श्रमजीवियों का स्वास्थ्य केन्द्र (in Hindi)

By बाबा मायारामonJan. 14, 2017in Health and Hygiene

विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख  (Specially written for Vikalp Sangam)

(Shramajeeviyon ka Svasthya Kendra)

हमारी स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ती जा रही हैं, लेकिन बड़ी आबादी की स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच नहीं है। वैसे तो हमारे देश में डाक्टरों की कमी है लेकिन गांवों तक डाक्टरों व स्वास्थ्य सेवाओं की और भी कमी है। देश की लगभग 70 प्रतिशत आबादी गांवों में रहती है पर लगभग 70 प्रतिशत डाक्टर शहरों में कार्यरत हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल के कोलकाता महानगर के कुछ समर्पित डाक्टरों ने अपने शहर से दूर मजदूर बस्ती चेंगईल में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराई हैं। वहां स्वास्थ्य केन्द्र बनाया है जिससे मजदूर, किसान और ग्रामीणों को स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो रही हैं।

चेंगईल का श्रमजीवी स्वास्थ्य केंद्र
चेंगईल का श्रमजीवी स्वास्थ्य केंद्र – फोटो बाबा मायाराम

अगर हम पश्चिम बंगाल की बात करें तो यहां 72 प्रतिशत आबादी गांव में रहती है। लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 1000 की आबादी पर 1 डाक्टर होना चाहिए। भारत में 1800 की आबादी पर 1 डाक्टर है। पश्चिम बंगाल में स्थिति और खराब है। यहां 4500 पर 1 डाक्टर उपलब्ध है। 

हाल में ही 11 नवंबर, 2016 को मैंने इस स्वास्थ्य केन्द्र का दौरा किया। इस स्वास्थ्य केन्द्र और स्वास्थ्य कार्यक्रम के बारे में लम्बे अरसे से सुनता रहा हूं। यह कोलकाता से लगे हुए हावड़ा जिले का एक औद्योगिक इलाका है, जहां कई जूट और कपड़ा मिलें हैं। इनमें से कुछ बंद होने की कगार पर हैं। कनोरिया जूट मिल, लाडलो जूट मिल, प्रेमचंद जूट मिल, बाउड़िया काटन मिल, फुलेश्वर काटन मिल   इनमें से कुछ हैं। यहां के मजदूर अपने अधिकारों को लेकर लड़ रहे हैं। उचित वेतन और कामकाज के लिए आवश्यक सुविधाओं की मांग कर रहे हैं। लेकिन अधिकांश मिलों ने मजदूरों की छंटनी कर दी है।

देश में नई आर्थिक नीतियों का असर इन मिलों पर भी पड़ा है। इन आर्थिक नीतियों को उदारवादी नीतियां भी कहा जाता है जो मजदूरों के लिए कठोर साबित हो रही हैं। लेकिन यहां के कनोडिया जूट मिल संग्रामी श्रमिक यूनियन ने जबर्दस्त संघर्ष किया। मजदूरों की मांगों को व्यापक जन समर्थन मिला। कनोरिया जूट मिल के मजदूरों ने  छत्तीसगढ़ में दल्ली राजहरा के मजदूरों के संघर्ष से प्रेरणा ली।

वहां के मशहूर मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी और उनके छत्तीसगढ़  मुक्ति मोर्चा की तर्ज पर संघर्ष और निर्माण को अपनाया। मजदूरों की आर्थिक मांगों के अलावा उनके जीवन में गुणात्मक बदलाव की सोच अपनाई। दल्ली राजहरा में मजदूरों ने अपने खून-पसीने की कमाई से शहीद अस्पताल बनाया है, जो आज तीन दशक से भी ज्यादा समय से सफलतापूर्वक चल रहा है।

गरीबी, भूख और पोषण की समस्याओं से जूझ रहे लोगों को स्वास्थ्य सुविधाओं से निजात कैसे मिले, यह समस्या थी। तब यह चल रहे संघर्ष में लगे यूनियन ने यह तय किया कि लोगों को न तो भूख से मरने दिया जाएगा और न ही बिना इलाज के।

सम्मेलन में सबके लिए स्वास्थ्य की मांग
सम्मेलन में सबके लिए स्वास्थ्य की मांग – फोटो डाक्टर पुण्यव्रत गुण

इसी बीच छत्तीसगढ़ के शहीद अस्पताल में काम कर चुके पुण्यव्रत गुण ने यह जिम्मेदारी ले ली। डाक्टर गुण ने 20 मार्च 1995 में कुछ स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के साथ एक मुर्गी फार्म में श्रमिक कृषक मैत्री स्वास्थ्य केन्द्र की स्थापना की। वर्ष 1999 में श्रमजीवी स्वास्थ्य उद्योग का पंजीयन करवाया गया।

क्लिनिक की शुरूआत मुर्गीखाने में हुई थी
क्लिनिक की शुरूआत मुर्गीखाने में हुई थी – फोटो डाक्टर पुण्यव्रत गुण
क्लिनिक के शुरूआती दिन
क्लिनिक के शुरूआती दिन – फोटो डाक्टर पुण्यव्रत गुण

छोटी सी क्लिनिक से शुरूआत हुई लेकिन आज यह स्वास्थ्य केन्द्र तीन मंजिला इमारत में चल रहा है। हालांकि यह स्वास्थ्य केन्द्र रातोंरात नहीं बन गया, बल्कि धीरे-धीरे ही बना। जैसे जैसे संसाधन जुटते गए वैसे वैसे स्वास्थ्य केन्द्र बनता गया। आज इस अस्पताल से 25 डाक्टर जुड़े हैं। 30 स्वास्थ्य कार्यकर्ता हैं। यहां कई रोगों के विशेषज्ञ हैं जिनमें महिला रोग, चमड़ी रोग, मानसिक रोग, शिशु रोग विशेषज्ञ शामिल हैं।

मनोरोग चिकित्सा
मनोरोग चिकित्सा – फोटो डाक्टर पुण्यव्रत गुण

यहां अस्पताल में सिर्फ इलाज ही नहीं होता, बीमारी की रोकथाम पर भी जोर दिया जाता है। इस पूरी पहल के प्रमुख डा. गुण कहते हैं आखिर लोग बीमार क्यों होते हैं। बीमार होने के सामाजिक-आर्थिक कारण होते हैं। इसकी जानकारी होनी चाहिए। बीमारी की रोकथाम होनी चाहिए। कुछ की बहुत ही सरल तकनीकें होती हैं। जैसे टट्टी-उल्टी के दौरान नमक-शक्कर का घोल पिलाना, बुखार के समय गीली पट्टी रखना। इस तरह से हम बीमारियों से घबराएं नहीं, सही तरीके से उसके उपचार करें।

पहली लैब
पहली लैब – फोटो डाक्टर पुण्यव्रत गुण

इसके लिए हम स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण करते हैं। दो माह का आवासीय कोर्स भी होता है। पश्चिम बंगाल के ग्रामीण और पिछड़े इलाकों से लड़के-लड़कियां प्रशिक्षण प्राप्त करने आते हैं। दक्षिण 24 परगना, बंकुड़ा और पुरूलिया से तो पड़ोसी राज्य त्रिपुरा, झारखंड, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ से भी युवा प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं। ये प्रशिक्षित युवा अपने अपने क्षेत्र में स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराते हैं। गंभीर और आपातकालीन स्थितियों में ये कार्यकर्ता फोन पर डाक्टरों से सलाह लेते हैं और बीमारी का इलाज करते हैं।

महिला स्वास्थ्य पर कालेज की लड़कियों का प्रशिक्षण
महिला स्वास्थ्य पर कालेज की लड़कियों का प्रशिक्षण – फोटो डाक्टर पुण्यव्रत गुण

प्राकृतिक आपदाओं के समय भी पीड़ितों को स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध कराई जाती हैं। बाढ़ और त्सुनामी के समय पीड़ितों का इलाज करने अस्पताल के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं व डाक्टरों की टीम फील्ड में रहती है। बदलाव के लिए जो आंदोलन हो रहे हैं उसे स्वास्थ्य के आंदोलन से जोड़ने की कोशिश की जाती है। यह स्वास्थ्य कार्यक्रम पूरी तरह आत्मनिर्भर है। सिर्फ व्यक्तिगत दान या स्वास्थ्य सेवाओं को स्वीकार किया जाता है।

स्वास्थ्य पर जागरूकता के लिए पर्चे, पुस्तिकाएं और पत्रिकाएं निकाली जाती हैं। 2000 से 2011 तक बांग्ला में दो माह में ‘असुख-बिसुख’ नामक पत्रिका निकाली जाती थी। इसी तरह ‘स्वास्थ्येर वृत्ते’ पत्रिका निकल रही है। ‘सबके लिए स्वास्थ्य’ एक फोल्डर निकाला गया है।   

यह स्वास्थ्य केन्द्र इस सोच से चल रहा है कि कम खर्च में बेहतर इलाज संभव है, और वह अस्पताल में होता है। इस खर्च को गरीब लोग भी वहन कर सकते हैं। यह कैसे संभव है, इस सवाल के जवाब में डा. गुण बताते हैं कि इलाज में अधिकांश खर्च जांच में होता है। हम मरीज की मेडिकल हिस्ट्री और शरीर की जांच से रोग का अंदाजा लगा लेते हैं। अगर हिस्ट्री सही तरीके से लेंगे तो ज्यादातर मामलों में जांच की जरूरत नहीं पड़ेगी। और या कम से कम जांच करनी पड़ती है।

इलाज के लिए आए मरीज
इलाज के लिए आए मरीज – फोटो बाबा मायाराम

इसके अलावा, हम दवाओं का शाटगन डोज नहीं देते। यानी एक साथ कई बीमारियों की दवाएं नहीं देते जिससे ज्यादा खर्च होता है और उसके साइड इफेक्ट भी होते हैं। दवाओं का विज्ञानसम्मत इस्तेमाल करने पर जोर देते हैं। जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल करते हैं। नुकसानदेह दवाओं का इस्तेमाल नहीं करते। गैरजरूरी दवाएं नहीं देते।

फार्मेसी
फार्मेसी – फोटो डाक्टर पुण्यव्रत गुण

कुल मिलाकर, इस प्रयोग को देखने के बाद निष्कर्ष के रूप में कुछ बातें कही जा सकती हैं, कम खर्च में बेहतर इलाज किया जा सकता है। यह प्रयोग इस बात को दर्शाता है। यहां कोई ऊंच-नीच का कोई पिरामिडनुमा ढांचा नहीं है, सिर्फ मरीजों के प्रति समर्पण भावना है। संघर्ष और निर्माण की भावना से सभी प्रेरित हैं। अधिकारों के लिए संघर्ष और उससे जो हासिल होता है, उससे निर्माण करना, स्वास्थ्य का कार्यक्रम चलाना। स्वास्थ्य की अधिकांश बीमारियां सामान्य किस्म की हैं, जिनका उपचार सरल तकनीकों से संभव है, इस पर यहां जोर दिया जाता है। डाक्टर और स्वास्थ्य कार्यकर्ता गरीबों के अच्छे वकील की तरह काम कर रहे हैं। स्वास्थ्य का यह प्रयोग सराहनीय और अनुकरणीय है।      

लेखक से संपर्क करें

Story Tags: , , , ,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Loading...
%d bloggers like this: