विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख (SPECIALLY WRITTEN FOR VIKALP SANGAM)
सभी फोटो- अशीष कोठारी
हिमालय की पंचचूली चोटी की तलहटी में बसा है मुनस्यारी। प्राकृतिक भूदृश्य और बर्फ से ढके पहाड़ों और जंगल के बीच। लेकिन यहां सिर्फ प्रकृति की ही सुंदरता नहीं है, महिलाओं के संघर्ष और रचना का मेल भी है। यहां की महिलाओं के संगठन ‘माटी’ की महक हिमालय से पार देश-दुनिया में फैल गई है। माटी यानी धरती, मिट्टी जिसमें अनाज पैदा होता है, जो सबका पालन करती है।
मध्यप्रदेश से दिल्ली, वहां से हल्द्वानी और हल्द्वानी से मुनस्यारी करीब 12 घंटे टैक्सी की लम्बी यात्रा करके पहुंचा। मुनस्यारी तक का रास्ता ऊंचे-नीचे पहाड़, घुमावदार रास्ते, संकरी सड़क, कल-कल बहती नदियां व झरने, हरे-भरे जंगल से आच्छादित था। टैक्सी में पुराने गीतों की थाप के साथ गाड़ी चलती जा रही थी। मैं फरवरी के आखिर में करीब एक हफ्ते वहां रहा। माटी के सदस्यों से मुलाकात की और गांव में घूमा। उस समय बर्फबारी हो रही थी, इसलिए इलाके में नहीं जा पाया। लेकिन अलग-अलग बैठक, बातचीत और देख सुन कर माटी के काम को समझने की कोशिश की।
आमतौर पर संगठन आर्थिक मुद्दों पर जोर देते हैं। लेकिन माटी संगठन इससे अलग है। माटी की शुरूआत 90 के दशक में महिलाओं पर होने वाली हिंसा से विचलित होकर हुई। उस समय एक घटना गोरीपार गांव में हुई, जहां एक महिला को मिट्टीतेल डालकर जला दिया था।
कुछ महिलाएं सामने आईँ और महिला हिंसा का विरोध किया। गांव-गांव घूमीं और महिलाओं को इसके खिलाफ एकत्र किया। महिला मंगल दल बनाया। बैठक की और तय किया कि महिलाओं को मिलकर कुछ करना चाहिए। इलाके में महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ वे संगठित हुईं और उन्होंने इसका विरोध किया। इस सबका असर यह हुआ कि महिला हिंसा में कमी आई।
इस बीच उन्होंने देखा कि घरेलू हिंसा का एक कारण शराब है। वे शराब के खिलाफ उठ खड़ी हुईं। लम्बा आंदोलन चलाया। आखिर इससे घरों में बनने वाली शराब में कमी हुई। संघर्ष से हुई जीत से महिलाओं में आत्मविश्वास बढ़ा।
इस पूरी पहल में मल्लिका विरदी का योगदान है। वे यहां दिल्ली से 90 के दशक में उनके पति थियो के साथ आईं और यहीं की होकर कर रह गईँ। इसके बाद माटी के सफर का सिलसिला चल पड़ा। महिला हिंसा, शराबबंदी और वन पंचायत और होमस्टे के माध्यम से कई अनूठे और उल्लेखनीय काम किए हैं।
महिलाओं ने महसूस किया कि उन पर होनेवाले अत्याचार व हिंसा की कोई एक घटना नहीं है, बल्कि यह तो सोच है। पितृसत्तामक सोच है, जिसमें महिलाओं को पुरूषों से कमतर समझा जाता है। जबकि घर के, खेत के और जंगलों के कामों में उनका बराबर का बल्कि ज्यादा योगदान होता है। अगर वे आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बने, एक स्वतंत्र हैसियत बनाएं तो उन्हें आजादी मिल सकेगी। वे एक स्वतंत्र नागरिक बन उनकी लड़ाई खुद लड़ सकेंगी।
यहां की आजीविका मुख्य रूप से जंगल और खेती पर आधारित है। यहां के खेत ऊबड़-खाबड़ पहाड़ी ढलान पर सीढ़ीनुमा हैं, मैदान जैसे लम्बे चौड़े समतल नहीं हैं। महिलाओं के कामों में जंगल से जलाऊ लकड़ी एकत्र कर लाना, मवेशियों को चारा लाना और जैव खाद बनाना और घास-फूस व पत्ते लाना इत्यादि शामिल हैं।
लेकिन घर का खर्च, बच्चों की पढ़ाई और आकस्मिक खर्चों के लिए यह सब पर्याप्त नहीं है। जलवायु बदलाव का असर खेती पर पड़ रहा है। महिलाओं ने इसके लिए वैकल्पिक आमदनी स्रोतों पर काम किया। महिलाओं की सोच यह रही है कि आजीविका टिकाऊ हो और बिना पर्यावरण के नुकसान के हो, जिससे पर्यावरण और जैव विविधता भी बनी रहे और उनकी आजीविका भी चलती रही।
मुनस्यारी, मेसर वन कौतिक, यह वार्षिक त्यौहार है जिसे माटी व ग्रामीण मिलकर आयोजित करते हैं
माटी ने कई और तरह के कामों की शुरूआत की। जैसे वन पंचायतों का प्रबंधन, देसी बीजों का संरक्षण, कढ़ाई-बुनाई का काम और होमस्टे (सैलानियों और अतिथियों को अपने घऱ ठहराना)। माटी के सदस्य हिमालयन आर्क के माध्यम से होमस्टे का काम करते हैं। हिमालयन आर्क, माटी का सहयोगी संगठन है जिसके तहत वे होमस्टे जैसी पर्यटन से जुड़ी गतिविधियां संचालित करते हैं।
यहां वन पंचायत का बहुत महत्व है। अंग्रेजों के समय जब उन्होंने जंगलों पर नियंत्रण करने की कोशिश की थी तब उसके खिलाफ आंदोलन हुआ था। लेकिन आजादी के बाद वन पंचायतें अस्तित्व में आईं। इसे मान्यता प्राप्त है। इसमें पंचों का चुनाव प्रत्यक्ष वोट से होता है और वे वन पंचायत के सरपंच को चुनते हैं। इसमें सरमोली जैंती की वन पंचायत की सरपंच, मल्लिका विरदी दुबारा चुनी गईं हैं । उन्हें दो बार वन पंचायत की सरपंच बनने का मौका मिला है। हाल में उन्हें फिर से सरपंच चुना गया है। मल्लिका और माटी संगठन की सदस्यों ने मिलकर वन प्रबंधन का अनूठा काम किया जिसकी काफी सराहना हुई।
वन पंचायत के तहत् हरेक पंचायत का जंगल क्षेत्र निर्धारित रहता है। इस जंगल से लोगों का निस्तार चलता है। चारा, पानी और घरेलू जरूरत की चीजें लाते हैं। वनों का संरक्षण और प्रबंधन वन पंचायत ने लोगों की सहभागिता से किया है।
मुनस्यारी में माटी की दुकान, जहां माटी की सदस्य उनके सामानों के साथ
इसी प्रकार, ऊनी उत्पाद जैसे स्वेटर, टोपी, मफलर, कम्बल आदि भी महिलाएं बनाती हैं। जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए देसी बीजों का संरक्षण भी माटी ने शुरू किया है। जौ, मसूर, राजमा, मडुवा जैसे देसी अनाजों को उगाना और बेचना भी एक काम है।
एक और मुख्य काम पर जोर दिया गया है- होमस्टे। यहां के बर्फीले पहाड़, जंगल, नदियां और सुंदर भूदृश्य (लैंडस्केप) लोगों को भाते रहे हैं। बढ़ता पर्यटन आजीविका का बड़ा स्रोत है। लेकिन इसमें अब तक बड़े-बड़े होटलों और टैक्सीवालों की कमाई होती थी, पर पर्यावरण और पारिस्थितिकीय तंत्र के संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जाता। स्थानीय समुदायों की इसमें भूमिका को प्राथमिकता नहीं दी जाती।
माटी ने इसमें हस्तक्षेप किया और होमस्टे की सोच को साकार किया। पर्यावरण संगत व स्थानीय समुदाय की सहभागिता के साथ इसे आगे बढ़ाया। जिसे समावेशी और जवाबदेह पर्यटन कहते हैं। समावेशी इसलिए क्योंकि इसमें समुदाय प्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है और प्रत्य़क्ष फायदा उन्हें ही मिल रहा है। जवाबदेह, इसलिए क्योंकि यहां के घर पारंपरिक, सादगीपूर्ण और सुघड़ हैं। पत्थरों की दीवार, स्लेट की छत, मिट्टी की फर्श से बने होते हैं। लेकिन अब स्थानीय सामग्री उपलब्ध नहीं होने के कारण सीमेंट वगैरह का इस्तेमाल भी होता है।
यहां होमस्टे को विस्तार से बताना उचित होगा। वैकल्पिक आय के स्रोत में इसका बड़ा योगदान है। होमस्टे यानी अपने घर के अतिरिक्त कमरे को सैलानियों को किराये से देना। यह काम वर्ष 2004 से शुरू हुआ। सरमोली और जैंती पंचायत से इसकी शुरूआत हुई। महिलाओं ने अपने घऱ में अतिरिक्त कमरे व शौचालय का निर्माण कराया, जिसमें वनविभाग की भी मदद मिली। इसके नियम भी बनाए।
एक व्यक्ति से रात्रि विश्राम का 1800 रूपए शुल्क लिया जाता है। 5 प्रतिशत जीएसटी सरकार को जाता है। इसमें छात्रों का रियायत दी जाती है, उनसे 1250 रूपए शुल्क लिया जाता है। प्राप्त राशि में से 5 प्रतिशत काट ली जाती है जिसमें 2 प्रतिशत अभी वन पंचायत के लिए और 3 प्रतिशत होमस्टे की बेहतरी के लिए राशि सुरक्षित रखी जाती है। होमस्टे के लिए जो राशि होती है उसमें घरों का सुधार व प्रबंधन पर खर्च होती है। जबकि वन पंचायत की राशि का वन संरक्षण व प्रबंधन में इस्तेमाल किया जाता है।
पक्षी त्यौहार, जिसे माटी, हिमालयन आर्क, कल्पवृक्ष और वन पंयायत मिलकर आयोजित करते हैं
होमस्टे में उनकी बारी पहले आती है जिनके पास कोई आजीविका के स्रोत नहीं हैं, या जिनकी आर्थिक जरूरत ज्यादा है। सरकारी नौकरी या पेंशन आदि प्राप्त करनेवालों की बारी बाद में आती है। जो पर्यटक आते हैं उन्हें घर का बना भोजन दिया जाता है। गरम पानी और अंगीठी की व्यवस्था होती है, क्योंकि यहां का वातावरण अपेक्षाकृत ठंडा होता है। प्रशिक्षित गाइड होते हैं जो प्रकृति, पक्षी व तितलियों की पहचान कराने के साथ धरोहरों से भी परिचय करवाते हैं। हिमालयन आर्क जो माटी का सहयोगी संगठन है, के पक्षी दर्शन के प्रशिक्षित गाइड हैं। इसके लिए अलग से शुल्क निर्धारित है। यहां साहसिक (ट्रेकिंग) की जा सकती है। रालम और मिलाम ग्लेशियर व पंचचूली ग्लेशियर हैं, खलिया,छिपला केदार और नंदादेवी ट्रेक हैं। सुबह की सैर के लिए खूबसूरत मेसर कुंड, थामड़ी कुंड, म्यूजियम, बुडगैर धार, नंदा देवी मंदिर जाया जा सकता है।
होमस्टे में स्थानीय खान-पान की संस्कृति से परिचय करवाया जाता है। अलग-अलग स्थानीय भोजन व व्यंजन परोसे जाते हैं। फाफड़ की रोटी, पलथी की रोटी, सत्तू, लाडू इत्यादि भोजन में शामिल होता है। पर्यटकों को घरेलू कामकाज की संस्कृति से जोड़ने की कोशिश होती है। रूचि रखने वाले पर्यटकों को वृक्षारोपण व तालाब सफाई जैसे कामों में शामिल किया जाता है। मवेशियों की देखभाल में हाथ बंटाया जा सकता है। कला से जुड़े लोग स्कैच व पेंटिंग्स बना सकते हैं। प्रकृति का आनंद ले सकते हैं।
यहां पर्यटकों से कहा जाता है जिन घरों में वे रहते हैं, वे उनके सेवादार नहीं हैं, मालिक हैं। मैं खुद चंद्रा ठाकुनी के घर में ठहरा था। उनका घर साफ-सुथरा था। खिड़की से बर्फीले पहाड़ और जंगल का दृश्य दिख रहा था। बुरांश के लाल फूल बरबस खींचते थे। एक रात हमने देर तक खुले आकाश में जगमगाते तारे और चांद देखा। लेकिन अगले कुछ दिन बर्फबारी होती रही। पेड़, पहाड़, घर और रास्ते सभी बर्फ की सफेदी से ढक जाते। दूध और दही के फाहों की तरह बर्फ को टप-टप गिरते देखना अद्भुत था।
एक और महत्वपूर्ण बात है कि होमस्टे में कुछ बुनियादी सिद्धांतों का पालन करना होता है। वन संरक्षण की प्रतिबद्धता, जंगल को बचाने के लिए स्वैच्छिक काम, शराब बनाकर नहीं बेचना और महिला हिंसा के खिलाफ खड़े होना। होमस्टे के लिए यह जरूरी है।
यह पूरी कहानी मुझे माटी के कार्यालय में शंखधुरा की वनपंचायत सरपंच बसंती रावत, नया बस्ती की कंचन, सरमोली की हीरा टोलिया, कमला पांडे, लीला पांडे, चंद्रा ठाकुनी, सरस्वती ठाकुनी, अनुसुया टोलिया, पुष्पा सुमतयाल, बसंती टोलिया ने संयुक्त रूप से सुनाई। वे आत्मविश्वास से भरी हुई थीं। बोलती जा रही थीं। मैं सोच रहा था जो महिलाएं बोलने में हिचकती हैं, वे उनकी कहानी लगातार कह रही हैं, यही बदलाव है। वे नई राह बना रही हैं, विकल्प ऐसी ही पगडंडियों से होकर बनता है। मैं सैकड़ों किलोमीटर दूर होकर भी आज जब इन पंक्तियों को लिख रहा हूं, उनकी आवाज सुन पा रहा हूं।
मुझे यहां ग्रामीण पर्यटन और होमस्टे पर हुई कार्यशाला का हिस्सा बनने का मौका मिला। इस कार्यशाला को हिमालयन आर्क, माटी और एक्वेशन्स (बेंगलेरू) ने आयोजित किया था। इस कार्यशाला में गोरी नदी घाटी (मुनस्यारी), दरमा और व्यास घाटी के लोग शामिल थे। दरमा और व्यास घाटी के लोग भी उनके इलाके में होमस्टे व पर्यावरणसंगत (इको टूरिज्म) काम शुरू कर रहे हैं।
कुल मिलाकर, माटी का काम समावेशी और जवाबदेह पर्यटन का है,जिसमें समुदाय और सैलानियों में मेल-मिलाप होता है, संस्कृति का आदान-प्रदान होता है, और सैलानी व पर्यटक स्थानीय लोगों की जिंदगी को करीब से देख पाते हैं। उनके दुख-दर्द से जुड़ पाते हैं। पहाड़ी ग्रामीण जीवनशैली से रूबरू हो पाते हैं। उनके मानस पटल पर प्रकृति के साथ जुड़ी जीवनशैली असर छोड़ती है। शहरी जीवनशैली जिसमें ज्यादातर समस्याएँ जो सीधे नगर के आकार व आबादी से जुड़ी हुई हैं, त्रासदी की ओर बढ़ रही हैं। आवास, पानी और सफाई, कूड़ा निकालने की समस्या है। इससे तनाव और अशांत मन हमेशा जंगल और पहाड़ों की ओर, प्रकृति की ओर भागता है। लेकिन यह काम काफी मुश्किलों के बीच हो रहा है। मुनस्यारी जैसे इलाकों में भी राजमार्ग (हाइवे लाइन) बनाने की बात की जा रही है। जो विकास का माडल शहरी में चल रहा है उसे यहां अपनाया जाएगा तो मुनस्यारी जैसी जगहों की पहचान भी खो जाएगी। इसलिए इस दिशा में सोचने की जरूरत है।
माटी ने एक वैकल्पिक पहल की है। ज्यादा पर्यटकों की होड़ में पर्यावरणीय नुकसान और गांव को कूड़ा-कचरे से बचाया है। महिलाओं ने ऊनी कपड़ों की हस्तकला को फिर से खड़ा किया है। देसी बीजों का संरक्षण किया है। इन उत्पादों के लिए विक्रय केंद्र बनाया है। पुस्तकालय बनाया है। यह सब उनके गांव को, पर्यटन को एक अलग मायने देता है। यह पर्यावरणकेंद्रित और जनकेंद्रित पर्यटन का अच्छा उदाहरण है, जो आसपास के इलाके के लोगों के लिए प्रेरणा बन गया है।