर सेवानिवृत्त हो गए हैं। इसके अलावा, आदिवासी, मजदूर, युवा और जन संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं को स्वास्थ्यकर्मियों का प्रशिक्षण देना, हमारी प्राथमिकताओं में है।”
शहीद अस्पताल को अब लगभग 40 साल हो गए हैं। डिस्पेंसरी से शुरू हुआ यह अस्पताल अब सर्वसुविधायुक्त अस्पताल बन गया है। तीन मंजिला इमारत बन गई है। अत्याधुनिक सुविधाएं जुटा ली गई हैं। दवाई, ऑपरेशन थियेटर, पैथालॉजी लैब जैसी सुविधाएं हैं, और एम्बुलेंस भी है। यहां ओपीडी में रोजाना 250 मरीज आते हैं। हाल ही में नया प्रसूति भवन भी बन गया है। ऑक्सीजन प्लांट लग गया है। इस समय 12 डॉक्टर पूरावक्ती हैं। 150 स्वास्थ्यकर्मियों का बड़ा स्टॉफ है।
डॉ. जाना बताते हैं कि “इस अस्पताल की विशेषताओं में सस्ता और उचित इलाज करना और बीमारी की सही जानकारी देना, हमारी जन शिक्षण कार्यशैली का हिस्सा रहा है। नशाबंदी, साफ-सफाई और पेयजल के लिए विशेष अभियान व पहल करना, बेहतर स्वास्थ्य की नींव रही है। यह काम अस्पताल बखूबी कर रहा है। संगठन ने शुरूआत से ही नशाबंदी पर जोर दिया। 80 के दशक की शुरूआत में संगठन की पहल पर 10 से 15 हजार मजदूरों ने एक साथ शराब छोड़ दी थी।”
डॉ. शैवाल जाना बताते हैं कि “जब पिछले वर्ष 2020 में कोविड-19 की पहली लहर आई। मार्च महीने में तालाबंदी हुई, तबसे अस्पताल में उससे बचाव के उपायों को अपनाना शुरू कर दिया था। अस्पताल ने मास्क बनाने, सेनेटाइजर और साबुन बनाने का काम किया। मास्क बनाने के लिए सिलाई मशीन और कपड़ा खरीदा गया और जब भी कोई प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मी का खाली समय होता था, तब वह मास्क तैयार करता था। बाद में इसके लिए दो दर्जी भी रखे। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानकों के आधार पर सेनेटाइजर तैयार किया। साबुन भी बनाए। यह सब काम अब भी जारी है।”
वे आगे बताते हैं कि “इन सब उपायों को हमने खुद भी अपनाया और जनसाधारण को भी इन उपायों को अपनाने की सलाह दी। सभी स्वास्थ्यकर्मियों ने टीका लगवाया। अस्पताल में टीकाकरण का केन्द्र है, जहां टीकाकरण का काम किया। बस्ती-बस्ती और मोहल्ले-मोहल्ले में जन जागरूकता अभियान चलाया। वाट्सएप समूह के माध्यम से जानकारी का आदान-प्रदान किया। यह सिलसिला अब भी जारी है।”
इसके अलावा, हर रोज शाम को बैठक करते थे, जिसमें अस्पताल के सभी डॉक्टर, स्वास्थ्यकर्मी, नर्स और सफाईकर्मी शामिल होते थे। इस बैठक में जो भी नई जानकारी होती थी, उसे साझा करते थे। पूरे दिन की समीक्षा करते थे और अगले दिन की तैयारी करते थे। इसमें यह देखते कि क्या कोविड-19 से बचाव के लिए हमारे पास दवाएं, ऑक्सीजन, स्टॉफ इत्यादि पर्याप्त हैं या नहीं।
ड़ॉ. शैवाल जाना बताते हैं कि “ कोविड-19 की दूसरी लहर में हमने ज्यादा सजगता व सावधानी से काम लिया। अस्पताल में प्रवेश के पूर्व साबुन से हाथ धुलवाना, शारीरिक दूरी के लिए लाल रेखाएं खींचना, ब्लीचिंग पाउडर से साफ-सफाई करवाना इत्यादि। इसके अलावा, सर्दी खांसी के मरीजों और सामान्य मरीजों की अलग-अलग इलाज की व्यवस्था की गई।”
डॉ. जाना बताते हैं कि “हमने 32 बिस्तर का कोविड वार्ड भी बनाया। यह वार्ड सर्वसुविधायुक्त था। जो भी पॉजिटिव मरीज दूसरी लहर के दौरान अप्रैल से जून तक इलाज के लिए आए, या भरती हुए, उनका अच्छा इलाज हो, यह सुनिश्चित किया गया। ऑक्सीजन की जरूरत होती तो उन्हें ऑक्सीजन दी जाती। साफ-सफाई व स्वच्छता का विशेष ध्यान रखा जाता। स्वास्थ्यकर्मियों की ड्यूटी में यह ध्यान रखा गया कि अधिक आयु व अन्य बीमारियों से ग्रसित कर्मियों की जगह युवाओं की ड्यूटी बदल-बदलकर लगाई गई। युवा स्वास्थ्यकर्मियों ने इस काम की पूरी जिम्मेदारी ली और बखूबी इसे निभाया। ”
इसके अलावा, एक मरीज के साथ एक रिश्तेदार को ही अस्पताल रहने की इजाजत दी गई। मरीजों के भोजन व राशन की व्यवस्था की गई, जिसमें कई जागरूक नागरिकों ने भी मदद की। अस्पताल में तुलसी, अदरक, लौंग, इलायची का काढा बनवाया। प्राणायाम करने की सलाह भी दी गई।
शहीद अस्पताल के डॉ विदित पांचाल बताते हैं कि “हमने अस्पताल के स्वास्थ्यकर्मियों का प्रशिक्षण किया, गांवों की मितानिनों का भी प्रशिक्षण किया। जिससे वे मरीजों के लक्षणों के आधार पर जल्द से जल्द कोविड की जांच करवाएं, अस्पताल की कोशिश थी कि मरीज के गंभीर अवस्था में पहुंचने के पहले ही उसका इलाज शुरू हो, जिससे वह जल्द स्वस्थ हो सके। सरकारी आइसोलेशन केन्द्रों का निरीक्षण भी शहीद अस्पताल ने किया। कोविड-19 के बाद मरीजों की देखरेख व इलाज के लिए पोस्ट कोविड इलाज की व्यवस्था की गई है, जिससे यह देखा जा सके कि जो मरीज कोविड से ठीक हो गए हैं, और जिन्हें अन्य बीमारियां भी पहले से हैं, उन पर कोविड का क्या असर हुआ है, यह पता लगाया जा सके, जिससे उनका इलाज किया जा सके।”
शहीद अस्पताल की सबसे पुरानी नर्स कुलेश्वरी सोनवानी कहती हैं कि “कोविड की दूसरी लहर दर्दनाक थी, मेरी देवरानी की मौत भी इससे हो गई। और जो मरीज देर से हमारे अस्पताल पहुंचे, जिन्हें समय पर ऑक्सीजन की सुविधा नहीं मिली, जिन्हें प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधा जल्द नहीं मिली, उनकी भी मृत्यु हुई। हालांकि हम कई मरीजों को बचाने में सफल हुए।”
स्वास्थ्य कार्यकर्ता सोमे सेन गुप्ता ने बताया कि वे और उनकी पत्नी दोनों कोविड पॉजिटिव हो गए थे। अस्पताल में भर्ती हुए, सही समय पर इलाज शुरू हुआ, और 10-12 दिन में दोनों ठीक हो गए। हमारे अस्पताल के सभी स्वास्थ्यकर्मी स्वस्थ हैं, उसका कारण सही समय पर उचित इलाज है।
सिस्टर लीला, दीपांजलि ने बताया कि गरम पानी की भाप, मास्क ठीक से लगाने, बार-बार हाथ धोने, दैनंदिन उपयोग में आनेवाले सामान को छूने के बाद तत्काल हाथ धोने की आदत जैसे उपायों पर जोर दिया गया। मरीज के साथ अपनेपन व सहज रिश्ता बनाना। उनका विशेष ख्याल रखना बहुत जरूरी है।
डॉ. पांडुरंग व डॉ श्रीनिधि ने बताया कि “संस्थानिक प्रसूति की बात प्रचारित की जाती है, लेकिन कोविड-19 के दौरान जब अस्पतालों तक पहुंचना मुश्किल था, तब घरों में प्रसूति हुई, और वह भी पारंपरिक तरीके से ही। लेकिन शहीद अस्पताल में हमने यह सुविधा जारी रखी, और 42 कोविड पॉजिटिव महिलाओं की प्रसूति करवाई, जिसमें से 5 का सीजर ऑपरेशन भी हुआ।”
वे आगे बताते हैं कि “शहीद अस्पताल ने कोविड-19 के अलावा अन्य बीमारियों के इलाज को भी उतनी ही अहमियत दी, जितनी कि कोविड को। शहीद अस्पताल जन स्वास्थ्य सहयोग और राज्य सरकार के साथ मलेरिया नियंत्रण पर साझा काम कर रहे हैं। इससे छत्तीसगढ़ में मलेरिया कम करने में कामयाबी मिली है। इस तरह मिल-जुले प्रयास से भी महामारी से मुकाबला किया जा सकता है।”
वे बताते हैं कि “हम शहीद अस्पताल में एलोपैथी के अलावा आयुर्वेद वगैरह से इलाज करना चाहते हैं। एक डॉक्टर इसके लिए भी है। हम पारंपरिक चिकित्सा व्यवस्था को मजबूत करने के पक्ष में हैं। ”
कुल मिलाकर, शहीद अस्पताल ने सस्ता व उचित इलाज करने के साथ साथ उसकी जानकारी भी जनसाधारण के पास तक पहुंचाई। सही समय पर कोविड की जांच और इलाज को प्राथमिकता दी। बचाव के उपायों को अपनाने की आदत डाली। अन्य बीमारियों के इलाज को भी प्राथमिकता दी। सुरक्षित प्रसव, अस्पताल की प्राथमिकताओं से एक है, यह सुविधा अस्पताल में जारी रही। ऐलोपैथी के साथ काढा जैसे घरेलू नुस्खे व प्राणायाम पर भी जोर दिया। यानी स्वस्थ रहने में जो भी चिकित्सा पद्धति मदद करे, उसे अपनाया। इस तरह, यह जन स्वास्थ्य का ऐसा उदाहरण है, जिसने सस्ता व उचित इलाज, सही जानकारी का प्रचार-प्रसार और ऐलोपैथी के अलावा अन्य चिकित्सा पद्धतियों की मदद से महामारी का सामना किया।
इस पूरी पहल के बारे में यह भी कहा जा सकता है कि अस्पताल और जनसाधारण के बीच आपसी विश्वास होना चाहिए, जो शहीद अस्पताल ने बरसों में हासिल किया है। कोविड जैसी महामारियों का सामना करने के लिए एक मजबूत शासकीय चिकित्सा व्यवस्था की जरूरत शिद्दत से महसूस की जा रही है, शहीद अस्पताल जैसी पहल की अपनी सीमाएं हैं। बहरहाल, यह जनस्वास्थ्य की अनुकरणीय पहल है, जिससे काफी कुछ सीखा जा सकता है।
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