देसी सब्जियों का जैविक बाजार (In Hindi)

By बाबा मायारामonJan. 23, 2023in Environment and Ecology

विकल्प संगम के लिए लिखा गया विशेष लेख (Specially written for Vikalp Sangam)

(Desi Sabziyon Ka Jaivik Bazaar)

सभी फोटो – राजेश सामले

“हमारी सब्जी बाड़ी में हम देसी सब्जियां उगाते हैं, इससे हमें घर के लिए ताज़ी सब्जियां तो मिलती ही हैं, पड़ोसियों व गांववालों को भी मिलती हैं। इसी तरह, फलदार पेड़ भी लगाए हैं, जिससे बच्चों को ताजे फल खाने मिल रहे हैं और कुछ अतिरिक्त होने पर जैविक बाजार में बेचते हैं।” यह मध्यप्रदेश के पतलई खुर्द की पुष्पा मालवीय थीं।

मध्यप्रदेश के होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम) जिले में ग्राम सेवा समिति सबसे पुरानी संस्थाओं में से एक है। समिति ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए लम्बे अरसे से काम किया है। इसके संस्थापकों में प्रसिद्ध गांधीवादी बनवारी लाल चौधरी थे। समाजसेवी सुरेश दीवान बरसों से इस संस्था का संचालन कर रहे हैं। 

मध्यप्रदेश का यह जिला खेती के हिसाब से प्रदेश में आगे रहा है। नर्मदा घाटी के पहले बड़े बांध की तवा परियोजना की नहरें इसी जिले में है। हरदा जिले में भी हैं, जो इसी जिले का हिस्सा था, अब अलग हो गया है। यानी इससे दो जिलों में सिचाई होती है। लेकिन इस बांध से एक जमाने में मिट्टी मे दलदलीकरण की समस्या सामने आई थी, तब संस्था ने इससे निजात पाने के लिए मिट्टी बचाओ अभियान चलाया था, जिससे प्रसिद्ध पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र जैसे कई लोग जुड़े थे। अब तो एकल व रासायनिक खेती का संकट सामने आ गया है। 

संस्था ने जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए पुस्तिकाओं का प्रकाशन, जैविक खाद व जैव कीटनाशक बनाने का प्रशिक्षण, देसी बीज बैंक बनाना इत्यादि कई काम किए हैं। पिछले कुछ बरसों से सब्जी बाड़ी (किचन गार्डन) को प्रोत्साहन देना और उसके उत्पाद को बेचने के लिए जैविक बाजार लगवाने जैसे कार्यक्रमों को चलाने में सहयोग दिया गया है। 

निटाया गांव में ग्राम सेवा समिति का कार्यालय है। वहां जैविक खेती का प्रयोग भी होता रहा है। हालांकि अब कुछ सालों से यह प्रक्रिया धीमी हुई है। लेकिन अब संस्था ने महिला स्वयं सहायता समूहों के साथ मिलकर सब्जी बाड़ी (किचन गार्डन) के काम को आगे बढ़ाया है।  

महिला समूह की बैठक

संस्था के कार्यकर्ता राजेश सामले ने बताया कि उनकी समिति व नवधान्य संस्था, दिल्ली ने मिलकर संयुक्त रूप से सब्जी बाड़ी का काम किया है। इससे 8 गांव की करीब 80 महिलाएं जुड़ी हुई हैं। रोहना, पतलई, पलासी, देशमोहनी, बाईखेड़ी, बीसारोड़ा, चंद्रपुरा और निटाया गांव में यह काम किया जा रहा है। इसके लिए देसी बीज, देशी खाद और खेती किसानी के देसी तौर-तरीके अपनाए जाते हैं।

उन्होंने बताया कि इसके लिए सबसे पहले देसी बीजों का संकलन किया गया। कुछ बीजों को बाजार से भी खरीदा गया। आपस में बीजों का आदान-प्रदान किया गया। लौकी, गिलकी, कद्दू, भूरा, बल्लर (सेमी), टमाटर, मिर्ची, भटा (बैगन), भिंडी, तुअर, तिली, मटर, पालक, धनिया, सरसों, गोभी, लहसुन, अदरक, आलू,प्याज, राजगिर, मुनगा इत्यादि सब्जियां उगाई गई। इसके अलावा, फलदार पेड़  भी लगाए गए हैं।

राजेश सामले ने बताया कि  बेलवाली (लतावाली) सब्जियों के लिए छोटी झाड़ियों की टहनियों से मंडप बनाए जाते हैं, जिससे सब्जियों की बेल उन पर चढ़ जाए और उन्हें छाया भी मिले, उनमें नमी बनी रहे, वे सूखे नहीं। सब्जियों के पौधों पर मिट्टी चढ़ाना, उनमें समय-समय पर पानी देना, निंदाई-गुड़ाई करना इत्यादि सभी काम महिलाएं करती हैं।

बाईखेड़ी गांव की सीताबाई

पलासी गांव की मधु राजपूत और लक्ष्मी राठौर ने बताया कि वे बाजार से बहुत ही कम सब्जियां खरीदती हैं, क्योंकि घर की बाड़ी से ही सब्जियां मिल जाती हैं। और इससे करीब 30-40 रूपये रोज़ की बचत हो जाती है। बाईखेड़ी गांव की सीताबाई ने बताया कि उनकी बाड़ी में कुछ सब्जियां साल भर होती हैं। इसके अलावा, उनके घर फलदार पेड़ भी लगे हैं- जैसे अमरूद, नींबू, सीताफल, मुनगा, इमली, पपीता इत्यादि। देशमोहनी गांव की बिट्टन बाई ने बताया कि उनकी बाड़ी में करीब 25-30 किस्म की सब्जियां हैं। इससे उनकी घरेलू सब्जी की जरूरत तो पूरी होती ही है, अतिरिक्त होने पर जैविक बाजार में बेचते भी हैं, जिससे कुछ आमदनी भी हो जाती है।

चंद्रपुरा गांव की माया चौधरी

चंद्रपुरा गांव की माया चौधरी और निटाया गांव की मिथलेश पटेल ने बताया कि उनकी सब्जी बाड़ी साल भर हरी-भरी रहती है। इस काम को पूरा परिवार मिलकर करता है। सब्जियां और पानी होने से कई तरह की चिड़िया, तोते,मोर, तितलियां, भौरे और मधुमक्खी आते हैं। इसके अलावा, कीट-पतंगे, केंचुआ, जीव-जंतु, छोटे-छोटे जीवाणु भी हैं, जो जमीन को उर्वर तो बनाते ही हैं, कीटनाशक का काम भी करते हैं, जैसे चिड़िया कीटों को खाती हैं।

ग्राम सेवा समिति के प्रमुख सुरेश दीवान ने बताया कि जैविक खेती करनेवाले किसानों के सामने बड़ी चुनौती उनके उत्पादों को उचित दामों पर बेचने की होती है। इसलिए हमने होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम) जिले के इटारसी शहर में जैविक बाजार की शुरूआत की है। इसमें किसानों, जागरूक उपभोक्ताओं व नवधान्य संस्था ने मदद की है। विशेषकर, संस्था से जुड़े  हेमंत दुबे व साहित्यकार कश्मीर उप्पल ने प्रमुख भूमिका निभाई। 

जैविक बाजार

जैविक बाजार की शुरूआत वर्ष 2019 से हुई, जो अब भी चल रही है। अब किसान स्वयं इसे चला रहे हैं। इसमें किसान उनके उत्पादों को लेकर आते हैं, और बेचते हैं, जिससे शहरी उपभोक्ताओं को बिना रासायनिक वाली ताजी सब्जियां मिलती हैं, और किसानों को उनके उत्पादों के उचित दाम मिल जाते हैं। कोविड-19 की तालाबंदी के कारण कुछ समय जैविक बाजार बंद रहा, लेकिन फरवरी, 2022 से फिर शुरू हो गया है। अब नगर पालिका भी इसमें सहयोग कर रही है।

इटारसी के साहित्यकार कश्मीर उप्पल ने बताया कि जैविक बाजार की शुरुआत में पदमश्री बाबूलाल दाहिया आए थे, उनके भाषण का शहरी समाज पर अच्छा असर हुआ था। मीडिया का भी जैविक उत्पादों के प्रचार-प्रसार में सहयोग मिला था। प्रत्येक रविवार को जैविक बाजार की समाप्ति के बाद गोष्ठी भी की जाती थी, जिससे इसके महत्व को लोगों ने समझा। पहले जहां बाजार लगता था, वहां जैविक भोजन भी बनवाया जाता था, जिससे लोग उसका स्वाद ले सकें और खरीदें। अब जैविक बाजार चलन में आ गया है और नगर पालिका ने भी जगह उपलब्ध करा दी है। इससे जैविक खेती की ओर किसानों का रूझान बढ़ा है। उन्होंने कहा स्कूलों में भी जैविक बाजार जैसी कार्यक्रम होने चाहिए, जिससे बच्चों के माध्यम से उनके पालक भी इसका महत्व समझ सकें।

जैविक बाजार मे सब्जियां

संस्था के कार्यकर्ता राजेश सामले ने घर की छत पर सब्जियों की खेती शुरू की है। गमलों में और टीन के टूटे-फूटे डब्बों में उन्होंने सब्जियां लगाई हैं, जो गांव में आकर्षण का केन्द्र हैं। उन्होंने बताया कि उन्हें छुटपन से खेती में रुचि है। इस साल उन्होंने बैंगन, टमाटर, पालक, मैथी, धनिया, अदरक, पुदीना, अजवाइन इत्यादि सब्जी लगाई है। उन्होंने बताया कि वे बारी-बारी से ताज़ी सब्जियां तोड़कर पूरे सप्ताह पकाकर खाते हैं।

राजेश सामले संस्था के पूरावक्ती कार्यकर्ता हैं, लेकिन अब संस्था का काम अवैतनिक करते है। उन्होंने एक गाय भी खरीदी है, जिसके दूध की बिक्री से उनका खर्च चलता है। छत की खेती से सब्जियां मिल जाती हैं, जिससे उन्हें खरीदनी नहीं पड़ती। खेती से उन्हें अनाज मिल जाता है। यानी वे एक तरह से स्वावलंबी खेती से आत्मनिर्भर जीवन जी रहे हैं।

कुल मिलाकर, देसी सब्जियों की खेती, छत की खेती और जैविक बाजार की पहल से देसी बीजों का संरक्षण, संवर्धन हो रहा है। लोगों को ताज़ी हरी देसी जैविक सब्जियां मिल रही हैं। फलदार पेड़ों से अच्छा पोषण भी मिल रहा है। जैविक बाजार से शहरी उपभोक्ताओं को देसी व बिना रासायनिक सब्जियां व अनाज मिल रहा है और किसानों को उनके उत्पादों के उचित दाम मिल रहे हैं। जो सब्जी बाड़ी को लोग कई कारणों से भूलते जा रहे थे, वह खान-पान की संस्कृति वापस आ रही है। यह स्वावलंबी जैविक खेती की ओर किसानों का रूझान बढ़ा है,जो आशाजनक है। महिला सशक्तीकरण भी हो रहा है। कुल मिलाकर, यह पूरी पहल सराहनीय होने के साथ अनुकरणीय भी है। 

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