उत्तराखंड की आवाज है हेंवलवाणी (in Hindi)

By बाबा मायाराम onNov. 07, 2020in Knowledge and Media

विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख (SPECIALLY WRITTEN FOR VIKALP SANGAM)

सभी फोटो राजेन्द्र नेगी के हैं

उत्तराखंड का एक छोटासा कस्बा है चम्बा। वैसे तो यह आम कस्बों की तरह है लेकिन अब इसकी नई पहचान हेंवलवाणी रेडियो है। यह रेडियो जनसाधारण की रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल हो गया है। वे इसे सुनते हैं, उसमें बोलते हैं, जुड़ते है, सूचना और जानकारी से समृद्ध होते हैं और अपनी समस्याओं का समाधान करने की कोशिश करते हैं।   

चम्बा, पहाड़ की तलहटी में बसा है। उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में है। यहां की हरी भरी पर्वतमाला को हेवलघाटी कहते हैं। इसी की तर्ज पर इसे हेंवलवाणी नाम दिया गया है। यानी हेवलघाटी की आवाज। प्राकृतिक रूप से यह इलाका अपूर्व सौंदर्य से सम्पन्न है। वनों से आच्छादित है, पशु पक्षी हैं और बड़े बड़े पत्थरों के बीच से हेंवल नदी बहती है। कल-कल बहते गाड़ गधेरे, झरने, छोटी नदियां और नौले हैं, इनसे ही मिलकर बड़ी नदी बनती है। हेंवल नदी आगे चलकर ऋषिकेश के पास गंगा नदी में मिलती है।

प्रोग्राम रिकार्डिंग

यह वह इलाका है जहां एक जमाने में वनों को बचाने के लिए चिपको आंदोलन हुआ था। वनों को कटने से रोकने के लिए लोगों ने पेड़ों से चिपककर उन्हें बचाया था। यह सिर्फ प्रतीकात्मक नहीं था बल्कि वास्तव में लोग पेड़ों से चिपक गए थे। उनकी सुरक्षा की थी। इस आंदोलन में महिलाओं ने अग्रणी भूमिका निभाई थी। यह आंदोलन देश-दुनिया में प्रसिद्ध हुआ था। इसके प्रभाव में उत्तराखंड में बड़े क्षेत्र में हरे पेड़ों के कटान पर रोक लगी थी।

हेंवलघाटी में ही बाद में बीज बचाओ आंदोलन की शुरूआत हुई, जिसके प्रणेता विजय जड़धारी यहीं रहते हैं। चम्बा के पास उनका गांव जड़धार है। कुछ साल पहले मुझे विजय जड़धारी ही हेंवलवाणी के चम्बा स्टूडियो में ले गए थे। पारंपरिक बारहनाजा ( मिश्रित फसलें) की विविध फसलें यहां की विशेषता हैं। बीज बचाओ आंदोलन के कार्यकर्ताओं ने गांव गांव जाकर विविध किस्मों के परंपरागत बीज एकत्र किए हैं। उनके पास देसी बीजों का अनूठा संग्रह है।  चिपको आंदोलन के सूत्रधार सुंदरलाल बहुगुणा की यह कर्मस्थली रही है।

हेंवलवाणी स्टूडियो

देहरादून के हिमालय ट्रस्ट के साथ मिलकर हेंवलवाणी की शुरूआत 2001 में हुई थी। यह जमीनी स्तर से उभरी युवाओं की सामूहिक पहल थी। इसके लिए युवाओं की टोली ने गांव गांव घूम घूमकर लोगों को हेवलवाणी के बारे में बताया, उससे से जुड़ने का आग्रह किया, कार्यक्रम सुनने व सुझाव देने की भी अपील की। 

हेंवलवाणी से जुड़े रवि गुसाईं ने बताया कि हमारा मुख्य जोर स्थानीय लोगों की जरूरत और समुदाय से जुड़े मुद्दों पर है। सभी कार्यक्रम समुदाय आधारित होते हैं, लोगों से सीधे जुड़ने की कोशिश होती है। पहाड़ी लोक संस्कृति, शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली, पानी, सड़क, शहर की गंदगी, नालियों की सफाई, जंगल में आग लगना, खेती-किसानी, बारहनाजा जैसी पारंपरिक खेती की पद्धति, पहाड़ी लोक गीत, पहाड़ी लोक व्यंजन इत्यादि। जनकेंद्रित पर्यटन व पर्यावरण को बचाने पर भी कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। स्थानीय भाषा गढ़वाली में कार्यक्रम होते हैं।

गांव के दौरे, शिक्षण, प्रशिक्षण, सम्मेलन, रिकार्डिंग का लम्बा दौर चला। वर्ष 2006 में चम्बा में हेवलवाणी का स्टूडियो बना। वर्ष 2007 में लाइसेंस के लिए आवेदन किया और 2012 में भारत सरकार के सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय से लाइसेंस मिला। इसके लिए कई संस्थाओं ने सहयोग किया।

हेंवलवाणी टीम

वे आगे बताते हैं कि इसकी लोकप्रियता का अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि यहां रेडियो की बिक्री बढ़ गई, ज्यादातर लोगों ने रेडियो खरीदे। नियमित रूप से कार्यक्रम सुने। एक कोशिश होती है कि न केवल समस्याओं को सामने लाया जाए बल्कि उनका समाधान भी हो। हेंवलवाणी में ऐसे लोगों को जुड़ने का मौका दिया जाता है कि जिनकी समस्याओं के समाधान में रूचि हो, जो इसके माध्यम से लोगों को समस्याओं को हल कर सकें।

हेंवलवाणी में शुरूआत से जुड़े राजेंद्र नेगी बताते हैं कि हमने बिना किसी तामझाम व उद्घाटन के हेंवलवाणी की शुरूआत की थी। इसमें लोगों को अपनी बात कहने का मौका होता है। वे अपनी समस्याओं इसके माध्यम से बता सकते हैं। इसे सहज बनाने के लिए हमने गढ़वाली भाषा को माध्यम बनाया है। गढ़वाली भाषा मां के समान है, इसमें लोग सहजता से अपनी बात कह सकते हैं। गांव के बुजुर्ग भी इसमें जुड़ते हैं। इसमें एक शब्द के कई पर्याय हैं, यह समृद्ध भाषा है जिसमें माटी की खुशबू है। 

समस्याओं को सामने लाने के लिए कार्यक्रम सीधी बात काफी लोकप्रिय है। प्रतिदिन आधा घंटा यह कार्यक्रम लाइव प्रसारित होता है। सड़क, बिजली, पानी की समस्याएं, अगर जंगल में आग या बाढ़ जैसी आपदाओं का सीधा प्रसारण किया जाता है, और संबंधित विभाग या लोगों की जनभागीदारी से समस्याओं के समाधान पर जोर दिया जाता है। विशेषकर, आपदाओं से बचाने के लिए हेंवलवाणी की कोशिश होती है। जंगल में आग लगने की सूचना प्रसारित की जाती है, जिससे तत्काल आग पर काबू पाया जा सके। इसमें फरमाइशी गीत भी इस कार्यक्रम में सुने जा सकते हैं। खेती-किसानी का कार्यक्रम हफ्ते में एक बार आता है। इसमें देसी बीजों की पारंपरिक खेती, बारहनाजा जैसी विविधतावाली खेती की पद्धतियां, साथ ही आधुनिक खेती के तौर-तरीके भी बताए जाते हैं।

हेंवलवाणी को मंथन अवार्ड

स्वास्थ्य चर्चा में बुखार, सर्दी जुकाम, गर्भवती महिलाओं की समस्याएं, खून की कमी आदि पर विशेषज्ञ चिकित्सकों से परामर्श कर कार्यक्रम प्रसारित किया जाता है। हेंवलवाणी का इसी से जुड़ा एक और लोकप्रिय अभियान है दवा दो, जीवन दो अभियान। इसके तहत् हेंवलवाणी रेडियो के माध्यम से लोगों से घर में पड़ी अनुपयोगी दवाओं को एकत्र किया जाता है और जिला चिकित्सा अधिकारी को निशुल्क दिया जाता है। जिससे जरूरतमंद लोगों को दवाएं मिल सकें। इसमें ऐसी दवाओं को लिया जाता है जिनकी एक्सपायरी डेट 3 माह बाद खत्म हो। इससे कई जरूरतमंद लोगों को निशुल्क दवाएं मिल जाती हैं।

वर्तमान में कोविड-19 के लिए यूनिसेफ के साथ मिशन कोरोना नाम से विशेष कार्यक्रम प्रसारित किया जा रहा है।  जिसमें विशेषज्ञ कोरोना से बचाव के उपाय बताते हैं। तालाबंदी के दौरान भी हेंवलवाणी बंद नहीं रहा, अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते रहा। पारंपरिक व्यंजन ( गढवाली में स्वाद जू रौ याद) के कार्यक्रम में गृहणी महिलाएं विभिन्न प्रकार के व्यंजन को बनाने के तौर-तरीके बताती हैं।

चुनाव के समय मतदाता जागरूकता कार्यक्रम अभियान चलाया जाता है। मौसम की जानकारी भी रोज दी जाती है। हेवलवाणी से लोगों के जुड़ाव की एक झलक तब मिली जब वे अपने गीतों के रिकार्ड देने आए। बड़ी संख्या में अपने कैसेट लेकर यहां जमा करने के लिए आए।

हर साल सामुदायिक मेला आयोजित होता है। इस कार्यक्रम के लिए खुले दिल से आर्थिक सहयोग देते हैं। इसके हिस्सेदार बनते हैं। यह एक मंच होता है जब लोक कलाकार, ग्रामीण, जानकार और हेंवलवाणी एक साथ आते हैं। 10 पूर्णकालिक कार्यकर्ता हैं। स्थानीय युवाओं को काम करने का मौका मिला है।

जनता को भागीदार बनाने का भी कार्यक्रम है। उनकी प्रतिक्रिया, सुझाव, टिप्पणी भी तत्काल प्रसारित की जा जाती है। इसमें श्रोता कार्यक्रमों से सहमति, असहमति, सुझाव व विरोध दर्ज करवा सकता है। वे फोन, एसएमएस, ब्हट्सएप, कम्प्यूटर में अपना संदेश रिकार्ड कर सकते हैं। यह एकतरफा कार्यक्रम नहीं है, संवाद का कार्यक्रम है।

इस कार्यक्रम में स्कूली बच्चों, युवाओं और महिलाओं को जोड़ने के लिए समय समय पर हेंवलवाणी की ओर से प्रशिक्षण कार्यक्रम रखे जाते हैं। देश के दूसरे हिस्सों से भी लोग ऐसे प्रशिक्षण कार्यक्रमों में शामिल होने आते हैं। हेंवलवाणी में अब तक 3 सौ से ज्यादा युवा निकलकर समाज से जुड़कर काम कर रहे हैं। कोई मीडिया में है, कोई किसी गैर सरकारी संस्था में, कोई नौकरी में या किसी ने स्वरोजगार अपनाया है। हेंवलवाणी में रहकर उन्होंने समुदाय व स्टूडियो से जुड़े कई कौशल सीखे हैं।

हेंवलवाणी के राजेन्द्र नेगी ने बताया कि केन्द्र और राज्य सरकार विभिन्न जागरूकता अभियानों को प्रचारित करने में समय समय पर हेंवलवाणी का सहयोग लेती हैं।

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा सम्मान

इस पूरी पहल से कई स्थानीय प्रतिभाएं सामने आई हैं, और यह सिलसिला जारी है। हडम्मा गांव के हरीश कोठारी को कविताएं व समस्याओं पर विचार रखने का मौका मिला है। खाड़ी गांव के लोकगायक ने यहां से अपने गीतों की शुरूआत कर आगे बढ़े हैं। चौपडियाल के मंगलानंद डबराल ने अपनी खेती के अनुभव साझा किए हैं। सिलकुटी गांव के खुशाल सिंह कुंडीर ने सब्जी उत्पादन में अच्छा काम किया और अपने अनुभव हेवलवाणी के माध्यम से बताए। चम्बा की सुनीता अंथवाल और शैला राणा ने पारंपरिक व्यंजनों के बारे में श्रोताओं को बताया है।

कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि हेवलवाणी ने युवाओं को इससे जोड़ा है, उनका प्रशिक्षण किया है, उनकी भागीदारी बढ़ाई है। यह जमीनी प्रयास है और स्थानीय और समुदाय से जुड़े मुद्दों पर आधारित है। यह एकतरफा नहीं बल्कि संवाद का माध्यम बना है। इसमें समस्याएं सामने लाने के साथ उनके समाधान पर भी जोर दिया जाता है। स्थानीय भाषा, परंपरा, संस्कृति का संरक्षण हुआ है। सामूहिक याददाश्त, लोकगीत, मौखिक परंपरा का दस्तावेजीकरण किया है। स्थानीय भाषा के साथ सामूहिक याददाश्त व मौखिक परंपराओं का दस्तावेजीकरण का अनूठा काम हुआ है। गढ़वाली को बढ़ावा मिला है। पहाड़ी संस्कृति, खान-पान, रहन-सहन, परंपरागत ज्ञान का संरक्षण व संवर्धन हुआ है।

बिना बाहरी आर्थिक संसाधनों के हेंवलवाणी चलाने का यह प्रयास अनूठा और आदर्श है। इसके कार्यकर्ता अपने अपने घरेलू कामों के साथ इस काम को करते हैं। गांवों में रहते हैं, खेती किसानी और छोटे-मोटे स्वरोजगार से जुड़े हैं। आर्थिक रूप से उनकी निर्भरता हेंवलवाणी पर आंशिक ही है। इसमें सभी स्तरों पर स्थानीय लोगों की भागीदारी है। हेवलवाणी उत्तराखंड की आवाज है। मिट्टी, पानी, जैवविविधता और पर्यावरण का संरक्षण हुआ है। यह वैकल्पिक व स्वतंत्र मीडिया का भी अच्छा उदाहरण है। जो मुद्दे मुख्यधारा के मीडिया में किन्हीं कारणों से नहीं आ पाते, वह हेंवलवाणी में आते हैं। जिंदगी को बेहतर बनाने व सामाजिक बदलाव में सूचनाओं का बड़ा योगदान होता है, हेंवलवाणी ने इसे कर दिखाया है और खुद में बदलाव किया है।

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Anchal rana January 22, 2023 at 8:42 pm

𝗂 𝗅𝗈𝗏𝖾 𝗆𝗍 𝖴𝗍𝗍𝖺𝗋𝖺𝗄𝗁𝖺𝗇𝖽