जनता संसद : पर्यावरण सत्र में पारित प्रस्ताव, 18 अगस्त, 2020 (in Hindi)

By बाबा मायाराम ने अनुवाद किया है, व सुहासताई कोल्हेकर ने कुछ सुधारonSep. 17, 2020in Environment and Ecology

जनता संसद, 16-21 अगस्त, 2020 (https://jantaparliament.wordpress.com/

पर्यावरण सत्र में पारित प्रस्ताव, 18 अगस्त, 2020

(कल्पवृक्ष, जन आन्दोलनो का राष्ट्रीय समन्वय, एनवायरमेंट सपोर्ट ग्रूप, ग्रीनपीस इन्डिया, वेदितम, फ्राइडेस फॅार फ्यूचर इन्डिया, एक्स्टिन्क्षन रेबेलियन इन्डिया, लेट इन्डिया ब्रीद, पर्यावरण सुरक्षा समिति, विकल्प सन्गम, व युगमा द्वारा संयोजित)

अन्ग्रेजी मे: /article/janta-parliament-resolutions-passed-in-session-on-environment-18-august-2020/#.Xz6kvzVS_wo

सत्र का रेकोर्डिंग: https://www.youtube.com/watch?time_continue=38&v=iRuzHuH-o_k&feature=emb_logo

1.विषयपर्यावरणीय नियामक व्यवस्था को मजबूत करना

 

ध्यान देने योग्य तथ्य

  1. भारत में पर्यावरण की स्थिति तेजी से बिगड़ती जा रही है। कारोबार में सुगमता और विकास के नाम पर  पर्यावरणीय नियामक कमजोर हो रहे हैं। 
  2. पिछले 5 महीनों से सरकार ने जो प्रस्ताव व कदम उठाए हैं उसमें गैर-प्रतिगमन के सिद्धांत का उल्लंघन हुआ है। ( मौजूदा नियामक व्यवस्था कमजोर हुई है) और इस दौरान प्रभावी जनभागीदारी असंभव हुई है।
  3. पर्यावरणीय व टिकाऊपन की प्रतिबद्धताओं से संबंधित अन्तरराष्ट्रीय समझौते का भी इन कदमों से उल्लंघन हुआ है। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव ने इसके लिए फटकार लगाई है।
  4. इस बात के वैज्ञानिक प्रमाण हैं कि प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंंत्र का अत्यधिक दोहन व उनके विनाश से ही कोविड-19 जैसी महामारी पनपती हैं।
  5. नीतियों के माध्यम से प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों को उत्पाद बनाने और वित्तीयकरण की दिशा में  आगे बढ़ रहे हैं। जैसे राष्ट्रीय मत्स्य नीति 2020 का मसौदा, जो निजीकरण को बढ़ाता है और इससे परंपरागत समुदायों की आजीविका और खाद्य सुरक्षा  पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। इन समुदायों की आजीविका व खाद्य सुरक्षा पारंपरिक रूप से प्रकृति व प्राकृतिक संसाधनों से जुड़ी है, उस पर निर्भर है।

 

सदन का सरकार से आग्रह है किः

 

  1. पिछले 5 महीने में पारिस्थितिकी और सांस्कृतिक रूप से संवेदनशील इलाकों में उद्योगों व ढांचागत परियोजनाओं व कोयला खदानों की नीलामी को दी गई मंजूरी को वापस लिया जाए।
  2. ईआईए मसौदा, 2020 की अधिसूचना को वापस लिया जाए और व्यापक परामर्श की प्रक्रिया शुरू की जाए जिसमें समन्वित पर्यावरणीय नियामक व्यवस्था हो, जो एक स्वतंत्र सोच के लोगों की टीम के संयोजन में बने। इस टीम में महत्वपूर्ण विशेषज्ञों को शामिल किया जाए ( स्थानीय समुदायों को भी)। इसे संसदीय स्थाई समिति के परामर्श से बनाएं, साथ ही मौजूदा ईआईए अधिसूचना के अनुभवों की जनभागीदारी के माध्यम से समीक्षा हो।
  3. प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र के खदान,उद्योग और विकास योजनाओं के लिए परिवर्तन पर रोक लगाएं, जब तक नियामक व्यवस्था न बने। ( स्थानीय समुदायों की बहुत कम बुनियादी जरूरतों के लिए अलावा)
  4. पर्यावरण से संबंधित अन्तरराष्ट्रीय समझौतों के मद्देनजर भारत की प्रतिबद्धताओं का आंकलन किया जाए और उसे पूरा करने के लिए कानूनी और कार्यक्रम आधारित कदम उठाए जाएं।
  5. विकास की सभी योजनाओं, बजट और कार्यक्रमों के केन्द्र में पारिस्थितिकी और टिकाऊपन का स्थान होना चाहिए, पर्यावरणीय मंजूरी देने के लिए सिर्फ औपचारिक या ऊपरी तौर पर न समझा जाए।

 

विषयप्रदूषण को खत्म करना

 

ध्यान देने योग्य तथ्य

 

  1. भारत के नागरिक भारी प्रदूषण का सामना कर रहे हैं ( हवा, पानी, शोर-शराबा, मिट्टी और भोजन)। यह सभी कारक देश के लाखों मनुष्यों की कई बीमारियों व असमय मौतों का कारण हैं।
  2. यह एक गंभीर गैरबराबरी है, जिनके कारण समस्याएं पैदा होती हैं और जो उन समस्याओं से बुरी तरह प्रभावित होते हैं। यह स्थिति गंभीर पारिस्थितिकी अन्याय है। 

 

सदन का सरकार से आग्रह है किः-

 

  1. प्रदूषण के सभी स्रोतों को कम करने, दूर करने और बदलने के लिए तत्काल कदम उठाएं। ऐसे कदम उठाएं जिससे 10-15 साल में हवा, पानी और मिट्टी की गुणवत्ता का स्तर बेहतर हो, जो मनुष्यों के साथ अन्य जानवरों के लिए पूरी तरह सुरक्षित हो। काफी हद तक निजी परिवहन को सार्वजनिक परिवहन में बदलना, हानिकारक रसायनों की जगह सुरक्षित पदार्थ, कोलाहल या शोर-शराबे के स्रोतों को दूर करना और  सभी तरह के अपशिष्ट पानी को जल निकायों में छोड़ने से पहले शुद्ध किया जाए।
  2. राष्ट्रीय स्वच्छ वायु योजना और जल, वायु अधिनियम और पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के तहत् जारी अधिसूचनाओं को संशोधित कर  समर्थ बनाना, सभी प्रदूषण नियंत्रण और निगरानी संस्थानों की स्वायत्तता को बढ़ाना और उनके प्रमुख व सदस्यों की  नियु्क्ति की प्रक्रिया को पारदर्शी बनाने को सुनिश्चित करना। विशेषकर, विभिन्न तरह से इस्तेमाल में होनेवाले पानी की गुणवत्ता के स्तर मानक को निर्धारित करना,  और जल निकायों के पानी के सबसे अधिक लाभकारी इस्तेमाल के लिए सार्वजनिक रूप से वैधानिक प्रक्रिया निर्धारित करना।  इस प्रकार, जलग्रह क्षेत्र में होनेवाली सभी तरह की गतिविधियों के लिए डिस्चार्ज परमिट की व्यवस्था हो।

 

  1. 3.            विषयजलवायु संकट से निपटने के लिए

 

ध्यान देने योग्य तथ्य

 

  1. भारत में जलवायु संकट से बहुत बड़ा नुकसान हो रहा है, इसका मोटे तौर पर कारण वैश्विक उत्तर ( ग्लोबल नार्थ) है। लेकिन इसके साथ भारत में जीवाश्म ईंधन, रासायनिक खेती और ऐसी अन्य तरह की गतिविधियां जारी हैं, जिससे जलवायु संकट बढ़ रहा है।
  2. यहां गंभीर गैरबराबरी देखी जाती  है, उनमें जिनके कारण समस्याएं पैदा रही हैं और जो उससे सबसे ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। बाद में वे निर्णय प्रक्रिया में भी हाशिये पर होते हैं। यह स्थिति प्रभावितों के साथ गंभीर रूप से पारिस्थितिकी अन्याय है। 

 

सदन का सरकार से आग्रह है किः- 

 

  1. जलवायु परिवर्तन पर राष्ट्रीय कार्ययोजना की समीक्षा व उसमें संशोधन किया जाए, जिसमें सबसे ज्यादा प्रभावित समुदायों की भागीदारी हो ( विशेषकर, हाशिये के समुदाय- महिलाएं, बच्चे, भूमिहीन, दलित, और आदिवासी), नागरिक समाज संस्थाएं और अन्य विशेषज्ञ भी शामिल किए जाएं। और इसे सख्त और प्रभावी बनाने के लिए जो भी बदलावों की जरूरत है वो किए जाएं। खासकर, उत्सर्जन सीमा को लक्ष्य बनाना, विशिष्ट वर्ग की ऊर्जा खपत को कम करना,राष्ट्रीय ऊर्जा नीति को जीवाश्म ईंधन, बड़ी जल व नाभिकीय ऊर्जा से दूर ले जाना और विकेन्द्रीकृत अक्षय ऊर्जा और प्राथमिकता के साथ जलवायु शरणार्थियों के लिए कार्ययोजना बनाना।
  2. पर्यावरण न्याय के लिए कदम उठाना और इस ओर धीरे धीरे आगे बढ़ना जिससे कि अमीरों  और विशिष्ट वर्ग की आबादी पर हरजाना लगाया जाए और  इसका पुनर्वितरण हो, जो बहुत सी समस्या के कारण हैं। उनकी वजह से  आई जलवायु आपदाओं से लाखों लोग प्रभावित हुए हैें। हाशिये के लोग बड़े संकट का सामना कर रहे हैं। अमीरों पर जलवायु और पारिस्थितिकी कर लगाकर, उसकी भरपाई की जा सकती है। 
  3. दक्षिण एशिया, दुनिया में दो में एक सबसे ज्यादा जलवायु असुरक्षित क्षेत्र है। हमारी जलवायु और पर्यावरण सुरक्षा और पारिस्थितिकी अभिन्न रूप से जुड़ी हुई है हमारे पड़ोसी देशों से। इसलिए क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के तरीके अपनाने चाहिए, जैसे सार्क देशों के साथ मजबूत पर्यावरण पर जोर देना होगा। इसके साथ पारिस्थितिकी सुरक्षा व शांति हासिल करने के लिए सभी पड़ोसी देशों से अनिवार्य रूप से निरंतर संवाद करना होगा।

 

  1. विषय–  पारिस्थितिकी तंत्र और वन्य जीवन का पुनर्जीवन, बहाली और संरक्षण

 

ध्यान देने योग्य तथ्य 

 

  1. प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र गंभीर दुर्दशा का सामना कर रहा है और कई वन्य जीव प्रजातियां खतरे में हैं। विशेषकर, उनके प्राकृतिक पर्यावासों में बड़े पैमाने पर घुसपैठ, जो कि बीमार सोच से उपजी विकास परियोजना के कारण हुई है।
  2.  स्थानीय समुदायों को शासकों द्वारा व्यवस्थित तरीके से कमजोर किया जा रहा है। जैसे पारिस्थितिकी, समुदाय और  वन्य जीव का सहअस्तित्व है, लेकिन समुदायों को बलपूर्वक  बेखदल किया जा रहा है।
  3. पारिस्थितिकी तंत्र और वन्य जीव संरक्षण से संबंधित नियामक व्यवस्था व्यवस्थित रूप से कमजोर हुई है, जैसे सीआरजेड अधिसूचना, 2019 को बड़े विरोध के बावजूद पास करना। और वन्य प्राणी संरक्षण अधिनियम को दरकिनार कर  विकास परियोजनाओं को संरक्षित क्षेत्र के अंदर मंजूरी देना।

 

सदन का सरकार से आग्रह है किः-

 

  1. प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंंत्र को पुनर्जीवित और संरक्षित किया जाए ( वन, तटीय व समुद्र तटीय, चरागाह, जलभूमि, रेगिस्तान और पहाड़ी क्षेत्र), यह भारत में कम से कम एक तिहाई होना चाहिए। इनके बीच में रहनेवाले समुदायों को  टिकाऊ तरीके से इनका प्रबंधन करने के लिए देना चाहिए। एक समुदाय संरक्षित क्षेत्र की तरह।
  2. समन्वित प्राकृतिक पारिस्थितिकी संरक्षण नीति पारित हो, संरक्षण और समुदाय प्रशासन कानून हो, जो सभी पारिस्थितिकी पर लागू हो।  नई वन नीति में विकेन्द्रित निर्णय प्रक्रिया की प्राथमिकता हो, स्थानीय आजीविका, समग्र संरक्षण और टिकाऊ तरीके से इस्तेमाल पर जोर हो। पारदर्शी और जवाबदेही नियम हों, नए भारतीय वन अधिनियम का एफआरए और पेसा कानून के साथ सामंजस्य हो, स्थानीय समुदायों के प्रति नौकरशाही जवाबदेह हो। इसी तरह के कानून तटीय व समुद्री तट, जलभूमि, चरागाह, रेगिस्तान, और पहाड़ी इलाकों के लिए भी हों।
  3. वन्य जीवों के संरक्षण के नाम पर समुदायों की बेदखली बंद हो। टाइगर प्रोजेक्ट के नाम पर सैन्यीकरण बंद हो, पर्यटन स्थल व होटलों के लिए संरक्षित क्षेत्र के पास की कृषि भूमि का रूपांतरण बंद हो, और ऐसी भूमि पर जिन पर समुदायों की निर्भरता है, उन पर वनरोपण किया जाए ( इसमें कैम्पा राशि का इस्तेमाल किया जाए)।
  4. प्रकृति के अधिकार को संवैधानिक मान्यता मिले। भारत की परंपराओं के मुताबिक परंपराओं का सम्मान किया जाए। हाल ही में गंगा, यमुना और जानवरों से संबंधित कोर्ट के फैसले के मद्देनजर इसे देखा जाना चाहिए। इसकी व्याख्या भी होनी चाहिए कि इस अधिकार का क्या मतलब है और इसके स्पष्ट दिशा निर्देश हों कि कैसे इसमें सभी संस्कृतियों का सम्मान शामिल हो। इससे प्रकृति पर निर्भर समुदायों की आधारभूत आजीविका और खाद्य सुरक्षा प्रभावित न हो।

 

  1. 5.            विषय–  ग्राम सभा कस्बा सभा के जरिए स्वशासन और आत्मनिर्भरता को मजबूत करना

 

ध्यान देने योग्य तथ्य

 

  1. संविधान का स्थानीय स्वशासन एक प्रमुख घटक है। 73 वें और 74 वें संशोधन और संबंधित कानूनों का भी यह प्रमुख हिस्सा है। लेकिन इसके भाव व लिखित दोनों को हासिल नहीं किया जा सका है।
  2. पारिस्थितिकी विनाश की सबसे भारी मार उन समुदायों पर पड़ती है, जो प्रकृति व प्राकृतिक पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर हैं। और इसके प्रभाव से हवा, पानी, मिट्टी का प्रदूषण भी बढ़ता है।
  3. ऐसे समुदाय हैं,  जिनमें टिकाऊ आजीविका हासिल करने और प्रकृति के साथ जीवन जीने के  तरीके, कौशल और गहरा ज्ञान है।
  4. बाहरी राजनैतिक व आर्थिक हमले के प्रति समुदायों को आर्थिक वैश्वीकरण ने असुरक्षित बना दिया है।
  5. सरकार का आत्मनिर्भर पैकेज सबसे ज्यादा हाशिये के लोगों को सशक्त करने की तरफ नहीं है बल्कि इस पर कारपोरेट जगत का नियंत्रण है।

 

सदन का सरकार से आग्रह है किः-

 

  1. स्थानीय स्वशासन संस्थानों को पूरी तरह सशक्त करना। जिसमें ग्राम सभा, वार्ड सभा और सम्बद्ध प्रथाएं भी शामिल हों। सभी प्रभावित होनेवाले निवासियों को निर्णय प्रक्रिया में भागीदार बनाना। योजना व बजट प्रक्रिया में शामिल करना। पंचायत कानून (5 वीं और 6 वीं अनुसूची क्षेत्र व राज्य विशेष संवैधानिक प्रावधान) में उपयुक्त संशोधन  करना। सामुदायिक अधिकारों (पारिस्थितिकी तंत्र और संबंधित अधिकारों से जुड़े कानून को, जिनका सुझाव ऊपर दिया गया है) कानूनी मान्यता देना।  पहले से सूचना देकर सहमति लेना कानूनी रूप से अनिवार्य हो।       
  1. ऐसे समुदायों के संस्थानों का क्षमतावर्धन और संसाधन जुटाने में मदद करना। पारंपरिक व स्थानीय समुदायों के पारिस्थितिकी व पर्यावरण ज्ञान के साथ, हाशिये के लोगों की पूरी भागीदारी कर उनके  सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करना।
  2. सभी योजनाओं व मनरेगा समेत व अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से स्थानीय लोगों को सक्षम करें, आत्मनिर्भर अर्थव्यस्था हो, इसके लिए स्थानीय, नए कौशल और संसाधनों को इस्तेमाल करें। सबसे पहले  स्थानीय लोगों की भोजन और बुनियादी चीजों की जरूरत पूरी हों, उसके ऊपर इस तरह के उपायों के माध्यम से व्यवसाय करना चाहिए। ( इसके उलट इसे कमजोर नहीं करना चाहिए) इसके साथ ग्रामीण- शहरी पलायन का तनाव कम करना। जो प्रवासी मजदूर कोविड के समय गांव में उनके घरों पर रह रहे हैं और वे गरिमापूर्ण आजीविका  से सुरक्षा चाहते हैं, तो वह उन्हें मिलना चाहिए।
  3. 74 वें संवैधानिक में लक्ष्य और ढांचे में विकेन्द्रित लोकतांत्रिक शहरी स्वशासन को सशक्त करने के लिए शहरी स्थानीय निकाय ( यूएलबी) के बारे में कानून पास होना चाहिए। जैसे पड़ोस की विधानसभा, क्षेत्र सभा हो, इसके लिए राज्य के कानून में भी संशोधन की जरूरत है। यूएलबी का इन सभी पर स्वायत्त नियंत्रण हो-जैसे जल निकाय, हरित पट्टी, हरित कर की व्यवस्था, नगर निगम के सार्वजनिक परिवहन आदि पर नियंत्रण हो। जल आपूर्ति व सीवरेज बोर्ड की जवावदेही भी यूएलबी की होगी।
  4. इन सबके साथ साथ हाशिये के तबके की भागीदारी को सुनिश्चित करना जरूरी है। इनमें महिलाएं, बच्चे, भूमिहीन, विकलांग, आदिवासी, दलित और युवा शामिल हैं।

 

  1. 6.            विषयटिकाऊ पारिस्थितिकी के साथ गरिमापूर्ण आजीविका जो कोविड में स्वस्थ होने का भी हिस्सा है

 

ध्यान देने योग्य तथ्य

 

1.  कोविड संकट के दौरान लाखों लोगों का रोजगार छिन गया है और कृषि,हस्तकला, सूक्ष्म, लघु एवं मझौले उद्मम और संबंधित क्षेत्र, जो सुरक्षित आजीविका वाले हैं, प्रभावित हुए हैं। इनमें महिलाएं, भूमिहीन, दलित, और अन्य जो गंभीर रूप से हाशिये पर हैं, वे भी बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।

2. कई लाख प्रवासी मजदूर जो वापस उनके गांव या छोटे कस्बों में लौट गए हैं, वे असुरक्षित व गरिमाहीन रोजगार में वापस नहीं लौटना चाहते, अगर वहां रोजगार उपलब्ध हों तो भी।

3. भारत में गरिमापूर्ण, टिकाऊ आजीविका के सैकड़ों उदाहरण मौजूद हैं, उनसे सीखा जा सकता है।

 

सदन का सरकार से आग्रह है किः-

 

  1. लाखों लोगों को टिकाऊ पारिस्थितिकी के साथ गरिमापूर्ण आजीविका देने के लिए अधिकतम संसाधन लगाने की जरूरत है। जैसे छोटे किसान आधारित जैविक खेती ( मौजूदा रासायनिक खाद सब्सिडी को 5 साल में बदलकर जैविक खेती को देना), पशुपालकों का सहयोग,मछुआरे और वनवासी, विकेन्द्रित अक्षय ऊर्जा, और जल संचयन (वाटर हारवेस्टिंग) किया जाए।  माल और सेवा के उत्पादन में बायोमास  का इस्तेमाल और वह हस्तनिर्मित हो। समग्र स्वास्थ्य सुविधाएं, कुटीर उद्योग हस्तकला  भी। इसके साथ बड़े पैमाने पर आजीविका कार्यक्रम मिट्टी पानी व्यवस्था की  बिगड़ती स्थिति को सुधारने व उन्हें पुनर्जीवित करने के लिेए चलाया जाना चाहिए।
  2. समुदाय से समुदाय सीखने के तौर-तरीकों का आदान प्रदान हो। इसमें नागरिक समाज के नेटवर्क का सहयोग लिया जा सकता है, जो सफल पहल का प्रचार प्रसार करे। ऊपर दिए गए उद्देश्यों के लिए,ऐसे उदाहरणों का इस्तेमाल सरकार भी करे।
  3. आत्मनिर्भर भारत पैकेज को मूलरूप से बदलना होगा, जो मौजूदा स्वरूप में निगमीकरण के पक्ष में है। ऊपर जो बात कही गई हैं, यह समाज के सबसे ज्यादा वंचित लोगों के नियंत्रण में हो और वहां तक पहुंच भी सुनिश्चित की जाए।
  4. शहरीकरण और गहन ऊर्जा ढांचागत केन्द्रित विकास नीति को छोड़ दें। और अर्थव्यवस्था को टिकाऊ व बराबरी बनाने की दिशा में इसे बदलना चाहिए। कम ऊर्जा और कम सामग्री खपत, श्रम और ज्ञान केन्द्रित विकास की ओर बढ़ना चाहिए।
  5. राष्ट्रीय मत्स्य नीति 2020 और पीएम-एमएसवाय योजना को संशोधित किया जाए, जो वर्तमान में बड़े निवेश की ओर है। इसकी जगह छोटे पैमाने पर मत्स्य पालन और खाद्य सुरक्षा और पारंपरिक मछुआरा समुदाय की आजीविका की सुरक्षा हो।
  6. उपरोक्त सभी में वंचित तबके को प्राथमिकता मिले। इसमें महिलाएं, बच्चे, भूमिहीन, विकलांग, आदिवासी और दलित सभी शामिल हैं।

    

7.         बाढ़ प्रबंधन को सुधारना

 

ध्यान देने योग्य तथ्य

  1. हर साल बाढ़ क्षेत्र और बाढ़ से नुकसान बढ़ रहा है। इसके  बावजूद भी कि बाढ़ प्रबंधन के लिए ढांचागत और गैर ढांचागत पहल हो रही हैं, प्रोजेक्ट और इस पर खर्च किया जा रहा है।
  2. भारत में बाढ़ के मौसम में जलाशय संचालन की कोई जवाबदेही और कानूनी व्यवस्था नहीं है, और गलत संचालन के कारण बाढ़ आपदाएं घटने की बजाय  बढ़ रही हैं।
  3. बहुत से तटबंधों की मियाद अवधि खत्म हो गई है और वे टूट-फूट गए हैं। ज्यादा नुकसान तभी होता है जब वे टूटे रहते हैं, और उनकी टूट-फूट बार-बार बढ़ती जा रही है।
  4. वर्षा के बदले हुए पैटर्न के कारण भी बाढ़ बार-बार आती है। बाढ़ की तीव्रता भी बढ़ती है। पर हमारा बाढ़ प्रबंधन इसके लिए उत्तरदायी नहीं  है।

 

सदन का सरकार से आग्रह है कि ः-

 

  1. प्रस्तावित बांध सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत सभी जलाशयों का संचालन लाना चाहिए। और जलाशयों की सक्रिय भंडारण क्षमता 50 मिलियन क्यूबिक मीटर होनी चाहिए। इसके साथ नियमों को अपडेट करना, आपातकालीन कार्ययोजना, जिसमें नदी की चौड़ाई और नदी के नीचे की ओर वहन क्षमता का आंकलन होना चाहिए। इसी के साथ तटबंधों की मरम्मत कानूनी आवश्यकता हो। बांध सुरक्षा अधिनियम में संशोधन एक स्वतंत्र रूप से हो।
  2. बाढ़ प्रबंधन के लिए बाढ़ का पूर्वानुमान एक स्वतंत्र एजेंसी के अंतर्गत होना चाहिए।  इस आदेश में नदियां, जलाशय और क्षेत्र शामिल होने चाहिए।
  3. किसी भी नदी या नदी क्षेत्र में हस्तक्षेप के लिए पर्यावरण मंजूरी और  हाइड्रोलाजिकल प्रभाव आंकलन सुनिश्चित होना चाहिए।
  4. प्रभावी और पारदर्शी बाढ़ राहत तंत्र सुनिश्चित करना चाहिए। और राष्ट्रीय आपदा राहत कोष और राज्य आपदा राहत कोष की राशि समय पर भुगतान करनी चाहिए।
  5. हर बाढ़ मौसम के बाद एक रिपोर्ट जारी होनी चाहिए कि बाढ़ के दौरान क्या हुआ- बाढ़ आपदा में, जलाशयों में और तटबंधों में और आपदा प्रबंधन में, इसका विवरण होना चाहिए। स्वतंत्र एजेंसी के द्वारा आंकलन होना चाहिए और जवाबदेही की सिफारिश की जानी चाहिए।

 

8.         शहरी जल प्रबंधन को सुधारना

 

ध्यान देने योग्य तथ्य

 

  1. शहर में पानी की मांग ज्यादा से ज्यादा बढ़ती जा रही है और शहरी क्षेत्र के बाहर भी यह मांग बढ़ रही है।
  2. पूरा शहर जल क्षेत्र का संचालन बिना नीति के हो रहा है। राष्ट्रीय जल नीति में इसके लिए बहुत कम जगह है। स्मार्ट सिटी कार्यक्रम में भी जल स्मार्ट सिटी को नहीं बताया गया है।
  3. शहरी बाढ़ आपदाएं की घटनाएं भी बढ़ रही हैं। यह सिर्फ न केवल बड़े महानगरों में बल्कि छोटे शहरों में भी हो रही हैं- जैसे जयपुर, देहरादून जैसे छोटे शहर भी भयंकर बाढ़ का सामना कर रहे हैं। इनमें से ज्यादातर मानवनिर्मित बाढ़ है।
  4. शहरी क्षेत्र में वर्षा जल को एक संसाधन के रूप में देखने की जरूरत है। और इसका अधिकतम इस्तेमाल शहरी जरूरत पूरा करने के लिए होना चाहिए।

 

सदन का सरकार से आग्रह है कि ः-

 

  1. तत्काल राष्ट्रीय शहरी जल नीति बनानी चाहिए। इसके लिए समिति बने जिसमें स्वतंत्र सोच के व्यक्ति हों। इसमें स्मार्ट जल नीति को परिभाषित किया जाए, पानी के अधिकार और बराबरी पूर्ण पानी का वितरण की व्यवस्था हो। ऐसे कदम उठाएं जाएं जिससे उपभोक्ता को कार्यालय या घरों में मीटर के आधार पर उपलब्ध हो।
  2. नीति में यह भी होना चाहिए कि वर्षा जल का अधिकतम उपयोग शहरों में जल संचयन बढ़ाने में होना चाहिए। भूजल पुनर्भरण ( प्रदूषण के जोखिम के बिना), स्थानीय जल भंडार, जल पुनर्भरण को बढ़ावा देना- फुटपाथ में, छत और परिसरों में। इसके साथ विकेन्द्रित दूषित जल शुद्धिकरण और पुनः उपयोग में लाना।
  3. शहर बाहरी स्रोतों से पानी तभी लाएं जब स्थानीय तौर पर सभी विकल्प खत्म हो जाएं, जो ऊपर बताए गए हैं।
  4. शहरी जल निकासी और बाढ़ से प्रभावित होने वाले क्षेत्र ( फ्लडप्लेन) में कानूनी उपाय लागू होने चाहिए। प्रत्येक शहर में बाढ़ पूर्वानुमान और आपदा प्रबंधन प्राधिकरण होना चाहिए।

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