विकल्प संगम के लिये लिखा गया विशेष लेख (SPECIALLY WRITTEN FOR VIKALP SANGAM)
मलनाड की वनस्त्री संस्था ने नारी शक्ति पुरस्कार २०१८ पाया है
सभी फोटो – वनस्री
“अब हम पहले से ज्यादा स्वस्थ और खुश हैं। हमारे पास भोजन, सब्जी,फल व जंगली कंद-मूल सब कुछ है। पहले जैसी शहरों की ओर भागमभाग की जिंदगी से राहत है। डाक्टर के पास भी जाने की जरूरत नहीं है।” यह लक्ष्मी सिद्दी थीं, जो कर्नाटक के मत्तीगट्टा गांव में रहती हैं।
कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ा जिले में मत्तीगट्टा गांव है। यह पश्चिमी घाट के मशहूर जंगल का हिस्सा है। मत्तीगट्टा, जंगल व गहरी खाई में बसा है, जहां आदिवासी परिवार रहते हैं। यहां सभी घरों में घरेलू कृषि बागवानी है, जहां सब्जियां, फलदार पेड़, फल-फूल, जंगली कंद-मूल व औषधीय पौधे हैं। सुपारी और नारियल की खेती होती है। इसके अलावा, कोकम, लौंग, दालचीनी,काली मिर्च, केला की खेती होती है। उनके पास केसू ( घुइया) की देसी किस्में हैं।
लक्ष्मी सिद्दी मलनाड मेले में
तीन साल पहले जब मैं लक्ष्मी सिद्दी से उनके गांव में मिला था, तब उन्होंने बताया था कि “यहां तक सड़क नहीं है, पहाड़ चढ़ने उतरने में मुश्किल है, बिजली भी कभी कभी आती है, पर यहां हम खुश हैं। यहां प्रचुर मात्रा में पानी है, झरने हैं, घना जंगल है, बारिश खूब होती है, ठंडा वातावरण है, जंगल से कई तरह की ताजी हरी सब्जियां मिलती हैं, कंद- मूल मिलते हैं। जो भी चीजें यहां है, सब मिल बांटकर खाते हैं।”
लक्ष्मी सिद्दी, वनस्री नामक संस्था से जुड़ी हैं और उसकी सक्रिय सदस्य हैं। वनस्री उत्तर कन्नड़ा की सिरसी तालुका में महिला किसानों का समूह है, जो जंगल में घरेलू कृषि बागवानी को बढ़ावा देता है। परंपरागत देसी बीजों, जैव विविधता और पर्यावरण का संवर्धन और संरक्षण करता है। इस समूह से 40 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में आनेवाले गांव की करीब सौ महिला किसान जुड़ी हैं। वनस्री के काम में ग्रामीण क्षेत्रों से लेकर शहरी इलाकों के लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है।
वनस्री की शुरूआत 2001 में हुई। सुनीता राव ने इसकी पहल की थी, जो अपनी पढ़ाई के दौरान ही जापान के मशहूर कृषि वैज्ञानिक मोसानोबू फुकूओका से मिली थीं और प्रभावित हुई थीं। तब वह पांडिचेरी में पढ़ रही थीं, उस दौरान फुकूओका वहां आए थे। उनसे प्रभावित होकर वैसा ही काम करना चाहती थीं। एक जमाने में फुकूओका की किताब एक तिनके से आई क्रांति (वन स्ट्रा रिवोल्यूशन) काफी चर्चित रही थी। फुकूओका ने खुद जापान में उनके खेत में प्राकृतिक खेती के प्रयोग किए थे, जो बाद में दुनिया भर में चर्चित हुए।
अब वनस्री को 20 साल हो गए हैं। इससे जुड़कर महिला किसान जंगल घरेलू कृषि बागवानी का अनूठा काम कर रही हैं। इससे खाद्य, चारा, ईंधन, रेशा, औषधियां मिलती हैं। यह बेहतर स्वास्थ्य के साथ टिकाऊ जीवनशैली का आधार है। प्रकृति से जुड़ने का एक माध्यम भी है।
सुनीता राव बताती हैं कि “इसकी शुरूआत अनौपचारिक रूप से हुई। जब भी हम किसी के घर जाते थे तब वे सबसे पहले उनका सब्जी का बगीचा दिखाते थे, बाद में घर के अंदर ले जाते थे। उनके लिए सब्जी का बगीचा बहुत महत्वपूर्ण होता था। यह बगीचा घर के बाहर छोटे हिस्से में होता है। एक एकड़ से कम या ज्यादा भूमि के टुकड़े में हो सकता है। जिसमें मिश्रित फसलें होती हैं। विविध तरह की सब्जियां, फल- फूल, जंगली कंद-मूल व औषधिपूर्ण पौधे होते हैं।”
भानुमती हेगड़े अपने किचिन गार्डन में
वे आगे बताती हैं कि “ये महिलाएं पूरी तरह आत्मनिर्भर व स्वावलंबी हैं। वे अपने बगीचे में सब्जियां व फल उगाती हैं। फसल कटाई के बाद बीजों को चुनती हैं, उन्हें संभालती हैं, और उनका आदान-प्रदान करती हैं। परंपरागत बीजों की धरोहर व उससे जुड़े पारंपरिक ज्ञान को सहेजती हैं। मैं भी ऐसा ही कुछ काम करना चाहती थी। देसी बीजों का संरक्षण करना चाहती थी, परंपरागत ज्ञान एकत्र करना चाहती थी। इस काम को आगे बढ़ाने के लिए महिलाओं को जोड़ने की इच्छा थी। वनस्री की शुरूआत इसी तरह से हुई।”
वनस्री ने कोविड-19 के दौरान उससे बचाव के लिए पहल की हैं जिससे जीवन को सामान्य बनाने में मदद मिली। व्हट्सएप ग्रुप के माध्यम से वीडियो, फोटो, कृषि बागवानी की कहानी एक दूसरे को भेजना शुरू किया। बागवानी और किसानी में क्या कर रहे हैं, इसकी जानकारी एक दूसरे को दी। अपने दुख-सुख और हाल-चाल आपस में बांटे। इस पहल से शहरी और ग्रामीण समुदायों को आपस में जुड़ने का मौका मिला।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने व स्वस्थ रहने के लिए पारंपरिक काढ़ा का उपयोग किया और इसका प्रचार-प्रचार किया। यह हल्दी, अदरक, काली मिर्च, ब्राम्ही, तुलसी, अजवाइन, जीरे का उपयोग कर बनाया जाता है। इस काढ़े को दूध या पानी के साथ पीते हैं। लेमनग्रास, अदरक व तुलसी की चाय पी। यह पारंपरिक नुक्सा सदियों से आजमाया गया है, जो लोगों के अनुभव व पारंपरिक ज्ञान से निकला है।
कोविड-19 की महामारी, चूंकि पर्यावरण से जुड़ी है, इसलिए जंगल बचाने और बढ़ाने पर जोर दिया जाना जरूरी है। जंगली जानवरों व जीव-जंतुओं के पर्यावास के लिए जंगल बचाना जरूरी है। माना जा रहा है कि जंगलों की निर्मम कटाई से जीव जंतुओं के पर्यावास नष्ट होने से यह महामारी पनपी है।
कृषि बागवानी के तौर-तरीके सीखती महिलाएं
वनस्री ने अखबारी कागज के गमले बनाए। उनमें बीज और पौधे रोपकर स्थानीय स्तर पर वितरित किए। इस मुहिम में स्वैच्छिक कार्यकर्ता के रूप में कुछ युवा भी जुड़े। वनस्री से जुड़ी संकेता और स्वाति ने एक दिन में 500 अखबारी कागज के गमले बना दिए। पेड़ लगाने की मुहिम पर्यावरण के साथ आजीविका से भी जुड़ी है।
वनस्री के काम के प्रचार-प्रसार में डाकघर व डाकिया का योगदान अहम है। शेषाद्रि नामक डाकिया ने शुरूआत में पर्चे बांटने में मदद की थी। तालाबंदी के बाद डाकघर से देसी बीजों के लिफाफे भी दूरदराज के किसानों व शहरी लोगों को भेजे गए। जानकारियों का आदान-प्रदान किया गया।
येडल्ली गांव की अन्नपूर्णा हेगड़े का कहना है कि “ कोविड-19 से पहले तो हम लोग डर गए थे। लेकिन फिर समझ आया कि हमारे सब्जी के बगीचे में तो सब कुछ है। बैगन, सेमी, अरबी, जिमी कंद, टमाटर, मिर्ची सभी कुछ। इन्हें लेने के लिए बाजार जाने की जरूरत नहीं है।”
रेवती भट्ट ने बताया कि “हमें कोविड के दौरान बिलकुल चिंता नहीं हुई। क्योंकि हमारे घरेलू बाड़ी में 20 प्रकार की सब्जियां, 15 प्रकार के जंगली कंद-मूल और फल -फूल हैं। जिसमें आम, कोकम, नींबू, अदरक, टमाटर, अनानास, करौंदा, बांस करील शामिल हैं।
उन्होंने कहा कि “कोविड-19 एक गैर जिम्मेदार जीवनशैली का नतीजा है। प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का परिणाम है। इसलिए हमें प्रकृति की ओर लौटना होगा। वनस्री जैसी छोटी पहल से स्वावलंबन और आत्मनिर्भरता का उदाहरण पेश करना होगा। वनस्री के कामों का महत्व ऐसे समय में और अच्छे से समझ आता है।”
पारंपरिक बीजों के प्रचार प्रसार और संरक्षण के लिए हर साल मलनाड़ मेला होता है। इसे वनस्री आयोजित करती है। इससे ग्रामीण व शहरी समुदायों को जोड़ने की कोशिश है। इसे मलनाड वार्षिक मेला कहते हैं, जो मेलनाडु पहाड़ी ऋंखला के नाम पर है। यह 19 साल से हो रहा है। जिसमें महिला किसान व वनस्त्री के सदस्य आते हैं। उनके खेती व जंगल के उत्पाद लाते हैं, जिसमें बीज, औषधीय पौधे, खाद्य व गैर खेती खादय व हस्तशिल्प होता है। यह मेला एक दिन का होता है और यह भी ग्रामीण व शहरी लोग आते हैं और पारंपरिक व्यंजनों का लुत्फ उठाते हैं।
परंपरागत देसी बीज
इस साल 20 मलनाड मेला होनेवाला था लेकिन कोविड व तालाबंदी के कारण यह संभव नहीं है। इसकी कुछ पूर्ति व्हट्सएप ग्रुप के माध्यम से जानकारियों के आदान-प्रदान से की जा रही है।
इस पूरी पहल से कुछ बातें कही जा सकती हैं वनस्री व गांवों में घरेलू कृषि बागवानी का महत्व पता चला। व्हट्सएप ग्रुप के माध्यम से आपस में जुड़े। ऐसे समय में एक दूसरे की देखभाल और सहानुभति का प्रदर्शन किया। परंपरागत बीजों का महत्व पता चला, जो सदियों से विकसित हुए हैं। ये बीज, स्थानीय मिट्टी पानी और जलवायु के अनुकूल होते हैं। इनमें कीट, सूखा और प्रतिकूल मौसम सहने की क्षमता होती है। जैवविविधता और पर्यावरण संरक्षण में महिलाओं की भूमिका रेखांकित की, जो सदियों से है। बीज संरक्षण और पारंपरिक ज्ञान के आदान प्रदान में महिलाएं सदैव आगे रही हैं। वे न केवल पारंपरिक बीज बल्कि रसोईघर की व्यवस्था, संस्कृति और जीवनशैली को बचाने में भी आगे रही हैं।
कुल मिलाकर, यह परंपरागत बीजों को बचाने और बढ़ाने की, टिकाऊ खेती की, खाद्य सुरक्षा, जैव विविधता और पर्यावरण बचाने की छोटी सी पहल है। आत्मनिर्भर, स्थानीयकरण व स्वावलंबन की ओर बढ़ने की पहल है। महिला किसानों को नई पहचान देने की पहल है, जो खेती की अधिकांश काम करती हैं परंतु पीछे रहती हैं।
कोविड-19 जैसी महामारी में जंगल, पर्यावरण, परंपरागत बीज, खेती और टिकाऊ जीवन शैली के महत्व को रेखांकित करने की कोशिश है। यह भी कि बागवानी, सब्जी, फल-फूल, औषधीय पौधों व सब्जी बाड़ी (किचिन गार्डन) पर ध्यान दिया जाना चाहिए,जो बेहतर स्वास्थ्य के लिए जरूरी है। हालांकि इस महामारी को लेकर चिंता भी बनी हुई है। जो लोग शहरी क्षेत्रों से आए हैं वे बीमार भी हुए हैं। जिन महिलाओं के पास जमीन कम है, वे घरेलू बागवानी का काम ठीक से नहीं कर पा रही हैं। बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं की जरूरत बनी हुई है। लेकिन चुनौतियों के बीच वनस्री की छोटी पहल उम्मीद की किरण भी दिखाती है, जो दीर्घकालीन उपायों की दिशा दिखाती है।