साठ साल पहले लन्दन की आबोहवा में भयानक धुंधलापन छा गया था, जिसे दुनिया ‘ग्रेट फॉग’ के नाम से जानती है. इसकी वजह से शहर में चल रही तमाम गतिविधियाँ टॉक देनी पड़ी, क्योंकि कुछ भी दिखना संभव नहीं हो पा रहा था. इसमें बारह हजार लोगों की मौत हो गई और एक लाख लोग बीमार हो गए. जह शोर-शराब हुआ तो सरकार ने पहले इस आर्इप को खारिज कर दिया और कहा की किसी बीमारी की बजह से यह हुआ है. लेकिन बढ़ते राजनैतिक दबाव के कारण सरकार ने एक आयोग का गठन किया. आयोग ने बताया की यह दुर्घटना वायु प्रदूषण के कारण हुई थी. सरकार ने कुछ कानून बनाए, जिससे सुधार तो हुआ लेकिन विकास की दिशा पहले की तरह ही रही. लिहाजा, बुनियादी तौर पर इस समस्या से छुटकारा नहीं मिल सका.
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जनसत्ता में पूर्व-प्रकाशित