महामारी में फुटपाथ की जिंदगी (in Hindi)

By बाबा मायारामonJan. 23, 2022in Food and Water

विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख (Specially written for Vikalp Sangam)

सभी फोटो – जनपहल

“खाना नहीं, पानी नहीं, पैसा नहीं, रोजी नहीं, जीने का साधन नहीं, हमने ऐसी स्थिति पहले कभी नहीं देखी थी। एक समय खाना मिलता था, दो समय खाते थे। रेहड़ी-पटरी, बेलदारी, मजदूरी, छोटे दुकानदार, खोमचे और ढाबेवाले सबकी हालत खराब थी। लेकिन ऐसे समय में जनपहल संस्था ने हमारी मदद की। भोजन के पैकेट बांटने से लेकर आर्थिक सहायता दी।” यह राजकुमारी थीं, वे दिल्ली के चिड़ियाघर के पास चाट की दुकान चलाती हैं।

यह हाल देश की राजधानी दिल्ली का था। कोविड-19 के दौरान जब पहली तालाबंदी हुई थी, तब रेहड़ी फेरीवालों से लेकर रिक्शावालों तक सभी का जीना दुश्वार हो गया था। जैसे दूध, सब्जी, कपड़ा, फल, पुराने कपड़े, चीनी मिट्टी के बर्तन, घी, बुने कपड़े, अखबारवाले आदि सभी मुसीबत में थे। इसके अलावा, छोटे-मोटे धंधेवाले, खाने-पीने के सामान, जूता मरम्मत, चाय की दुकान, सेल्समेन, क्लिप बनानेवाले और फूल बेचनेवालों की कठिनाई बढ़ गई थी।

जनपहल संस्था, दिल्ली में लम्बे समय से शहरी गरीबों के बीच कार्यरत है। आजीविका, आवास और उनके लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा के लिए काम करती है। बेघरों के लिए रैनबसेरों को संचालन करती है। जनपहल की देखरेख में करीब 20 रैनबसेरा चल रहे हैं। मजदूरों और रेहड़ी पटरीवालों के हकों के लिए भी पैरवी करती है। समुदायों में महिला हिंसा, लिंगभेद और महिला अधिकारों की रक्षा के लिए कार्यरत है। इसके लिए संस्था ने अलग से एक महिला पंचायत बनाई है। फुटपाथ पर गरीबों को पौष्टिक भोजन मिले, इसके लिए जनपहल तत्पर है।

हाल ही में मैंने दिल्ली में शहरी गरीबों की स्थिति जानने के लिए यात्रा की। वहां जनपहल के शकरपुर के कार्यालय में तीन दिनों तक ठहरा। संकरी गली में स्थित इस छोटे से कार्यालय में दिन भर हॉकर्स, रेहड़ी पटरीवाले, घरेलू हिंसा से पीड़ित महिलाएं और झुग्गी झोपड़ियों के बच्चे आते रहते हैं। यह सब उनकी समस्याओं को लेकर आते हैं। इन सबकी जनपहल के कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें होती हैं। इन दिनों बच्चों के साथ रचनात्मक गतिविधियां चल रही हैं। इऩ बच्चों ने हाल ही में नव वर्ष पर शुभकामना संदेश वाले रंगबिरंगे कार्ड बनाएं हैं। कुछ समय पहले महिलाओं को घरेलू हिंसा से निजात दिलाने के लिए सप्ताह में एक दिन फिल्म दिखाने और उस पर चर्चा करने का सिलसिला चल रहा था।

जनपहल संस्था के युवा कार्यकर्ता सोनू साव के साथ मैंने दिल्ली का दौरा किया। वे मुझे कई झुग्गी बस्तियों व रैनबसेरों में ले गए। इस दौरान मैंने रेहड़ी पटरी, सब्जी, चाट, हॉकर्स, सफाईकर्मी, बेघर और फुटपाथ पर रहनेवाले लोगों से साक्षात्कार किया और उनकी स्थिति जानने की कोशिश की।

दिल्ली को मुस्कानों की नगरी व देश का दिल कहा जाता है। यहां की बड़ी-बड़ी ऊंची इमारतों के बीच ताना-बाना बुनती चौड़ी-चिकनी सड़कें, बाग-बगीचे, सजी-धजी दुकानें और सड़कों पर सजा-धजा सरकता मानव समूह। दूसरी तरफ फुटपाथ पर, दीवार के सहारे, पुलों के नीचे, गली-कूचों में, रेल पटरियों के किनारे और रैनबसेरों में रहनेवाले और जहां जगह मिली, वहां आंखों में नींद काटनेवाले लोग। शहर में बड़ी आबादी ऐसे लोगों की है।  

टीकाकरण शिविर

जनपहल के धर्मेंद्र कुमार ने बतलाया कि वर्ष 2020 के मार्च महीने में जब पहली तालाबंदी हुई, तब उनकी संस्था ने जरूरतमंद बेघर व रेहड़ी पटरीवालों को सूखा राशन बांटा। विशेषकर, ऐसे लोगों का ख्याल रखा, जिनके पास पूरे दस्तावेज नहीं थे। आधार कार्ड भी गांव का था। वे शहर में किराए के मकान में रहते थे। जहां उनके रहने का कोई प्रमाण भी नहीं था, क्योंकि ऐसे लोगों के साथ मकान मालिक एग्रीमेंट भी नहीं करते। कई लोगों के पास मतदाता पहचान पत्र भी नहीं है। इन सबके अभाव में ऐसे शहरी गरीबों को सरकार की योजनाओं का लाभ भी नहीं मिल पा रहा था।

भोजन पैकेट वितरण करते कार्यकर्ता

वे आगे बताते हैं कि तालाबंदी के दौरान सरकार ने मुफ्त राशन की घोषणा की थी। ई-कूपन पर 4 किलो अनाज देने का प्रावधान था। स्मार्ट फोन से ई-कूपन को जोड़ा गया था। जबकि कई लोगों के पास ई-कूपन नहीं थे, और कई लोगों के पास स्मार्ट फोन भी नहीं थे। इसलिए यह सब लोग योजनाओं के लाभ से वंचित थे। ऐसे लोगों की उन्होंने हेल्प लाइन के माध्यम से मदद की। हेल्प लाइन के जरिए जिनका आधार कार्ड था, पर राशन कार्ड नहीं था, ऐसे लोगों के ई- कूपन बनवाने में मदद की। जिनके पास आधार कार्ड नहीं था, उनकी भी सहायता की। सैकड़ों लोगों को राशन व स्वच्छता किट वितरित किए।

राशन किट सामग्री में 10 किलो चावल, 10 किलो आटा, 2 किलो दाल, 1 लीटर खाद्य तेल, नमक, शक्कर, मसाले इत्यादि शामिल थे। स्वच्छता किट में मास्क, सेनेटाइजर और साबुन शामिल थे। इसके अलावा, पका-पकाया भोजन उपलब्ध कराने के लिए कई सामुदायिक रसोईघर स्थापित किए। सामुदायिक रसोईघरों से जरूरतमंदों को दोनों समय भोजन पहुंचाया गया।

उन्होंने बताया कि पहली तालाबंदी के दौरान संस्था का अनुभव यह रहा कि औद्योगिक क्षेत्रों के मजदूर सूखा राशन का इस्तेमाल करने से वंचित रह जाते हैं। दिल्ली के औद्योगिक इलाकों में  फैक्ट्रियों में ही बड़ी संख्या में मजदूर रहते हैं। इनमें से अधिकांश भोजन के लिए रेहड़ी-पटरी या छोटे-मोटे ढाबों पर आश्रित हैं। तालाबंदी में ये सब बंद थे। वे रसोई गैस और बर्तनों के बिना सूखे राशन का इस्तेमाल नहीं कर सकते थे।

मायापुरी में सामुदायिक रसोई

धर्मेंद्र कुमार बतलाते हैं कि इन सबको देखते हुए दूसरी तालाबंदी में दिल्ली के चारों कोनों पर स्थित औद्योगिक क्षेत्रों में ‘वर्कर्स रसोईघर’ की व्यवस्था की। जनपहल ने हॉकर्स ज्वाइंट एक्शन कमिटी और श्रमिक संगठनों के साथ मिलकर इसे संचालित किया। यह रसोईघऱ नरेला, फरीदाबाद, मायापुरी और झिलमिल में बनाई गई थीं। समुदायों के बीच से भी कुछ सक्रिय लोगों ने टीम बनाकर इसकी जिम्मेदारी संभाली थी। इससे तालाबंदी के दौरान हजारों मजदूरों को दोनों समय बना बनाया पौष्टिक खाना उपलब्ध करवाया गया।

वे आगे बताते हैं कि कुछ फैक्ट्री मालिकों ने सूखा राशन देकर सहयोग किया। कुछ अन्य वितरण कंपनियों ने भी मदद की। कुछ कंपनियों ने खुद से चिप्स, ठंडा पेय, जूस, बिस्किट इत्यादि दिए। करीब 1000 लोगों को दिन में दो बार का भोजन पैकेट दिए और पानी की थैलियां दीं। दिल्ली से लगे नोएडा, गाजियाबाद, वैशाली, कोडा कॉलोनी, गोखना मार्केट में भी सूखा राशन बांटा।

इसके अलावा, प्रवासी मजदूरों को दिल्ली के प्रमुख बस अड्डों और रेलवे स्टेशन पर रास्ते में खाने-पीने की चीजें दीं। इनमें गुड़, चना, बिस्किट और पानी की बोतलें शामिल थीं। विशेष स्थितियों में जरूरतमंदों को थर्मामीटर, ऑक्सोमीटर, स्टीमर और दवाइयां आदि की व्यवस्था भी  की गई। कुछ जरूरतमंदों लोगों को आर्थिक सहायता भी दी गई।

इसके अलावा, रेहड़ी-पटरीवालों की आजीविका को पुनः शुरू करने के लिए प्रधानमंत्री स्व निधि योजना के तहत् 10,000 रुपए की ऋण सहायता राशि का प्रावधान किया गया। यह योजना केंद्र सरकार की थी। लेकिन इसका लाभ ऑनलाइन ही लिया जा सकता है। संस्था की टीम ने सैकड़ों रेहड़ी पटरीवालों को इसका लाभ लेने में मदद की।

संस्था के संजीब माली बताते हैं कि उन्होंने फुटपाथ पर खाने-पीने का सामान बेचनेवालों का स्वच्छता प्रशिक्षण किया। हाथ धोने, पौष्टिक आहार बनाने और कचरा को कचरापेटी में डालने का आग्रह किया। जनपहल पहले से ही रेहड़ी पटरीवालों को पौष्टिक आहार बेचने के लिए तैयार करती रही है। इन सबकी दुकानें तालाबंदी के दौरान बंद थीं, पर जब खुली तो जनपहल ने सरकार के साथ मिलकर कोविड-19 पर विशेष रूप से प्रशिक्षण शिविरों का आयोजन किया।

फुटपाथ पर रेहड़ी लगानेवाले ज्वाला नगर के सुरेश चौहान बताते हैं कि तालाबंदी में होटल बंद थे और लोग घर में कैद जैसे हो गए थे। गरीब और गरीब हो गया था। कुछ लोगों के पास पैसे तो थे पर राशन नहीं खरीद पा रहे थे। ऐसे समय उन्होंने संस्था के सहयोग से सामूहिक रसोईघर चलाया। इसमें उनकी पत्नी संतोष देवी और बच्चों ने भी मदद की। बेसहारा,बुजुर्ग, बच्चों को भोजन खिलाया। भोपुरा, फरीदाबाद, बवाना, गाजियाबाद, नेहरू प्लेस और वसुंधरा तक भोजन पहुंचाया।

वे बताते हैं कि इस दौरान ज्वाला नगर में एक महिला ऐसी मिली जिसका पति कोरोना से मर गया था। बच्चों ने तीन दिन से खाना नहीं खाया था। इस महिला को उन्होंने कई दिनों तक दोनों समय खाना खिलाया। विकासपुरी में उन्हें तीन ऐसी महिलाएं मिलीं, जिनके पास राशन खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। उनकी आर्थिक सहायता की। पुलिसकर्मियों को भी खाना खिलाया।

सुरेश चौहान बताते हैं कि स्थिति इतनी विकट थी कि मनुष्यों के साथ पशु-पक्षी भी मर रहे थे। कबूतर व चिड़ियों को भी उन्होंने मरते देखा। इनमें से कुछ कबूतर के बच्चे घर लेकर आए थे।

लक्ष्मीनगर में सब्जी ठेला लगानेवाले संजय बताते हैं कि वे किराये के मकान में रहते हैं। किराया देने के लिए पैसे नहीं थे। भोजन की व्यवस्था भी नहीं थी। सामूहिक रसोई से भोजन के पैकेट मिलते थे, उसी से गुजारा होता था।

प्रगति मैदान में चाट की दुकान चलानेवाले रामजीत बताते हैं कि उनके 4 बच्चे हैं। दुकान बंद थी, इसलिए भोजन की समस्या थी। ऐसे में जनपहल के सदस्य आए और यहां करीब 15 दुकानवालों को सूखा राशन दिया और भोजन दिया।

महिला पंचायत की वंदना नारंग और पूनम ने बताया कि “तालाबंदी के दौरान घरेलू हिंसा, छेड़छाड़, बुजुर्गों को प्रताड़ना जैसे मामले बढ़ गए थे। जवाहर मोहल्ला की एक महिला के पति उनके साथ मारपीट करते थे। इस कारण उसे अपने बच्चे के साथ किसी सहेली के घर रहना पड़ रहा है। हमने उनका दुख-सुख सुना और साझा किया। मानसिक तनाव और घरेलू हिंसा से पीड़ित व्यक्तियों को परामर्श दिया। ऐसे व्यक्तियों से लगातार संपर्क बनाए रखा, और हिम्मत दी।”

वे आगे बताती हैं कि आंगनबाड़ी बंद होने से बच्चों के पोषण में भी दिक्कत आ रही थी। कई माएं बच्चों को दूध और बिस्किट दे पाने में सक्षम नहीं थीं। ऐसे समय में उनकी संस्था ने 1 किलो दलिया, मुरमुरा, दूध पाउडर, साबूदाना, सत्तू, गुड़,खांड, कॉर्न फ्लेक्स इत्यादि की व्यवस्था की। यह सामग्री ऐसी महिलाओं को दी, जिनके छोटे बच्चे थे। इसके साथ, ऑनलाइन पढ़ाई में बच्चों को दिक्कत आ रही थी। लोगों के पास इतने भी पैसे नहीं थे कि वे उनके फोन रिचार्ज करवा सकें। इसमें भी संस्था ने मदद की।

श्रमकार्ड के लिए आनलाइन पंजीकरण

इसके अलावा, सुप्रीम कोर्ट के आदेशानुसार केंद्र सरकार ने सभी असंगठित मजदूरों के आंकड़े तैयार करने के लिए ई श्रम पोर्टल शुरू किया है। असंगठित मजदूरों को ई श्रम पोर्टल से जोड़ने के लिए जनपहल के सहयोग से श्रमसेना का गठन किया गया है। इसके स्वयंसेवकों की टीम बनाई गई है। यह टीम असंगठित मजदूर, प्रवासी मजदूर, दिहाड़ी मजदूर, निर्माण मजदूर और घरेलू कामकाजी, ब्यूटी पार्लर और सैलून इत्यादि से जुड़े लोगों का ई श्रम कार्ड बनवा रही है। साथ ही वर्तमान में संस्था की टीम जिनके पास आधार कार्ड नहीं है या जिन्होंने किसी वजह से टीका नहीं लगवाया है, उनको चिन्हित कर विशेष टीकाकरण शिविर आयोजित कर रही है। इस पूरे काम में जनपहल के मंसूर रजा, अनिल कुमार चौधरी, सोनू साव, अनिल साकिया, सुरेश कुमार, गौरव कुमार, महेन्द्र और संजीब माली सहयोग कर रहे हैं। 

कुल मिलाकर, जनपहल ने कोविड के दौरान राशन वितरण, स्वच्छता किट और जरूरी दवाईयों का वितरित किया। सामुदायिक रसोईघर से भोजन उपलब्ध कराया। प्रवासी मजदूरों की हर तरह से मदद की। उन्हें आर्थिक सहायता से लेकर खाने-पीने की सामग्री दी। इसके साथ बेघरों को आर्थिक सहायता से लेकर रेहड़ी-पटरीवालों के ई-श्रम कार्ड बनवाने में मदद की। शहरी गरीबों को फुटपाथ पर पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराने से लेकर उनको स्वच्छता व साफ-सफाई का प्रशिक्षण दिया। कोविड-19 के दौरान घरेलू हिंसा व मानसिक तनाव से पीड़ित व्यक्तियों का दुख-दर्द बांटा और उनकी सहायता की। इस तरह संस्था ने दिल्ली के हाशिये पर रहनेवाले लोगों की हर तरह से मदद करने की कोशिश की। समुदायों से भी स्वतःस्फूर्त तरीके से लोगों ने टीम बनाकर एक दूसरे का साथ दिया, सामूहिकता व एकता के साथ परस्पर मदद की, यह पहल अनुकरणीय होने के साथ प्रेरणादायी है।   

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