झारखंड में उम्मीद की लाइब्रेरी (in Hindi)

By बाबा मायारामonJun. 08, 2022in Knowledge and Media

विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख (Specially written for Vikalp Sangam)

(Jharkhand mein Ummeed ki Library)

फोटो – विनीत मोहांतो, सचिन बारब्दे, बहालेन, माधुरी पुरती

इस साल एक सर्द दोपहंर में ढोल-मांदल बज रहे थे, युवतियां रंग-बिरंगी पोशाकों में नाच रही थीं। लोग उत्साह से झूम रहे थे। यह कोई परब-त्यौहार व शादी-विवाह का कार्यक्रम नहीं था, बल्कि यह झारखंड के दूर-दराज के गांव में एक लाइब्रेरी का उद्घाटन था, जिसमें उत्सव जैसा माहौल था।

यह झारखंड के पश्चिम सिंहभूम के खुंटपानी प्रखंड का ऊपरलोटा गांव था। पश्चिमी सिंहभूम का यह इलाका मुख्यतः आदिवासी बहुल है। यहां बड़ी आबादी हो आदिवासियों की है। यहां की आजीविका खेती-किसानी व जंगल पर आधारित है। यहां की खेती बारिश पर निर्भर है। धान ही प्रमुख फसल है। बारिश की नमी में ही रबी की फसल खेसारी ( तिवड़ा), तिसी (अलसी) और मसूर की खेती होती है। एकफसली क्षेत्र होने के कारण ही शायद पलायन भी होता है। यह इलाका जंगल और पहाड़ से घिरा हुआ है। इस इलाके से संजय नदी होकर गुजरती है, जो बारहमासी सदानीरा नदी है।   

ऊपरलोटा लाइब्रेरी के उद्घाटन पर नृत्य

संयोग से मैं फरवरी में इस लाइब्रेरी के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल था। किताबों का ऐसा स्वागत मैंने पहली बार देखा था। दो महीने बाद मैं मई महीने में फिर इस लाइब्रेरी को देखने गया। इस लाइब्रेरी को एकजुट संस्था ने शुरू किया है, जिसका मुख्यालय चक्रधरपुर में है। इस लाइब्रेरी की संचालक माधुरी पुरती हैं, जो एकजुट संस्था के मानसिक स्वास्थ्य के कार्यक्रम से जुड़ी हैं, पर उनका किताबों के प्रति प्रेम और उससे भी ज्यादा बच्चों को पढ़ाने की उनकी लगन उन्हें रोज यहां खींच लाती है।

उद्घघाटन के कार्यक्रम में मुझे संस्था के कार्यकर्ता विनीत मोहांतो ले गए थे, उन दिनों धान की फसल की कटाई हो चुकी थी, और अधिक बारिश के कारण खेतों में ठंडलों के बीच पानी जमा था। लाइब्रेरी की जगह ऊपरलोटा के गांव के मुंडा प्रताप सिंह जारिका ने निःशुल्क उपलब्ध कराई थी। युवाओं ने लाइब्रेरी के कमरे को फूल व बंधनवारों से सजाया था। बरामदे की साफ-सफाई की थी। अतिथियों का स्वागत फूलों के गुच्छों से किया गया था।

ऊपरलोटा लाइब्रेरी में पढ़ते बच्चे

विनीत मोहांतो ने बताया कि लाइब्रेरी का उद्देश्य है कि गांव के बच्चों में पढ़ने-लिखने की रुचि निरंतर बनी रहे, जिन बच्चों ने स्कूल छोड़ दिया है, वे फिर से पढ़ाई, स्कूल और किताबों से जुड़ सकें। विशेषकर, निर्धन घरों के ऐसे बच्चे जो किताबें नहीं खरीद सकते, वे यहां आकर किताबें पढ़ सकें और घर भी ले जा सकें। वे ज्ञान की बड़ी दुनिया से जुड़ सकें। किताबों को पढ़ने की प्रवृत्ति बने।

उन्होंने बताया कि लाइब्रेरी की योजना को साकार करने के लिए सबसे पहले हमने गांवों का चयन किया, लोगों से बातचीत की और उनसे लाइब्रेरी के लिए जगह देने का आग्रह किया। ग्रामीणों ने इस रचनात्मक काम के लिए उदारतापूर्वक निःशुल्क जगह उपलब्ध कराई और सहयोग दिया। और इस तरह क्षेत्र में 5 स्थानों पर लाइब्रेरी शुरू हो गईं। अमराई गांव में पहले से एक लाइब्रेरी थी, अन्य 4 स्थानों पर हाल ही लाइब्रेरी खोली गई हैं। खुंटपानी प्रखंड में ऊपरलोटा, पंडावीर, बींज और पोरलोंग गांव में लाइब्रेरी संचालित की जा रही हैं।

विनीत मोहांतो ने बताया कि लाइब्रेरी के संचालन का जिम्मा बारी-बारी से संस्था के कार्यकर्ताओं व ग्रामीण युवाओं ने लिया है। अगर कोई कार्यकर्ता या युवा निजी काम या किसी जरूरी काम से लाइब्रेरी नहीं जा पाता है तो दूसरे युवा जिम्मेदारी संभालते हैं। ये लाइब्रेरी ऐसे दूर-दराज के गांवों में हैं, जहां बच्चों को स्कूली किताबों के अलावा पढ़ने के लिए दूसरी किताबों की किल्लत थी। बहुत से घरों में एक भी किताब उपलब्ध नहीं है। यहां रंग-बिरंगी चित्रों वाली बेहतरीन किताबें उपलब्ध हैं। बच्चे खुद शेल्फ से उनकी मनपसंद किताबें चुनते हैं। संचालक उन्हें खुद कहानी पढ़कर सुनाते है। इसका उद्देश्य किताबों का संग्रह भर नहीं है, बच्चे कुछ सीख सकें, उनमें पढ़ने-लिखने की आदत बने, किताबों की संस्कृति विकसित हो, यह सोच है।

ऊपरलोटा लाइब्रेरी में किताबें ढूंढकर पढ़ते बच्चे

यहां रोज दरी पर नीचे बैठकर बच्चे किताबें पढ़ते हैं। यहां का वातावरण शांत रहता है, जिससे बच्चों की एकाग्रता भंग न हो, वे किताबें ढूंढकर पढ़ सकें। यहां बाल साहित्य के साथ बड़ों का साहित्य भी है। किशोर-किशोरियों के लिए जहां कैरियर संबंधी किताबें हैं, वहीं युवा एवं बुजुर्ग पाठकों के लिए भारतीय भाषाओं के साहित्य, विज्ञान, पर्यावरण,इतिहास, कला, संदर्भ ग्रंथ, शब्दकोश व जीवनियां उपलब्ध हैं। कहानी, कविता, नाटक, लोककथाएं और पंचतंत्र जैसी लोकप्रिय कहानियां और प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए किताबें भी हैं। यह पुस्तक प्रेमियों के मिलने व बातचीत करने का अड्डा भी है।

यहां बच्चे रंग-बिरंगी चित्रों वाली कहानी या कविता पढ़ते हैं तो उनके हाव-भाव देखते ही बनते हैं। वे इनके माध्यम से एक अलग दुनिया की सैर करते दिखते हैं। इसके साथ, यहां कहानी और कविता पढ़कर सुनाना और आंखों देखी घटनाओं का विवरण लिखना भी शामिल है। इसके अलावा, अन्य कार्यक्रमों के माध्यम से कई तरह की गतिविधियां संचालित होती रहती हैं। जैसे बच्चों के लिए बालसभा, नाटक, चित्रकला और नुक्कड़ नाटक का आयोजन होता है। यहां बच्चों के लेखन कौशल के विकास के लिए दीवार लेखन भी किया गया है, जिसमें दीवार पर नारे, चित्र बनाना, कविता व कहानी का विवरण लिखा गया है।

यहां किताबों के अलावा, खेल को बढ़ावा देने के लिए खेल सामग्री रखी गई है। शतरंज, बैडमिंटन, लूडो, चाइनीज चेकर इत्यादि खेल सामग्री उपलब्ध हैं। बैडमिंटन, लूडो, चाइनीज चेकर और शतरंज भी मजे से खेलते हैं। बच्चों को खेल गीत के माध्यम से पढ़ना-लिखना सिखाया जाता है। विनीत मोहांतो बतलाते हैं कि झारखंड में खेल की कई प्रतिभाएं हैं, पर उन्हें आगे बढ़ने का मौका नहीं मिलता। एकजुट संस्था ने ऐसी कई खेल प्रतियोगिताएं आयोजित की हैं, जिसमें से कई नए खिलाड़ी सामने आए हैं, और उन्होंने जिले से लेकर राज्य स्तरीय खेल प्रतियोगिताओं में ईनाम भी जाता है। सोनोरोकुटी गांव की जनवरी नामक छात्रा इनमें से एक है, जिसने ताइक्वांडो में राज्य स्तर का ईनाम जीता है। जनवरी की खेल प्रतिभा की पहचान एकजुट की खेल प्रतियोगिता में ही हुई थी।

इसके अलावा, अपना जंगल पहचानो यात्राओं के माध्यम से पेड़-पौधों की पहचान, औषधीय पौधों की पहचान और उनके गुणधर्म जानने की कोशिश होती है। कबाड़ से जुगाड़ जैसे विज्ञान प्रयोगों को प्रोत्साहित किया जाता है। पोरलोंग गांव के एकजुट से जुड़े कार्यकर्ता अजय व बहालेन ने बताया कि हम वर्ष 2018 से लगातार जंगल यात्राओं का आयोजन कर रहे हैं। इसमें किशोर-किशोरियों के साथ गांव के बुजुर्ग लोगों को भी जंगल ले जाते हैं, जो जंगल के पेड़-पौधों व जड़ी-बूटियों के बारे में बताते हैं। इसका उद्देश्य जंगल की विरासत से नई पीढ़ी का परिचय कराना और सहेजना है।

ऊपरलोटा लाइब्रेरी की संचालक माधुरी पुरती बतलाती हैं कि लाइब्रेरी में आने वाले बच्चे शुरूआत में सारी किताबें देखना चाहते थे। उनमें हर किताब देखने की ललक होती थी। वे किताबों के पन्ने उलटते-पलटते रहते थे। उनकी खुशबू से रोमांचित होते थे। कभी-कभी वे दूसरों के हाथ में रखी किताबें भी देखना चाहते थे। लेकिन अब जब उन्हें समझ में आ गया है कि किताबें उनके लिए हैं, और वे जब उनकी मनचाही पसंद की किताब पढ़ सकते हैं, तो अब वे ढूंढ- ढूंढकर किताबें निकालते हैं और किताब चयन कर शेष किताबें वापस उसी जगह पर रख देते हैं। किताबें ढ़ूढ़ना और पढ़ना लाइब्रेरी के माहौल का हिस्सा बन गया है।

उन्होंने बताया कि उनकी लाइब्रेरी शाम को 3 बजे से 5 बजे तक खुलती है। इसमें 18 से 20 बच्चे रोज आते हैं।  कुछ ही देर में किताबों से हमारा कमरा भर जाता है, दरी पर, रैक पर, पेड़ के नीचे, बरामदे में सब तरफ किताबें ही किताबें नजर आती हैं। बच्चे किताबें लेकर पढ़ते रहते हैं। कई कॉलेज के छात्र व बुजुर्ग भी किताबें ले जाते हैं। वे दूसरे गांव के बच्चों व युवाओं को भी लाइब्रेरी आने के लिए प्रोत्साहित करती हैं। कुछ बच्चे दूसरे गांव से भी लाइब्रेरी आने लगे हैं।

लाइब्रेरी आने वाले बच्चों में रामजनम जारिका, माधवी पुरती, शांति जारिका और कृष्णा ने बताया कि हम घर पर अकेले-अकेले नहीं पढ़ पाते, इसलिए लाइब्रेरी में दूसरों को देख-देखकर पढ़ना अच्छा लगता है। किताबों से नई-नई जानकारी मिलती है। हम रोचक किताबें पढ़ते हैं और खेल भी खेलते हैं।

पोरलोंग की लाइब्रेरी

पोरलोंग गांव की लाइब्रेरी की संचालक बहालेन ने बताया कि हमारी लाइब्रेरी में अधिकांश बच्चे खेलने आते हैं, किताबें घर ले जाकर पढ़ते हैं, और फिर वापस कर देते हैं। इस लाइब्रेरी को देखने जब मैं गया था तो वहां रश्मि लेयांगी, देवाशीष, शमुएल तोपनो, सानगी लेयांगी आदि मिलकर अलग-अलग टुकड़ों से विश्व का नक्शा बनाने में जुटे थे। वे घंटों तक इस पहेली में उलझे रहे।

पंडावीर लाइब्रेरी में किताबें पढ़ते पाठक

इस पहल से बच्चों में जिम्मेदारी की भावना आ रही है, इसका पता मुझे तब चला जब हाल ही में 7 मई की शाम पंडावीर गांव की लाइब्रेरी देखने गया। उस दिन तेज आंधी और गरज-चमक के साथ अचानक बारिश आ गई। वहां किताब पढ़ते बच्चों ने तत्काल किताबें समेटी और उन्हें बारिश की पहुंच से दूर रैक पर रख दीं। खिड़की बंद कर दी। और यह सब लाइब्रेरी की संचालक सनिता बोईपेई के हस्तक्षेप के बिना सहज ही हुआ। इस दौरान बच्चे चाइनीज चेकर भी खेलते रहे, बारिश बंद हो चुकी थी पर बच्चे खेल में मगन थे।

बींज गांव के लाइब्रेरी संचालक टिकैत गोप बताते हैं कि बच्चों की पढ़ने की आदत में काफी सुधार आया है, पहले वे सिर्फ स्कूली किताबें ही पढ़ते थे, लेकिन अब नई-नई किताबें पढ़ रहे हैं, इससे स्कूली किताबों को भी अच्छे से समझ पा रहे हैं।

ऊपरलोटा लाइब्रेरी के सदस्य बच्चे

माधुरी पुरती ने लाइब्रेरी को मानसिक स्वास्थ्य से जूझ रहे व्यक्तियों के लिए भी काफी उपयोगी बताया। उन्होंने बताया कि उनकी लाइब्रेरी में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या से जूझ रही एक युवती रोज किताब पढ़ती है और  उस आधार पर कुछ लिखकर रोज दिखाती है। यह लाइब्रेरी का बिलकुल ही नया उपयोग है। मानसिक स्वास्थ्य के विशेषज्ञ डा. सचिन बारब्दे ने इसे पुस्तकालय का सबसे अच्छा उपयोग बताया और इसकी सराहना की।

इन पुस्तकालयों से शिक्षकों व सामाजिक कार्यकर्ताओं का विशेष लगाव है। वे खुद भी किताबें पढ़ते हैं और बच्चों को भी किताबें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। मुझे इन लाइब्रेरी के भ्रमण के दौरान कई शिक्षकों से बातचीत करने का मौका भी मिला है, जिन्होंने इस पहल को काफी सराहा है।

कुल मिलाकर, इस पूरी पहल से बच्चे किताबों के साथ एक-दूसरे से सीख रहे हैं, उनमें पढ़ने की रुचि बन रही है और किताबें पढ़ने की क्षमता का विस्तार भी हो रहा है। बच्चों में पढ़ने की प्रवृत्ति व किताबों की संस्कृति विकसित हो रही है। यह एक ऐसी जगह भी है, जहां बच्चे स्वतंत्र रूप से किताबों तक पहुंच सकते हैं। उन्हें लाइब्रेरी के रूप में एक ऐसा मंच मिला है, जहां वे शांति से बैठकर किताबें पढ़ सकते हैं और उन पर बात भी कर सकते हैं। लाइब्रेरी अब बच्चों के बीच एक खबर भी बन गई है, नए-नए बच्चे पाठक के रूप में जुड़ रहे हैं।

इसके अलावा, बच्चों में अपनी बात कहने की झिझक भी दूर हो रही है। वे निर्भीक होकर अलग अलग मंचों पर अपनी अभिव्यक्ति कर रहे हैं। यहां से जो चीजें सीखते हैं, उसे वे दूसरों को भी सिखा रहे हैं। उनमें नेतृत्व भावना का विकास हो रहा है। बच्चों की कल्पनाशक्ति का भी विकास हो रहा है। इसके साथ बच्चे जो किताबें घर ले जाते हैं, उनके भाई-बहनों व अभिभावकों में भी पढ़ने-लिखने की रुचि भी बढ़ रही है। वे उन्हें किताबें भी पढ़वाते हैं। कुल मिलाकर, यह पहल बहुत ही उपयोगी, सराहनीय व अनुकरणीय है, जिसके बहुत ही आशाजनक परिणाम आएंगे।

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Binit Kumar Mohanta June 9, 2022 at 7:13 pm

कहानी पढ़कर पुस्तकलय के साथ-साथ गांव के बारे मैं भी पता चल रही है ।बहुत ही बेहतरीन लेखन।