युवाओं की कहानियां (in Hindi)

PostedonJun. 08, 2021in Settlements and Transport

संघर्ष, उम्मीद और सामूहिक सपने की

खंड-5
‘साधारण’ लोगों के असाधारण कार्य :
महामारी और तालाबंदी से परे
अप्रैल, 2021 (EWOP 5)

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क्या हम ऐसे भविष्य का सपना देख सकते हैं जिसमें भारत के युवाओं का जीवन सुरक्षित और जीवंत हो? जहाँ सभी युवाओं को समान अवसर मिले, जहाँ वे आत्मविश्वास और सम्मान के साथ व्यावहारिक जीवन कौशल सीख सकें. जहाँ उन्हें सुरक्षित और सार्थक आजीविका पाने के मौके हों और उन्हें स्वास्थ्य सेवाएं, पोषण और सुरक्षित खाद्य मिल सकें। जहाँ वे अपने पसंदीदा जीवन के लिए निर्णय ले सकें, वे उनके सपने पूरे कर सकें जिससे उनका जीवन बेहतर हो सकें?

क्या हम उन मूल्यों को बढ़ाने में मददगार हो सकते हैं जिसके आधार पर दुनिया लोकतांत्रिक, टिकाऊ और बराबरीपूर्ण हो, जहाँ देखभाल, सम्मान, सहानुभूति, उदारता, दयालुता और दृढ़ नैतिकता हो। इस आधार पर हमारे सम्बन्ध बनें. इसमें गैर मानव प्रजातियां भी शामिल हों।

भारत में करीब २७.५* फीसदी युवाओं की आबादी है। इसलिए ऐसी नीतियों व कार्यक्रमों की जरूरत है जिससे न केवल असुरक्षित व वंचित तबकों के युवाओं (आर्थिक स्थिति, लिंग, वर्ग, विकलांगता आदि द्वारा हाशिये पर रहनेवाले युवाओं) का ध्यान रखा जाए, बल्कि सभी युवाओं तक इसकी पहुँच हो, जो एक बेहतर दुनिया की नींव हैं।

वर्ष २०२० में महामारी ने हमारे समाज में जो गंभीर खोट है, वह उजागर कर दी। कोविड-१९ ने पूरी दुनिया को धीरे-धीरे जाम कर दिया, उसके पहिए को रोक दिया। इसने सभी को प्रभावित किया, लेकिन इससे सबसे तगड़ा झटका समाज के वंचित तबके को लगा, जिसने अचानक तालाबंदी से अपने रोजगार व आजीविका को खो दिया।

तालाबंदी के दौरान महीनों तक बड़ी संख्या में युवा राहत कार्यों में जुटे रहे। खाद्य और अन्य जरूरी वस्तुओं का प्रवासी मजदूरों में वितरण किया, जो शहरों में अटक गए थे या उनके गावों तक लम्बी व कठिन यात्राओं में फंसे थे। यह पहल बहुत सराहनीय है, साथ ही ऐसे कष्टदायी समय में जरूरी भी थी। यहां ऐसे युवा भी थे, जिन्होंने उनके समुदाय के साथ मिलकर काम किया, जिससे महामारी का मुकाबला किया जा सके, और तालाबंदी के प्रभाव को कम करने में भी मददगार हो।

ऐसे कठिन समय में युवा सामुहिकता, युवा संगठन और व्यक्तियों ने भी सहायता की पहल की, जिससे महामारी का सामना करने में मनोवैज्ञानिक सहायता मिली, जो उससे ही उत्पन्न हुई थी। तालाबंदी के कारण बहुत से संकट व चिंताएं आई थीं, जैसे सामाजिक रूप से लोगों का अलग-थलग होना, आजीविका का असुरक्षित होना और सेहत ख़राब होने का डर होना (खुद की और स्नेही निकटवर्ती लोगों की), इत्यादि।.

कुछ शहरी और ग्रामीण  युवाओं के नेटवर्क को और व्यक्तियों को डिजिटल माध्यम इस्तेमाल करने का फायदा था। उन्होंने प्रतिभागियों को ऑनलाइन कोर्स व बातचीत के लिए आमंत्रित किया, जिसके माध्यम से कई मुद्दों पर सार्थक संवाद आयोजित किये गए। अपने पसंदीदा नए कौशलों को बढ़ाया, प्रस्तावित नए पर्यावरण कानूनों का विरोध किया, प्रस्तावित खदान, बाँध और बड़ी परियोजनाओं का विरोध किया।

इस दौरान खुद के लिए खाद्य व सब्जियां उगाने में दिलचस्पी बढ़ती दिखाई दी। इस कठिन परिस्थिति में जो भी क्षेत्र में संभव था, विशेषकर शहरों में, वह किया. गावों में, ऐसी कई कहानियां सुनने में आईं कि जो प्रवासी मजदूर शहरों से गाँव में आए थे, उन्होंने कृषि कार्य में मदद की। यहाँ तक कि तालाबंदी के दौरान विद्यार्थियों ने अपने समय का सदुपयोग घर  की बागवानी में काम करके किया। उन्होंने अभिभावकों के साथ उनके काम में हाथ बंटाया।

कुल मिलाकर, इस दस्तावेज में ऐसे प्रयासों की झलक देने की कोशिश की गयी है जिससे उम्मीद कायम रहे। महामारी ने युवाओं को यह एहसास कराया है कि समाज में कितनी गहरी दरारें हैं, कितना नाजुक है हमारा ग्रह और इसमें कितना डरावना भविष्य है. संकलित कहानियां समाज में आशा और उम्मीद जगाने की हैं, महामारी का सामना करने की हैं, और साझे सपने की हैं, जो युवाओं को यह दिखाती हैं कि  सचमुच एक दूसरी दुनिया संभव है। इस हैशटैग को लोकप्रिय बनाना चाहिए, जो ट्रेंड करे, जिसमें दूसरी नई दुनिया प्रतिबिंबित हो।

*राष्ट्रीय युवा नीति, २०१४ के अनुसार १५ से २९ वर्ष तक के युवाओं को युवा परिभाषित किया गया है.

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