विवाह : एक आत्मीय परियोजना (in Hindi)

By अनुवाद रोहित बंसल, लेखक अत्रेयी डे, ब्लेज़ जोसेफ़onAug. 28, 2017in Society, Culture and Peace

विकल्प संगम के लिये विशेष अनुवाद

Translated specially for VS – A Family Wedding as a Creative Project

Vivah, ek aatmeeya pariyojana

विगत की मीठी धूमिल यादें प्रोत्साहन देती हैं उस अतीत के पुनर्निर्माण की, जिससे हम काफी दूर आ चुके हैं। जब कलाकार युगल ब्लेज़ जोसेफ़अत्रेयी डे ने परस्पर-निर्भरता को परिपोषित करने वाले सम्बन्धों के स्थान पर, आत्मीयता में दूरी लाने वाली परिवर्तन-लहर के विरोध का विचार किया, तो उन्होंने सामुदायिक एवं भूमिगत-संसाधनों को साझा करने की प्रक्रिया को पुनः जीवित करने का निश्चय किया, क्योंकि यह प्रक्रिया स्वतः ही इस आत्मीयता को पोषित करती है। विवाह, जन्म एवं मृत्यु, बीजारोपण, फसल-कटाई आदि के उत्सव इसी आत्मीयता को सुदृढ़ करने हेतु आयोजित किये जाते थे। यद्यपि, हम में से कुछ, इस सामीप्य की वैधता पर ही प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं, परन्तु यह स्पष्ट हो चुका है कि व्यक्तिवाद की विषमता एवं इसके दुष्प्रभाव ने समष्टिवाद / समूहवाद की एक नयी लहर को जन्म दिया है, कला के क्षेत्र में भी।

कलाकार युगल का विवाह साधारण, पारिवारिक, गैर-रूढ़िवादि व अंतर-सांस्कृतिक ढंग से हुआ था। कुछ ४० लोगों ने उत्सव के विभिन्न भागों में सहयोग किया। परन्तु ब्लेज़ के मन में अपने गाँव के उन विवाहों की खूबसूरत यादें थीं जिनमें वह ३ दशक पूर्व, जब वह एक छोटा बालक था, सम्मिलित हुआ था।

विवाह एवं फसल-कटाई के उत्सव में पड़ोसी एवं सभी सम्बन्धी – चाहे निकट के या दूर के -सम्मिलित होते थे। मित्रता, पारिवारिकता एवं संयुक्त परिश्रम का यह उत्सव, अत्यन्त आनन्दपूर्ण समागम होता था। इन उत्सवों में लोगों को अपनी चतुर्मुखी प्रतिभा – पाक-शास्त्र, वधू-श्रृंगार, गृह-सज्जा इत्यादि का प्रदर्शन करने का अवसर मिलता था। कुछ ज्येष्ठगण पशु-वध कर परम्परागत व रसीले व्यन्जन बनाने की निपुणता का प्रदर्शन करते। प्रायः मुख्य रसोइया कुछ पुरुष होते थे, जो विशालकाय पात्रों में भोजन का मिश्रण करने की शक्ति रखते और, परिस्थिति अनुरूप, अतिथिगणों को भोजन भी परोसते।

ज्येष्ठ निपुणता के साथ शामियाना खड़ा करते – आखिर उन्होंने अपने घरों का, नींव से छत तक, स्वयं ही निर्माण किया था। नवयुवक व नवयुवतियाँ अपने ज्येष्ठों का, जो श्रेष्ठतर समझे जाते, सहयोग करते। उस समय पेशेवर कलाकारों का प्रचलन नहीं था। मण्डप की पृष्ठभूमि मुख्यतः पर्यावरणीय वस्तुओं से निर्मित की जाती। बाज़ारों में मिलने वाली लुभावनी सजावट-सामग्री का अभाव एवं सीमित विकल्पों ने लोगों की कल्पनाओं और अविष्कारशीलता को सजीव रखा था। केले के पत्ते, नारियल की पत्तियों के बुने प्रतिरूप, तराशे हुये केले के तने,  लटकी साड़ियाँ, कोलम के लिये स्थानीय फूल, एवं हस्तनिर्मित चित्र एवं पत्र, मण्डप की सजावट का माध्यम बनते। वह सभी बच्चे, जो इन कार्यों में भाग लेते, स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करते। महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि किसी भी रचना की आगामी विवाह में पुनरावृत्ति नहीं होती।

इन दिनों, सम्बन्धियों का, २ दिनों से अधिक, एक-साथ मिलना अत्यधिक कठिन है। केरल एक अर्ध-नगरीय राज्य है। इस नयी संस्कृति में, जो व्यक्ति को ज़मीन से पृथक करती है, परिवार को संकुचित करती है, स्थानीय के स्थान पर विदेशी सेवाओं के उपयोग को प्रोत्साहित करती है, उत्सव का सिर्फ एक ही अर्थ रह गया है – पैसों से खरीदा हुआ पारिश्रामिक। मितव्ययता, सादगी, आत्मीयता पुरानी सोच का प्रतीक हो कर रह गये हैं। पैसों ने विवाह में आने वाले सम्बन्धियों को, जो विवाह को सफल बनाने हेतु अथक परिश्रम करते, दिनों तक खाने-पिलाने की आत्मीयता को खत्म कर दिया है। आज, बालीवुड की नकल पर बना वही एक मण्डप, राज्य दर राज्य दिखाई देता है। विवाह भी, अब, सामर्थ्य के अनुरूप स्वयं के घरों में नहीं, अपितु विशाल सुसज्जित विवाहगृहों में आयोजित किये जाते हैं। लोगों के घर भी विशाल हो गये हैं और गृह-सज्जा के सौन्दर्य में कृत्रिम मॉल संस्कृति की झलक, अब, साफ दिखायी देती है।

२०१४ में अपने भतीजे के विवाह के समय, कलाकार युगल ने विवाह मण्डप का निर्माण स्वयं करने का प्रस्ताव रखा, जो कि वर्तमान के पण्डाल वालों के आकलन से १० गुना सस्ता था।

पैतृक घर के बगीचे में फूल ही नहीं बचे थे, ना इतने केले के अतिरिक्त पेड़ ही थे जिनके छाल, पत्तों या तनों का प्रयोग किया जा सके। अब केवल इनकी और पारिवारिक आत्मीयता की मनोहर यादें ही शेष थीं। युगल ने इस प्रचुरता की यादों को मण्डप की पृष्ठभूमि के चित्रों में संजोने का निश्चय किया। अगले ५ दिनों के लिये, ब्लेज ने अपने पैतृक घर को, जहाँ उसकी ८३ वर्षीय माँ रहतीं थीं, एक कार्यशाला में परिवर्तित कर दिया। यद्यपि, सबसे अच्छा होता यदि मण्डप को विवाह-स्थल, जो ३ घण्टे दूर था, पर ही निर्मित किया जाता।

ब्लेज के बड़े भाई व भाभी, ८ वर्षीय भतीजी, ४ वर्षीय भतीजा, एक और भतीजा एवं २ बहनो, सभी ने सक्रीय रूप से चित्रकला में भाग लिया। घर के केन्द्रीय हाल में लकड़ी के दो फ्रेमों – १८ से २४ फिट के -पर, एक बड़े से कपड़े को बाँध कर, एक्रेलिक रंगों, फेविकोल और विभिन्न कागज़ी चित्रों के साथ, परिवार के १० सदस्यों ने ४ दिनों तक निरन्तर कार्य किया। आधारभूत कल्पना को दोनों कलाकारों ने चित्रित किया और बाकी परिवार को इसे मुक्त रूप से विकसित करने के लिये प्रेरित किया। बच्चों ने भी, कन्धे से कन्धा मिलाकर, देर रात्रि तक, कपड़े पर रंग भरे।

ब्लेज की माँ, पूर्ण उत्साह से, २ दिनों तक अपनी पूजा एवं टीवी धारावाहिक का त्याग कर इस चित्रकला में सम्मिलित हुयीं।

त्रिपट्ट के केन्द्रिय पटल में एक पुरुष व एक स्त्री फूल को पकड़े हुये दर्शाये गये थे, यह मिश्रित माध्यमों से निर्मित पटल था। यद्यपि ऐसा कोई भी दावा नहीं है कि यह सभी पटल अभूतपूर्व हैं, परन्तु इनके निर्माण की प्रक्रिया ने विवाहोत्सव को आत्मीय व पारिवारिक बना दिया। समय एवं प्रबन्धन के अभाव के कारण, पण्डाल-सेवकों ने, पृष्ठभूमि के पूरक साधारण कपड़ों एवं फूलों से मण्डप की सजावट की। पण्डाल-सेवकों ने इन पटलों की भूरि-भूरि प्रशंसा की और उन्हें खरीदने का अनुग्रह भी किया। परन्तु आने वाले एक अन्य विवाह के कारण परिवार ने पटलों को स्वयं रखने और पुनः प्रयोग करने का निश्चय किया।

यह सरल घटना, न केवल तीव्र परिवर्तन की पृष्ठभूमि में की गयी एक साधारण सी चेष्टा का वर्णन है, अपितु विगत में अन्तरंग व आनन्द

पूर्ण प्रसंगों के भौतिक व यन्त्रीकृत परिवर्तन से अर्थहीन हो जाने का वृत्तान्त भी है। यह एक विनम्र भेंट थी, उन अविस्मरणीय क्षणों की, जो सामुदायिक स्थानों के सह-निर्माण में एक साथ व्यतीत किये जाते हैं, और एक समुदाय के मूलभूत अनुभव के द्योतक हैं।

लेखकोंसे संपर्क करें – अत्रेयी डे, ब्लेज़ जोसेफ़

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